पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२२२

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टक्कर' १८६८ टदाह ४. घाटा । हानि। नुकसान। धक्का । जैसे,-१०) को टक्कर (=पिपलना)]पी, परवी, मोम प्राधिका योर सादर ठे बैठाए लग गई। द्रव होना। पिपसना। क्रि० प्र०-लगना। संयो० कि.--जाना। मुहा०--टक्कर झेलना = (१) हानि उठाना। नुकसान सहना । २ हुक्ष्य का दोगुना होना। पित गदा मादि उत्सान होना। (२) सकट या पापत्ति सहना । हृदय पर किसी को प्रार्थना पाकर पालिका प्रभाव पदना। टक्कर--सका पुं० [सं०] शिव (को०] । संयो० किमाना। टखना-सा पुं० [सं० रा ( ग)] एठी के ऊपर निफनी हुई टघराना-मि... (हि. रघरमा ] धी. मोग, परपी भादिगे हड्डी की गांठ । पैर का पट्टा । गुल्फी पायपि। पाप पर सफर करना । पिना । दग -संवा स्त्री० [?] टकटको'। ७०-विपि पालुस त वेह संयोकिo-HIT!--ना। मे। ____टग फूसह वाजि जनु गरि-पु. रा०, ५५५ । टचटच-कि वि. दि. टपमा( - वपना)] पार पाया टगटग -कि. नि० [हिं० टफटकाना] टकटकी लगाकर । पट (पाप की सपट का सम्म) 3.- ट म तुम स्नुि एकटक । उ---कवीर टग टग पोपत पल पल गई विहाद। पागि गोदिना पापो दाय रिक्ष मोहि पागो।- -कबीर प्र०, पु०७२। पायभी (.). टगटगाना -क्रि० स० [हिं० २० टकटकाना'। टपना--कि०म० [हिं० षटर ] प्रागाना । दगटगी-धश मौ० [हिं०] दे० 'टफटकी'150-पलू एक पर दपनी-रानी.[ ८] मोहा एकपातार बिग्रे कमरे न होद पवर गिटगी लागी रहे।-सुदर. य०, भा० १ बरतनों पर नाकाची करते है। पृ० २८॥ टटg-NE. [हि.]२०'तर'13-मारत मागि नमुटर गट्टग -क्रि० वि० [हिं० टगटगी] स्पिर दृष्टि से । टकटक। वन पापा ।-जाममोप्र. (गुरु), पृ. ३७० । १०-ट्टा पाहि रहे राप लोई। विप्पो पर तेज पदन्मुत टटका- [ HAIRMAओ टहो। १. तत्काल का। सीई।-पृ० रा०, १२॥३६ सुरंतना प्रस्तुत या क्षित। रिमको वनारसे पाए टगण-समा पु० [सं०] मानिक पों में से एक । पहछह मात्रामा हप बहुत देर न हो। हात कापाया। उ-(3) मेंटे का होता है और इसके १३ उपभेद है। जैसे,---555, 17, पोरन मिटात पार परीटको।-नूर (स.) () इत्यादि। मनिहार गरे मुगुमार पोटभैम परे पि फो टटको।- टगमग-कि- वि० [हि. टफट को ] एक्ट फ। स्पिर । उ०- रमतान (शम्द०)। २.नपा 1 को टगमग नयन सु मग मग विमग सुभुल्लिय भंग ।-पु. रा. टदा-ut.[] [.औ• टटही ] हो।रटिया दाटी। २१४५७ 1 टदी-समालो. [पाधी . तोपको। २० करो'। ३. रगना-कि० . [१] टमना ! हिंगना । 30-टगै टेक टूटि महि जा।। टले कार मौरहि को पाई।---मुदर०प्र०, टप्योल-०ि [हिं०]. 'टरिया। 3.-ौडो हिरे मा.१.१० २२२ । उदानवो जो टटपूको दोह-मुदर. मा. २, पृ. टगर-सहा पुं० [सं०] १.टंकण । सोहागा । २.पिलास । श्रीमा। ७६७ ३गर का पेड। ४ में (को०)। टोला (फो०)। टटरा--14 . [k. स्टदा [ोटरी रोटिया टगर-दि० तिरछी निगाह से देखनेवामा पाठाना (को०] । या टाटो। क्रि० प्र०-वेखना। टटरी- मोहदि.२• 'टट्टी। टगरगोड़ा-सहा . [2] लड़कों का एक रोल जिसमें कुछ फोडियो टटलपटवा-१. [पनु.] पटसट । उटरटोग। उ.-- पिकरके जमा कर देते हैं और फिर पफ कड़ी से उम्हे टटमयटम चोल पाटन कपोस दे दीपति पटन मैं पटल ह मारते है। फैपटको!-देव (पद)। टगर टगर-नि.वि.वि.] प्रोसें खोले हुए। ध्यान बगाकर। टटाना-कि० . [3] सूरा नाना। . किटकीपकर। ३०-सोभासदन यदन मोहन को देख रटांवरील-निलrfiटाट+प्रपर टाट पहननेवामा घिसा बी बिये टमर टगर ।-घनानव, पृ. ४५९ ! , वर टाट हो। 30-सुदर गप टटांवरीहरि दिगार हो। टगरा-वि० [से टेरक ] ऐंचाताना । भेंगा। • -सुदर००, या०२, १.३५ ॥ टगाटगी -सहा सी० [हिं० टकटकी ] समाधि की अवस्था। टावक -शा ०।1टायक रामक टामन । टोटका । उ.--टगारगी जीवन मरण, ब्रह्म बराबरि हौदा-दादु०, टोना । उ.--नददास सखि मेरी कहानी काम के पाए पृ० १४४। दटावक टोने -०५, पृ. ३४३ । टधरना-क्रि० प्र० [सं० तप ( = गरम करना)+ गरण टटाल-बापुं० [सं०] ३. 'टल' ।