पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ठासना ठाट ठासना-कि० म० टन ठन शब्द के साथ खांसना। विना कफ स्वामित्व । माधिपत्य । शासन । --बिस्नु की ठाकुरी दीख निकाले हुए खोसना । ढासना। जाई।-कबीर० श., ०४, पु०१५। (ख) जम के जसूस ठाही-समा स्त्री० [हिं०] दे० 'ठाई। उ०--मन माया काल गति विनय जस सों हमेशा कर तेरी ठाकरी को ठीक नेकन नाही । जीव सहाय बसे तेहि ठही।-कबीर सा०, पृ० ५२३ निहारो है।-पधाकर (शब्द०)। ठाउरा-सया पुं० [हिं० ठावें+र (प्रत्य॰)] ठौर । माश्यस्यान। ठाट-सचा पुं० [सं० स्थातृ (= बड़ा होनेवाला)] १. फूस पौर ठिकाना। उ०--मनुवा मोर भइल रंग वाउर। सहज बांस की फट्टियो को एक मे बांधकर बनाया हुआ ढाँचा जो नगरिया लागच ठाउर-गुलाल. बानी, पृ० १०४। माह करने या छाने के काम मे पाता है। लकडी या बाँस ठाका-सा सी० [सं० स्ताघ अथवा स्तम्भन मथवा हि० थाक को फट्टियो का बना हया परदा । जैसे,—इस सपरेल का ( शकना) अथवा से० स्था+क(प्रत्य॰)] वाधा। रोक । ठाट उजड़ गया है। कावट । उ०-(क)जव मन गाहि लेत खलवारा । छूटो ठाक यौ०-ठाटवदी। हाटवाट | नवठट = छाने के काम में आने- मुए सिकदारा! -प्राण, पु. ५०१ (ख) बाझे मन गुरु का वाले पुराने ठाट को पूरी तौर से नया करना। उपदेश । तों को ठाक नही उद देश ।-प्राण०, पृ. ११ । २. ढाँचा। ढड्डा। पजर। किसी वस्तु के मूल प्रपो की योजना ठाकना+-क्रि० स० [हिं० ठाक+ना (प्रत्य॰)] ठीक करना। जिनके आधार पर शेप रचना की जाती है। रोकना। स्थिर करदा। उ०-दृष्टि को ठाकि मन को मुहा०-ठाट खड़ा करना = ढांचा तैयार करना । ठाठ खड़ा समभावै। फाम को साघि जाय महलि समावै ।-प्राण, होना = ढाँचा तैयार होना। पृ. २६। ३ रचना । वनावट । सषावट। देशविन्यास । शृगार । उ०- ठाकर-सपा पुं० [हिं० ठाकुर, गुज. ठकर] प्रदेश का स्वामी। (क) प्रज वनवारि ग्वाल बालक कहैं कौने ठाट रच्यो।- सरदार । नायक । उ०-इसलिये कहा गया कि पहले यहाँ सूर (शब्द०)। (ख) पहिरि पितबर, फरि पाडवर बहु तन कोई राजा या ठाकर रहता था।-फितर०, पु० ४६ । ठाट सिंगारयो 1-सुर (शब्द०)। ठाकुर--सा पु० [सं० टक्कुर ] [ स्त्री. ठकुराइन, ठकुरानी ] १ क्रि०प्र०-करना ।--ठटना-बनाना। देवता, विशेषकर विष्णु या विष्णु के अवतारो की प्रतिमा। मुहा०-ठाट बदलना=(१) वेच बदलना। नया रूप रग देवमूर्ति । दिखाना । (२) और का मोर भाव प्रकट करना। प्रयोजन यो०-ठाकुरद्वारा । ठाकुरबाडी। निकालने या श्रेष्ठता प्रकट करने के लिये भूळे लक्षण दिखाना। २. ईश्वर। परमेश्वर। भगवान् । ३ पूज्य व्यक्ति । ४ फिसी (३) थेष्ठता प्रकट करना। मूठमूठ अधिकार या बठप्पन प्रदेश का पधिपति । नायक । सरदार । अधिष्ठाता । उ०-- जताना । रग वाँधना । ठाट मांजना=दे० 'ठाट बदलना। सब कुंवरन फिर बैंचा हाथू । ठाकुर जेव तो जेथे साधू। ४ पाडवर । तडक भड़क । तैयारी । थान घोकत । दिखावट । जायसी (पन्द०)। ५ जमींदार। गांव का मालिक । ६. धूमधाम । जैसे,—राजा की सवारी बड़े ठाट से निकली। क्षत्रियो की उपाधि । ७. मालिक। स्वामी । उ०-(क) यौ०-ठाट बाट। ठाकुर ठक भए गैल पोरें चप्परि घर लिज्झित।कीतिक, ५. चैनचान । मजा । धाराम । पृ० १६ । (ख) निडर, नीच, निर्गुन, निधन पहें जग दुसरो मुहा०-ठाट मारना -मौज उड़ाना । मजे उड़ाना 1 चैन फरना। न ठाकुर ठाव -तुलसी (शब्द०)। ८.नाइयो की उपाधि । ठाट से काटना = चैन से दिन विताना । नापित। ६ ढग। ली। प्रकार। ठव । तर्ज अदाज । जैसे,—(क) ठाकुरद्वारा सम्हा पुं० [हिं० ठाकुर+सं० द्वार] १ किसी देवता उसके पलने का ठाट ही निराला है। (ख) वह घोडा ब? विशेषत विष्णु का मदिर। देवालय। देवस्थान । २ ठाट से चलता है। ७. मायोजन । सामान। तैयारी। जगन्नाथ जी का मदिर जो पुरी मे है। पुरुषोत्तम धाम । ३. मनुष्ठान । समारभ । प्रबध। बदोषस्त । उ०-(क) पालव मुरादाबाद जिले मे हिंदुपो का एक तोयंस्थान । पैठि पेड एइ फाटा। सुख मह सोक ठाट परि ठाटा |-- ठाकुरप्रसाद-मश० [हिं०] १ देवता की निवेदित वस्तु । नैवेद्य । तुलसी (शब्द०) । (ख) कासो फहौ, कहो, कैसी २ एफ प्रकार का पान जो मादों महीने हे प्रत पोर क्वार फरी मब क्यों निवहै यह ठाट जो ठायो। -सुदरीसर्वस्व फे श्रारम में हो जाया करता है। (शब्द०)। ठाकुरवाड़ा-सा बी० [हिं० ठाकुर+पाड़ा या बबाड़ी (घर)] क्रि० प्र०—करना । उ.-रघुबर कहेउ लखन भल घाटू । देवालय । मदिर। करहुँ कतहुँ अब ठाहर ठाटू!--मानस, २११३३ । ठाकरसेवा-सहा वी० [हिं० ठाकूर + सेवा] १ दक्षता का पूजन । सामान । माल असबाब । सामग्री। उ.--सब ठाट पहा २ वह संपत्ति जो किसी मंदिर के नाम उत्सर्ग की गई हो। रह जावेगा जब लाद चलेगा बनजारा 1--नजीर (शम्द०)। ठाकुरो-यमा ब्री० [हिं० ठाकुर+३ (प्रत्य॰)] ठकुराई। ९ युक्ति । ढव । ढग । उपाय । डोल । जैसे—(क) किसो ठाट से