पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२१४

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मोरा' १८६० संयो०क्रि०-डालना ।-देना। मौल-वि०१. ढोला । जो कसा या तना न हो। ३. इकट्ठा करना । एकत्र करना ।-(क्व०)। यौ--भोसझाल= ढीलाढाला। झोराgt--सच पुं० [हिं० झोरा] गुच्छा । झम्बा । २. निकम्मा। खराब । बुरा । मोरा -सा पुं० [हिं० झोला] दे॰ 'झोला'। उ.--लाल मोल-सहा पुं० मूल । गलती। जैसे-गदहे की गौने में नौ मन का मखमली रुचिर पान को झीरा धारे।--प्रेमघन॰, भा०१, _ झोल ।-(कहा०)। मोल-स० [हिं० झिल्ली या झोली ] १. वह झिल्ली या मोरिल-सा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'झोली'। थैली जिसमें गर्म से निकले हुए बच्चे या भडे रहते हैं। जैसे, कुतिया का झोल, मुरगी का झोल, मछली का झोल मादि। मारीg -सका श्री. [हिं० झोली] १ झोली। उ०—(क) भाय विशेष-इस शब्द का प्रयोग केवल पशुभों पौर पक्षियों मादिके करी मन की पद्माकर ऊपर नाय प्रबीर की झोरी।-पदमा- संबंध में ही होता है, मनुष्यों मादि के संबंध में नहीं। कर (शब्द०)। (ख) हमारे कोन वेद विधि साधे। बदमा मोरी दा प्रघारी इतनेन को माराधै ।---सुर (शब्द०)। क्रि० प्र०-निकलग-निकालना। २. पेट । झोझर । प्रोझर । उ.----जो मावै प्रनगनत करोरी। मुहा०-झोल वैठान- मुरगी के नीचे सेने के लिये परे रखना। डारे खाइ भरे नहि झोरी ।-विश्राम (शब्द०)। ३ एक २. गर्भ। उ०-भक्ति पीज पिनसे नही माय पो जो झोल । जो प्रकार की रोटी । उ०-रोठी पाटी पोरी झोरी। एक कोरी कंचन विष्ठा परे घटन ताको मोल । कबीर (शब्द॰) । एक घीव चमोरी।सूर (शब्द०)। @४ रस्सी भादि मोल-सबा पुं० [सं० ज्वाल हि झाल] १. राख। भस्म । खाक। के जासों या फदो से युक्त झोला के भाकार का बड़ा जाल 30-(क) तुम बिन कता धन हरछ (हृदै या ह्रदै) तृन तृन जिसमें माहत लोगो को उठाकर पहुँचाते थे। दे० 'झोली'-७॥ बरमा डोल । तेहि पर विरह जराइ के चहै उड़ावा झोल 1- उ.-(क) घाइय दिल्ली नयर प्रवर सेन जुधमग्ग । जायसी (शब्द०) (ख) मागि जो बगी समुद्र मे ठि घाय धुमत झोरिन घले, श्रवन सुनतह पग्गि।-पृ० रा०, दुटि खसे जो झोल । रोवै कविरा हिभिया मोरा हीरा जरै ६१ । २४६८ । (ख) वाजीद पनि झोरी परिय, धाउ पप अमोल ।—कबीर (पाब्द०)।२ दाह । जलन । रघर तृपति । पु० रा०1०1३४) मोलदार-वि० [हिं० झोल+ फा० दार] १ जिसमें रसा हो । मोल-सबा पुं० [हिं० झालि (= माम का पना)] तरकारी मादि रसेदार। २. जिसपर गिलट या मुलम्मा किया हो। ३. झोल का गाढ़ा रसा। थोरवा। २ फिसी अन्न के माटे मे मसाले सवधी। ४. जिसमे झोल पडता हो। ढीलादाला। देकर कढी मादि की तरह पकाई हुई कोई पतली लेई । ३ मोलना-क्रि० स० [सं० ज्वलन] जलाना। 10- हमको तुझ मोड़। पीच । ४. मुलम्मा या गीलट जो धातुभो पर चढ़ाया बिन सबै सतावत । पुछ पूछ सरदार सखन के इहि विधि जाता है। दई बड़ाई। तिन प्रति बोल झोलि सन् डारयो मनल भंवर क्रि० प्र०—करना ।-चढ़ाना ।-फेरना। को नाई।-सुर (शब्द०)। यौ०-झोलदार। झोला'--सचा पुं० [हिं० झलना वा से० चोल] [बी० मल्पा. भोली] १. कपड़े की बड़ी झोसी या थैली। २ ढोलाढाला मोल-सा पुं० [सं० दोल (दोलन), हि झूलना] १ पहने या ताने हुए कपड़ों मादि में वह मश जो ढीला होने के कारण झूल या गिसाफ । खोली। जैसे, बदक का झोला । ३. साधुनों का ढोला फूरता। चोला। ४ राठ का एक रोग जिसमें कोई भग लटककर झोले की तरह हो जाता है। जैसे, करते या कोट (जैसे, हाथ पैर मादि) ढीला परकर बेकाम पड़ जाता है। में का झोल, छत की चादनी मे का झोल पादि। २. कपसे एक प्रकार का लकवा या पक्षाघात । पादि के ढीले होने के कारण उसके झूलने या लटकने का भाव या क्रिया । तनाव या कसाब का उलटा। मुहा०-किसी को झोला मारना = (१) बात रोग से किसी पग क्रि० प्र०-डालना ।-निकलना ।—निकालना।-पड़ना । का बेकाम हो पाना । पक्षाघात होना । (२)सुस्त पड़ जाना। बेकाम हो जाना। ३. पल्ला। पांचल । उ.-फूली फिरत जसोदा घर घर उपटि ५ पेडों के पाला ल प्रादि के कारण एकबारगी कुम्हला जाने या कान्ह पन्हवाय अमोल । तनक बदन दोउ तनक तनक फर तनफ चरन पोंछत पट झोल । —सूर (शब्द०)।४ परदा । सूख जाने का रोग। मोट । पाह। उ०-ऊधो सुनत तिहारो बोल । ल्याए हरि क्रि० प्र०-मारना। कुसलात पत्य तुम घर घर पारयो गोल । कहन देह कहा करे ६. मटका । भाघात ! का। झोंका । बाधा। भापत्ति । न०-- हमरो वन उठि पैहे झोल । भावत ही याको पहिचान्यो पाकी खेती देखिके गरवै कहा किसान । मजहूँ झोला बहुत है निपठहि भोटो तोल |--सूर (शब्द०)। ५ हाथी की चाल घर मावै तब जान-कबीर (शब्द०)। ७ हाय का का एक ऐब जिसके कारण वह बिल्कुल सीधा न चलकर सकेत ! इशारा । ८ पाल की गोन या रस्सी को झटका देने बराबर झूलता हुमा चलता है। या दीलने की क्रिया।