पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९९

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मिड़की मिलना मिड़की-सा त्री० [हिं० झिड़कना ] १. वह गात जो झिड़ककर झिरझिर बहे ग्यार प्रेम रस रोल हो।-घरम०, पृ०४६ ॥ कही जाय । डाँट । फटकार। २.झिर फिर शन्द के साथ। कि०प्र०-देना।-मिलना । सुनना। झिरझिरा-वि० [हिं. झरना बहुत पतला या बारीक (कपड़ा २.झिडकने की क्रिया या भाव । मादि) 1 झझरा । झीमा। मिमिड़ाना-क्रि० प्र० [ मनु०] भला बुरा महना। कद्र वचन मिरमिराना-कि०म० [अनु०] १. झिरझिर शब्द के साथ बहना कहना । चिड़चिडाना। (वायु, जल मादि) । २. दे० 'मिडभिडाना'। मिर्डामडाहट-सबा श्री[EO झिभिडाना झिरझिटाने का मिरना'-क्रि० प्र० [सं०/क्षर, प्रा० झिर, हिं/करना। बहकना । गिरना । प्रवाहित होना। 'झरना'। उ०- भाव या क्रिया ।-(क्व०)। जहां तहा झाड़ी में झिरती हैं झरनों की झड़ी यहाँ ।- मिनमिन -संघा स्त्री.[मनु०] दे० 'मन झन'। उ०-यह मिन- पंचवटी, पु. ६ झिन जतर बाजे भाला। पीवै प्रेम होय मतवाला।-द. मिरना-सा पुं०१ छेद । छिद्र । सुराख । २०भरना'। सागर, पृ० ३८ झिरमिर- वि1ि0 मिलमिल। -झिरमिर से. मिनवा-सधा पुं० [ देश ] महीन चावल का पान । उ०--राय- मूर । विन कर बाजे वाल तूर-दरिया• बानी, पृ०४८। भोग पो काजररानो। मिनदा रूद मो दाउदखानी ।- जायसी (शब्द०)। मिरहर, मिरहिर -वि० [हिं०] १. झीना । यिक्ति । छेदोंवाला। मिनवा-वि० [सं० सीण, प्रा. झीण ] दे. "झोना'। 3.-छिनहर घर पर झिरहर टाटी। घन गरजत कपै मेरा छाती।-कोर ग्र०, पृ० १८१ । २. झिलमिल । झलकदार झिप मिप-मि. वि० [मनु० ] रिमझिम शब्द के साथ। 30- १०-पग जमुन के बीच में एक झिरहिर नीरा हो।- पहले नन्हीं नन्हीं वूदे पड़ी, पीछे बडी बडी वूदों से झिप् घरम०, पृ. ३७। झिप पानी बरसने लगा।-ठेठ, पु. ३२ । मिरा-संशा पी० [हिं० झरना(= रस कर निकलना)] प्रामदनी। झिपना-क्रि० स० [हिं० छिपना ] दे० 'अपमा'। भाप। मिपाना-क्रि० स० [हिं० झिपना का स० रूप ] लज्जित करना। झिराना-त्रि०म० [हिं०] मुराना । पारमिदा करना । मिरिका-सचा श्री [सं०] झींगुर [को॰] । मिमकना-क्रि० म. [अनु॰] दे० 'भमकना'। मिरिहिरी -वि० [अनु.] मद मंद। धीरे धीरे । 10-मिरि- मिममिमी-वि० [हि. झीनी; या देही झिमित्र (अवयवों की जड़ता)] मंद ज्योतिवाली 1 30--उसकी झिमझिमी पांचों हिरी बहे बयारि, पमी रस ढरकै हो ।-पलटू, भा० ३, से उल्लास के प्रासू झड़ने लगते ।-पिंजरे, पृ०७५।। पु०७३। झिरो' मा सी० [हिं० झरना] १ छोटा छेद जिससे कोई द्रव झिमिटना-कि०म० [हिं० सिमटना ] इकट्ठा होना। एक जगह पदार्य धीरे धीरे बह जाय । दरजा शिगाफ। २. वह गट्ठा जुट माना। ३०-झिमिट पाते हैं जहाँ जो लोग, प्रकठ कर जिसमें पानी झिर झिरकर इकट्ठा हो। ३. कुएं के बगल कोई पकष पभियोग। मौन रहते हैं खड़े बेचेन, सिर झुका- में से निकला हमा छोटा सोता। ४. तुपार | पाना। ५ वह कर फिर उठाते हैं न । -साकेत, पृ० १७३। फसल जिसे पाला मार गया हो। फिर-ससा स्त्री० [हिं० झिरी] वंदफुहार। झिरी। उ०- झिर पिचकारी की मची पौषी उडत गुलाल। यह घुपरि मिरी-सश [सं०] झींगुर । झिल्ली (को०] । घसि लीजिए परि छवीले साल।-स० सप्तक, पृ० ३६०। मिरीका-सया नी० [सं०] दे० 'झिरिका' भो। मिरकनहारी-वि० बी० [हिं० भिरकना+हारी (प्रत्य॰)1 झिकने- मिरी-सधा स्त्री० [हिं० झरना या झिरी] वह छोटा गला जो नाली वाली। उ.-यात तुमको ढीठि कही। स्यामहि तुम भई मादि में पानी रोकने के लिये सोदा पाता है। घेरुमा। झिरकनहारी एवे पर पुनि हारि नहीं!--सूर०, ११५३३६। मिलँगा-सा पुं० [हिं० ढीला+ग] १ टूटी हुई खाट का बाप । मिरकना-क्रि० स० [हि. झिडकना] दे० 'झिडकना' 130- २ ऐसी खाट जिसकी बुनावट ढीली पड़ गई हो। (क) छरीदार वैराग चिनोदी झिरकि बाहिरै कौन्हें।सर०, मिज़गा--वि०१ ढीला ढाला । झोलदार । २. झीना। १,४०। (ख) भोर जगि प्यारी मध कर, इ की मोर भाखी झिलगा सक्ष पुं० [हि. हींगा ] 'झींगा'। खिझिझिरकि उघारि प्रध पलफै। ---पद्माकर (पन्द०)। मिलना-क्रि० स० [?] १. बलपूर्वक प्रवेश करना । घसना । २.पलग फेंक देना। भटकना ।-(क्व०)। उ०-मुकुट घुसना। उ.-मिली फौज प्रतिमट गिरे साद घाव पर घाव । शिर थाखंड सोहै निरखि रहिं वजनारि। कोटि सुर कोदर कुंवर पोरि परबत पढथो बढयो युद्ध को पाप। साथ पामा झिरकि डार वारि।-सूर (शब्द०)। (शब्द०)। २. तृप्त होना । मघा जाना। उ०—मिले राम झिरझिर-कि. वि०[ मनु०] १ मंद मद। धीरे धीरे। उ.- कृष्ण, झिले पाइके मनोरय की, हिले ग रूप किए पूरि ४-२४