पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२१८

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टकवाना १९६४ टकमक ३ सीकर पटकाया जाना। सिलाई के द्वारा ऊपर से लगाया टिकना था पटकना कि उसका (प्रथम पस्तु का) बहुत सा जाना । जैसे, झालर में मोती टके हैं। भाग नीचे की भोर लटकता रहे । लटकना । जैसे,(सूटी पर) संयोक्रि०-जाना। कपड़े टंगना, परदा टॅगना, तसवीर टंगना । ४ रेती या सोहन के दांतों का नुकीला होना । रेती का विशेप-यदि किसी वस्तु का बहुत सा प्रश माधार पर हो और ' तेज होना। घोड़ा सा मन माघार नीचे लटका हो तो उस वस्तु को टगी हुई नही कहेंगे। 'टेंगना' और 'लटकना' में यह पतर है संयो०क्रि०-जाना। कि 'टंगना' क्रिया में वस्तु के फटने या टिकने या प्रटकने का ५ अंकित होना । लिखा जाना । दर्ज किया जाना । जैसे, यह भाव प्रधान है, और 'लटकना' में उसके बहुत से प्रश का नोचे रुपया बही पर टेंका है या नहीं? फी मोर मघर मे दूर तक जाने का भाव । संयो० क्रि०---जाना। सयोकि०-उठना ! जाना। विशेष-इस पर्थ मे इस क्रिया का प्रयोग ऐसी वस्तु, रकम या २ फांसी पर चढ़ना 1 फांसी लटकना । नाम के लिये होता है जिसका लेखा रखना होता है। संयो कि०-जाना। ६ सिल, चक्की मादि का टाँकी से गढ़े करके खुरदरा किया। टॅगनार---सबा पु०१ वह माडी बंधी हई रस्सी जिसपर कपडे पादि जागा । छिनना । रेहा जाना । कुटना। टाँगे या रखे जाते हैं। मलगनी। बिलगनी। २. जुलाहो की टँकवाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'टकाना'। वह रस्सी जिसमे उठोनी टोगो जाती है। ३. वह फदा जिसे टँकसाति -सहा स्त्री [हिं०] दे० 'टकसाछ' । उ०-घडी पोर मेटी, लोटे मादि के गले में फंसाकर हाथ में लटकाए हुए ले शब्दि रचो टॅकसालि । -प्राण०, पृ० १.२ । चलने के लिये बनाते हैं। टॅकार्ड-सद्या स्त्री० [हिं० टोकना ] १ टोकने की क्रिया या भाव। टॅगरी-सदा स्त्री1ि0'गी। २. टोकने को मजदूरी। टॅगा-सचा पु० [ देश०] भूज। टॅकाना--क्रि० स० [फना का प्रे० रूप! १. टांकों से जोडवाना टॅगारी-सश जी [ से० टङ्ग] कुल्हाड़ी । कुठार । या सिलवाना । जैसे, जूता टंकाना। २ सिलाकर लगवाना। टॅड-सका पुं० [हिं० रा ] झगड़ा। प्रपच । सासारिक माया। जैसे, चटन टैंकाना। ३. (सिल, जोता, चक्की मादि) ' उ.-टेंड सकट मे ग्रसित है सुत दारा रहसाई। भीखा खुरदुरा फराना । कुटाना । ४ सिखवाना।फवाना। थ० पू०८७1 टॅकाना-क्रि० स० [सं० टङ्क (-सिक्का)] सिक्कों का परखवाना टॅडिया-सना' सी० [ सं० तार मयवा देश० ] बाह में पहनने का एक सिक्कों की जाँच कराना। गहना जो मनंत के माफार का, पर उससे भारी भोर चिना टॅकारना-क्रि० स० [हिं० टकारना] दे० 'टकारना' । 3.-सुफलक घुडी का होता है । टाड । दहूंटा। बदि निज धनुष टंकायो। बीस बारण पाहलीकहि मान्यो। टॅडलिया-सा मी० [ देश० ] बनचौलाई जो कुछ कोटेदार होती -गोपाल (सन्द०)। है। यह साग मोर दवा दोनो के काम माती है। टॅकावल@-नि. [ सं टङ्क (=सिक्का) यावल (-वाला)1 टकोवासा । बहुमूल्य 13.-काने कुडल मलमलइ कठ टकावल दस टॅसहा-सा पुं० [हि. टोस+हा (प्रत्य॰)] वह दैल जो नसों के हार । - ढोला०, दू०४८० । सिकुड जाने से लंगड़ा हो गया हो। टॅकोर -मक्षा पुं० [हि.टेकोर ] दे० 'टंकोर'। उ०-प्रभु कीन्ह ट-सपा पुं० [सं०] १. नारियल का खोपड़ा। २. वामन । ३ धनुष टॅकोर प्रथम कठोर घोर भयावहा ।--तुलसी (शब्द०)। चौथाई भाग । ४. गन्द । टँकोरी-सशा श्री [सं० ट] दे० 'टकौरी'। टई -सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'ठही। टॅकौरी-सचा ली. [सं० टच ] सोना, चांदी पादितौलने का छोटा टक-सवा स्त्री० [सं० टक (=षना) या सं० भाटक] १. ऐसा तराजू । छोटा काटा। ताकना जिसमें बड़ी देर तक पलक न गिरे। किसी ओर लगी टॅगदी-सश सी० [सं० टन ] घुटने से लेकर एंडी तक का भाग। या बंधी हुई दृष्टि । गडी हुई नजर । स्थिर छ । टांग मि.प्र०-लगना।-लगाना। मुहा०-टॅगी पर उडाना = लंग मारकर गिराना । कुश्ती में मुहा०--टक बंधना-स्थिर दृष्टि होवा ! टक बाँधना=किसी पैर से पैर फंसाकर गिराना । मगा मारना। की पोर स्थिर दृष्टि से देखना। टकटक देसना-बिमा पलक टॅगना'-कि०म० [सं० टष्ट्वाण या टङ्गण (-जड़ा जाना) ] १. गिराए लगातार कुछ कास तक देखते रहना। टक सगानाम किसी वस्तु का किसी ऊँचे माधार पर बहुत पोडा सा इस पासरा देखते रहना । प्रतीक्षा में रहवा । प्रकार पटफना या ठहरा रहना कि उसका प्राय. सब भाग उस २. लकड़ी भादि भारी बोझों को तौलनेवाले गड़े तराजू का मापार से नीचे की पोर गया हो। किसी वस्तु का दूसरी चोसूटा पड़ा। वस्तु से इस प्रकार घना वा फेसना अथवा उसपर इस प्रकार टकझाकसमा बी.हि. टकटकी झांकचा ] ताकझाक। -प्रमा भयावहा [सं०र टॅकौरी