पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६५

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ठठुकना ठनका टकना-कि.प्र. [हिं० ] दे० 'ठठकना', 'ठिठकना' । उ- कि०प्र०करना । होना। दूर ही से मुझे घाट में नहाते देख ठठुके ।-फ्यामा, ठडिया-सम.हि. ठा] वह नैना जिसकी निगाली बिलकुल पृ.६७ सरी होती है। ठठेर मंजारिका-सहा श्री. [हिं० ठठेरा+० मार्जारिका ठठेरे विशेष-ऐसा नैचा सखनऊ में बनता है और मिट्टी की फरशी में की विल्मी 13-महे बजी हरिन भ्रम कहा बजावै चीन । लगाया जाता है। मुसलमान इसका व्यवहार पषिक या ठठेर मंजारिका सुर मुनि मोहेगी न1-दीनदयाल करते हैं। ठहा-सा to [हिं० ठडा] १. पीठ को खड़ी हड्डी । रीढ़ । विशेप-ठठेरों की बिल्ली के सामने रात दिन बरतन पीटे जाने यो०-ठड्डाटी =जिसकी कमर मुको हो । कुबड़ी।-(स्त्रि०). से न तो वह पोड़ी खड़खड़ाहट से डरती है न किसी अच्छे २. पतग में लगी हुई खड़ी कमाची। कोप का उसटा । ३ ढोचा। सद पर मोहित होती है। टट्टर । 30---दुनि भौर केलो ठडेसहा कर देते।- ठठेरा-समा० [मनु. ठन ठन पयवा हिं० टाठी+एरा (प्रत्य॰)] प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०६।। [स्रो० ठठेरिन, ठठेरी ] पातु को पीट पीटकर वरतन ठढा---० [सं० स्थात] खदा। दंडायमान । उ--तरकि तकि बनानेवाला ।परतन बनानेवाला । फसेरा । प्रति बज्र से गरौं। मदमत इद्र ठढ़ो फलकार 1--नद० मुहा०-ठठेरे ठठेरे चक्षसाई-से का तैसा व्यवहार। एक ही पं०,१० १९२। प्रकार के दो मनुष्यों का परस्पर व्यवहार । ऐसे दो प्रादमियों क्रि०प्र०-करना।-होना। के बीच व्यवहार पो चालाकी, धूर्तता, चल मादि में एक ठदिया-या स्त्री० [हिं. ठाद (खा)11.काठ की वह ऊँनी दुसरे से कम न हों। ठठेरे को दिल्ली - ऐसा मनुष्य जो कोई पोखली जिसमें पड़े हुए धान को लियो सड़ी होकर कुटठी अरुचिकर काम देखते देखते या सुनते सुनते मभ्यस्त हो गया है। २. मरसा नाम का साक। ३ पशुमों का एक रोग । हो। ऐसा मनुष्य को कोई खटके की बात देखकर न चौके ठदियाना-क्रि० स० [हि.ठा (= खडा)] खड़ा करना। या न घबराय । ठही-सवा को [हिं॰] देठदिया। विशेप-ठठेरे की बिल्ली दिन रात बरतन का पीटना सुना करती है। इससे वह किसी प्रकार की माइट या खटका सुनकर ठनसमा स्त्री० अनुष०] धातुखर पर प्रामात पडने का शब्द किसी धातु के बजने का शन्द। नहीं करती। ठठेरा--मश पुं० [हि ठाठ ] ज्वार बाजरे का उठल ।। यौ०-ठन ठन-चमड़े से मढ़े हुए पाजे का शन्द । ठठेरी-संवा श्री० [हि. ठठेरा] १ ठठेरा को स्ली। २. ठठेरा उनक और उनक-सका बी.[अनुध्व. ठन ठन] १. मृदंगादि की ध्वनि । चमड़े जाति की स्त्री।३ ठठेरा का काम। वरतन बनाने का काम । से मढ़े बाजे पर पापाव पड़ने का शब्द । उ०-खनक चुरीन यो०-ठठेरी बाजार। की सौ ठनक मृदगन की रुनुक अनुक सुर मूपुर के जाल को। ....पपाकर (पन्द०)। २. रह रहकर पाघात पड़ने की ठठरी-10 खौ. हिटलर (-रोक)] प्रवरोध । रोक । सी पीड़ा। टीस । पसक। ३. धातुखड पर मापात होने मार। .--बीसो तीस गोलांसू ठठरी तोड़ नापी। साले से उत्पन्न बन्द । ठन । तोप राजा की प्रचंका झोड नाती।-विखर०, पू. ७५ । मुहा०-ठनककर बोलना = कड़ी प्रावाज मे कुछ कहना । ठठोल-सधा . [ हि. ठट्टा] [सौ. ठठोलिन] १ ठट्टेबाज । उ.-सिंह ठवनि होए बोसे ठनकि के, रन जीते फिरि विनोद प्रिय। दिल्लगीवाज । मसखरा । १०-मूछ मरोरत पावै ।---सं० दरिया, पृ० ११५ । डोलई ऐठ्यो फिरत ठठोल ।--सुदर० प्र०, भा० १, पु. ३१६।२ ठठोधी । हसी। दिल्लगी। उ०-पाद परी ठनकना-क्रि०प० [अनुव० ठन ठन] १ ठन ठन शन्द करन धातुखत अथवा चमरे से मढ़े वाजे पादि का भाषात पाकर सब रस की बात बदिगयो दिरह ठठोलन सौ।--भारतेंदु बजना । जैसे, तबला ठनकना। २. रह रहकर माघात पड़ने प्र०, मा० २, पृ० ३८५। की सी पीड़ा होना । जैसे, माथा ठनकना । ठठोली-सी .हि. ठट्टा 1 हंसी। दिल्लगी। मसखरापन । मुहा०-तबला ठनकना = नुस्य गीत मादि होना । 30-हम मो मजाक। यह बात जो केवल विनोद के लिये को जाय । रस्ते रात के पावत रहे तो तबला ठनकत रहा। -भारतेंदु उ०-ऐसी भी रही ठठोली।-अर्चना, पृ० ३४ ॥ ०, भा० १, पु० ३२६ । माया ठनकना- किसी बुरे लक्षण त्रि० प्र०—करना ।-होना। को देखकर चित्त में घोर भाशंका उत्पन्न होना । जैसे, दार ठड़कना-कि.म.हि.] दे० 'ठठकना', 'ठिठकना'। पाते ही मापा ठनका। ठड़ा-वि० [सं० स्पातृ ] खड़ा । दंडायमान । ठनका-सदा पुं० [हिं० ठनक] १ पातुखष्ट प्रादि पर भाघात पड़ने यो-ठड़िया न्यौहार-वह सामाजिक व्यवहार जिसमें रुपयो का शब्द । २.भाघात | ठोकर । ३. रह रहकर भाघात का देव देव व होता हो। पड़ने की सी पीड़ा।