पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३७

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ढोल १९८३ ढोवना विशेष-लकड़ी के गोल कटे हुए लंबोतरे कूदे को भीतर से मगर चवन को पालनो गढ़ई गुर ढार सुदार से प्रायो खोखला करते हैं और दोनों मोर मुह पर चमडा महते हैं। गदि ढोलनी बिसकर्मा सो सुतधार ।—सूर (शब्द॰) । छोटा ढोल हाथ से पौर वडा ढोल लकड़ी से बजाया जाता विशेष-यह झूला रस्सी से लटका हुमा एफ छोटा घेरेदार है। दोनों पोर के चमहों पर दो भिन्न भिन्न प्रकार का खटोला सा होता है। शब्द होता है । एक ओर तो 'ढव ढव' की तरह गभीर ध्वनि ढोलवाई।-सबा खी० [हिं० दुलना] दे० 'दुलवाई। निकलती है और दूसरी पोर टनकार का शब्द होता है। ढोला-सका पुं० [हिं० ढोल] १ बिना पैर का रेंगनेवाला एक यौ०-ढोल ढमक्का = वाजा गाजा । धूम धाम ।' .. प्रकार का छोटा सुफेव कीडा जो प्राध भगुल से दो प्रगुल तक लबा होता है मोर सड़ी हुई वस्तुमो ( फल मादि) महा-ढोल पीटना या बजाना- घोषणा करना। प्रसिद्ध तथा पौधों के हरे डठलों में पड़ जाता है। २ वह इह या करना । प्रकट करना। प्रकाशित करना। चारों भोर कहते छोटा चबूतरा ली गांवों की सीमा सूचित करने के लिये बना या जताते फिरना। उ०-(क) नाची घूघट खोलि, ज्ञान की ढोल बजाओ।-पलटू०, पृ०६१। (ख) ब्रजमडल में ___ रहता है। हद का निशान ।। पदनामी के ढोल, निसंक व प्राज बजे तो बजे। -मट०, यौ०-ढोलावदी। पु० ५८1 ३ गोल मेहराव बनाने का डाट । लदाव। ४ पिंड । शरीर । २ फान का पन्दा । कान की वह झिल्ली जिसपर वायु का देह । १०-जी लगि ढोला तो लगि बोला तो लगि धनव्यव- आघात पडने से शब्द का ज्ञान होता है। हार!-कवीर (शब्द०)। ५ डंका या दमामा। उ०- वामसैनि राजा तव बोला। पहूँ दिसि देह जुद कह ढोला। ढोलपुर--संज्ञा स्त्री० [सं० ढोल] एक वाघ । दे० 'ढोल'-१ । उ०- --हिंदी प्रेम०, पु० २२३ । नाचौ घूघट खोलि ज्ञान की ढोल यजामो-पलटु०, पृ०६१ ढोला-मज्ञा पुं० [सं० दुर्सम, दुल्लह, राज०, ढोला]१ पति । ढोजक-संशा सी० ढोल] छोटा ढोल । ढोलकी। प्यारा। प्रियतम । २ एक प्रकार का गीत । ३ मुर्ख ढोलकिया-संज्ञा पुं० [हिं० ढोलक] ढोल बजानेवाला। मनुष्य । जह। ढोलकिहा-सक्षा पुं० [हिं० ढोलक] दे॰ 'ढोलकिया' | उ.-फंटत ढोलिअरा--संज्ञा पुं० [हिं० ढोल] ढोल बजानेवाला व्यक्ति । उ०- ढोल बहु ढोल फिहन की पेंगुरिन तर तर।-प्रेमघन०, ढेलियरा के होलें-होलें ढोलु बजाइ ।-पोद्दार अमि० ग्र०, मा० १, पृ० ३६ ॥ पृ० ६१८ ढोलको-सशास्त्री० [हिं० ढोलक] दे० 'ढोलक' । ढोलिका-~-सा खीसे होल] दे॰ 'ढोल'। उ०--सग राधिका ढोलढमका-सा पुं० [हिं० ढोल+ अनु० ढमकका ] दे॰ 'ढोल' सुजान गावत सारंग तान, बजत बासुरी मृग बीन ढोलिका । का यौ। __~भारतेंदु ग्रं, मा०२, १० ३६३ । ढोलन'-सबा पुं० [सं० ढोलन] दे० 'ढोलना' । ढोलिनी-सका स्त्री० [हिं० ढोलिया] ढोल बजानेवाली। डेफालिन । उ.-नटिनि डोमिनी ढोलिनी सहनाइनि भेरिकारि । नितंत ढोलनार-संशा पुं० [मप०] दूल्हा । प्रिय। प्रियतम । उ०-ढोलन तत विनोद पके विहसत खेलत नारि ।-जायसी (शब्द०)। मेरा भावता वेगि मिलहु मुझ पाइ। सुपर ब्याकुल विरहनी ढोलिया-सा पुं० [हिं० ढोल] [स्त्री० ढोलिनी] ढोल बजानेवाला तलफि तलफि जिय जाय ।-सुदर ग्र०, भा॰ २, पृ. ६८५। व्यक्ति । उ०-मीर बडे बडे जात बहे नहा ढोलिये पार लगा. ढोलनहार-वि० [हिं० ढोलना] ढालने या ढलकानेवाला। उ०- वत को है। ठाकुर (शब्द०)। मन नित ढोलनहार ।-कबीर , पृ० १८। । ढोलियापुर-[हिं० दुलकना या ठुलना] एक जगह स्थिर न रहने- होलना सझा पुं० [हिं० ढोल] १ ढोलक के प्राकार का छोटा वाला । गतिशील । रमता। उ.-ढोलिया साघु सदा ससारा। जतर जो तागे में पिरोकर गले में पहना जाता है। उ०- ~धरनी०, पृ० ४१। प्राने गढि सोना ढोलना पहिराए चतुर सुनार ।-सूर ढोली'-सहा खी० [हिं० ढोल] २०० पानों की गडी । उ0-ढोलिन (Hद०)। २ ढोल के माकार का बड़ा बेसन जिसे पहिप ढोलिन पान बिकाना मीटन के मैदाना ।-कबीर (शब्द०)। की तरह लुढ़का कर सहक फा कर पीटते या खेत के ढेले, ढोली२-सहा श्री० [हिं० ठठोली, ठोली] हंसी । दिल्लगी। ठठोली। फोरकर जमीन चौरस करते हैं। ठट्टा । १०--सूर प्रभु की नारि राषिका नागरी चरचि लीनो ढोलना-समा पु० [सं० दोलन बच्चों का छोटा झूला । पाचना। । मोहि करति ढोली:-सूर (शब्द०)। ढोलना-क्रि० स० [सं०दोलन] १ ढरकाना । ढालना । 10 क्रि० प्र०—करना । होना। (क) रे घटवासी, मैंने वे घट तेरे ही चरणो पर ढोले, कौन ढोव-सा पुं० [हिं० ढोवना] वह पदार्थ जो पिसी मंगल के अवसर तुम्हारी बातें खोले !-हिमत, पृ० २६। (ख) चोवा पर लोग सरवार या राजा को भेंट ले जाते है। डाली। नजर करे कूपले ढोली साहिब सोस ।-ढोला०, दु. ५६२ । २ - उ.-ले ले ढोव प्रजा प्रमुदित पले भाति मांति भरि भार। इधर उधर हिलाना । डुलाना । मलना । जैसे, वर ढोलना।' -तुलसी (शब्द०)। ढोलनी-सका बी० [सं० योजन] बच्चो का झूला । पालना । उ.--- ढोवना किस.हिडोवा] दे० 'दोना'।