पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८९

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कदम बढ़ाना। उ०-क्या नहीं बेडिंग भरें ढग हम । नव लड़खड़ाता हुमा । उ०-विहरत विविध बालक सग । गनि मयों पाय डगमगा मेरा !-घुमते०.१०१०।ग मारना- उगमग पनि डोलत, घूरि, धूसर मंग।-सूर, १०१।। कदम रखना लवे पैर बढ़ाना। उ०-मारि हगे जब फिरि २ विचलित । निएचयहीन । चली सुपर चेनि दुरै सब पण। मनहुँ पद के बदन सुधा को सुगमगना -क्रि० प्र० [हिं० रगमग ] ३० 'गमगाना। आदि उडि लगत भुमंग।-सूर (शब्द०)। उगमगाना-कि०म० [हिं० डा+मग] १. पर उपर हिलना २. पक्षने में वहां से पैर उठाया जाय पोर जहाँ रखा जाय उन होलना। कभी इस बल कमी उस पल मुकना 1 स्पिर न दोनों स्थानो के बीच की दूरी। उतमी दूरी जितनी पर एक रहना । परयराना । लड़खड़ाना । जैसे, पैर डगमगाना, नाव जगह से दूसरी जगह कदम पड़े। पैर। डगमगाना। २ विचलित होना। किसी बात पर वन बगल-फि० वि० [हिं० ग+एक ] एक दो पग। एकाध रहना। कदम | 10-गकु डगति सी चलि, ठठुकि चितई, चली डगमगाना-क्रि० स० १. हिलाना इलाना । फपित करना । २. ए जाति चितु चोरटी, वह गोरटी नारि । विचलित करना । द न रहने देना। -बिहारी २०, दो०१३९ । डगमगोल-संभा स्त्री० [हिं० डगमग ] डावाडोल पुत्ति । विचलन । गपाली-सहा की. [सं. डाकिनी] डाकिनी। उ.-मूतप्रेत मस्थिरता। 30-टि डगमगी नाहिं सत को पचन न माने । गधाली मान करत बत।-नट०, पृ० १७.। -पलटु, मा० १, पृ० ३॥ सगडगाना-कि. प. [ मनु० 1 हिलना। इधर से उभर हिलना। उगर-संशश्री. [ हि० ग] मार्ग। रास्ता । पप । पैठा।०- कोपना। नगरक घेनु गरी संजर । मुविनि वसु मकरस्या- मुहा०-गडगाकर पानी पीना तेजी के साथ एक दम मे बहुत विद्यापति, पृ० ३३२। सा पानी पीना। महा०-गर बताना=(१) रास्ता बताना । (२) उपाय बताना। उगढी-सबा नी.[हिं० गर] मार्ग। रास्ता। राह। 30- उपदेश देना। अगर पाना=निकास पाना । स्थान पाना। बिगड़ी बनती, बन जाय सहो। हगडी गमती, गड़ जाय उ.-प्रपमहि गए गर तिन पायो। पाथे के लोगनि मही1-अर्चना, पृ.६। पछितायौ !--सूर०, १०1९१९ । गरोलना-क्रि० प्र० [हिं० डग+दोलना] मगमगाना। डगरनाg --क्रि० म.हिगर] १ चलना । रास्ता लेना। हिसना कापना । उ०-मीपम द्रोण करण सुने झोउ मुखहू धीरे धीरे चलना । उ०—तात इते गरी द्विजदेव न जानती न पोले । ए पाडव क्यों काढ़िए घरना बगरोले।-सूर कान्ह प्रजों मग सूट। -द्विजदेव (शब्द०)। २. लुढकना। (शन्द०)। गिरते पढ़ते भागे बढ़ना। जे फूलन तुलती सुखिन पतुल ती उगीर-वि० [हिं० हग+ ढोलना ] सेवायोल। हिलनेवाला । प्रति ही खुलती ते डगरौं -पद्माकर प्र०, पृ० २८६। पसायमान। उ०-याम को एक ही जान्यो दुरापरनी गरमगर--सा खो• [हिं० डगर मनु० गर] राह कराह। मोर । जैसे घट पूरन न ढोले प्रधभरो गौर ।-सूर उ.-..जगर मगर महि, गर बगर नहि, रवि सखि, निस (सम्द०)। दिन, भाव नहीं। -केशव ममी०, पृ०१०। ढगण-समा० [सं०] पिंगल में चार मात्रामों का एक गण। उगरा-सा पुं० [हिं० डगर ] रास्ता। मार्ग। 10-गुरु कहो राम नाम नीको मोहिं लागत राम राज गरो सो!-तुलसी जगनाल-कि०प० [सं० पक्ष (= चलना), हिं० डिगना या ग+मा (प्रत्य॰)] १ हिलना । टसपना । खसकना। (धम्द०)। जगह छोड़ना। उ०-गान सभु सरासन केले। कामी गरा-सा पुं० [देश॰] बाँसकी पतली फट्टियों का बनाया वपन सती मन जैसे-तुलसी (शब्द०)। २. चूकना। मृब करना। २०-तुरंग मचावहिं कुंवर घर पनि मृदंग सुगराना-किस० [हिडगरना] १. रास्ते पर से जाना। निसान । नागर नट चितवहिं चकित, गहि न ताल बैधान। ले घलना । पलाना । २ हाकना । ३ लुढ़काना। --तुलसी (शब्द०)। ३. उगमगाना। लड़खड़ाना । 30- गरिया - श्री० [हिं० डगर] दे० 'गर। साति सी चलि कि चितई चली निहारि । लिए जाति डगरी:-सा सी० [हिं० डगर दे० 'गर'। 10--[5) जमुन चितु चोरटी वह गोरटी नारि-विहारी र०, दो० १३९ । भरत जल हम गई तह रोकत ढगरी। -सूर, २०१४२.1 मुहा०-रग मारना=हिलना । भटका साना। बसे,-उठाने (ख)तु चला चले पकड़ी गरी1-माराधना, पृ.१८। पर मालमारी रग मारती है। डगा-सा पुं० [हिं० डागा ] अगा। दरपी जाने की लकड़ी। उगवेदी-समा स्त्री० [हिं० डग वेडी] पैर को पेड़ी। ३०- नगाड़ा बजाने की लकी।पोर। 30-हसबकरिताह बध्यो ठान मैं पाप पाय, रगवेडी पाग्यौ ।--बज., कर परदलगा। किछु कहि पसा तबल देवगा।-जापसी पु. १६। डगमग-वि० [हिं० ग+मग ] हिलता सता । उगमगाता पा गाना-शि०स. रग ] दे० 'रिगाना। 1(प्रत्य॰)] सरासन के। कामी "पिछला सा । लता A