पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८१

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मनमन मपट मनमन-सहा श्री [अनु.] झन झन शन्द । झनकार । झन- झनाहट। मनमना'-सबा पुं० [ देश ] एक कोडा जो तमाखू की नसों में छेद कर देता है। इसे चनचना भी कहते हैं। झन मना-वि० [अनु.] जिसमे से झनझन प्राब्द उत्पन्न हो। मनमनाना'-क्रि० म.[अनु० ] १, झन झन शब्द होना । २. (लाक्ष.) भय, सिहरन या हर्ष से रोमाचित होना। किसी मनुभूति से पुलकित होना । जैसे, न रोएं झनझनाना । झनझनाना-क्रि० स० झनझन शब्द उत्पन्न करना। झनमनाइट-संज्ञा स्त्री॰ [ मनु.] १ झनझन शब्द होने को त्रिया __ या भाव झकार।२ मुन सुनी। मनमोरा-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का पेड़ ।। मनत्कृत-वि० [सं०] दे॰ 'झकृत'। उ.-दूध पंतर का सरल, मम्लान, खिल रहा मुखदेश पर द्युतिमान । किंतु है अब भी मनत्कृत तार, बोलते हैं भूप बारबार ।-साम०, पु०४८ । झननन--संच पुं० [अनु० ] झन झन शब्द । मंकार। मननाना-क्रि०म०और स न12. 'झकारना'। मना -संवा पु० [देश॰] एक प्रकार का धान । मनस-या पुं॰ [देश.?] प्राचीन काल का एक प्रकार का वाजा जिसपर घममा मढ़ा हुमा होता था। मनामन'-सहा ली.[अनु॰] झंकार । झन झन शब्द । मनामन-कि० वि० भन भन भाब्द सहित । इस प्रकार जिसमें झन मन शब्द हो। जैसे,-झनाभन खोडे बजने लगे, झनाझन रुप- वरसने लगे। मनिया-वि० [हिं० झोना] दे॰ 'झना'। उ०--फनक रतन मनि पटित कटि किकिन कडित पीत पट झनिया। -सूर (शब्द.)। झन्नाना-क्रि० प्र० [अनु.] दे० 'झनझनाना'। उ.-मुखर भनाते रहे या मूक हो सब शब्द, पोपले वाचाल ये योथे निहोरे। -हरी घास०, पृ. २१।। झन्नाइट-पया स्त्री० [ मनु० ] झनफार का शब्द । झनझनाहट । उ.-टुटे सार सन्नाह झन्नाहटे सौं। परे हटि के भूमि खनाहटे सौं। --सूदन (शब्द०)। झप-फि० वि० [सं० झम्प (= जल्दी से गिरना, कूदना)] जल्दी से । तुरंत । झट 13.-खेलत खेलत जाइ कदम चढ़ि कप यमुना जल लीनो। सोवत काला जाइ जगायो फिरि भारत हरि कोनो ।—सूर (शब्द०)। यौ०-झप झप । झपाझप । महा.-झप खाना=(१) पतंग का जल्दी से पेंदी के बल गिर पड़ना । (२) अँप खाना । भैपना । झपक-समा स्त्री [हिं० झपकना ] १ उतना समय जितना पलक गिरने मे लगता है । बहुत थोड़ा समय । २ पलकों का परस्पर मिलना। पलक का गिरना। ३ हलकी नींद । भपकी। ४ लज्जा ! शर्म। हपा । झेप। झपकना-कि० म० [सं० सम्म (=जोर से पड़ना, कुदना)] १. २ पलक गिराना। पसौका परस्पर मिलना। झपकी लेना। ऊँधना ।-(व.)। ३ तेजी से भागे पढ़ना । झपटना। ४. ढकेलना। ५ मे पना । शरमिंदा होना । उ-- तभी, देवि, क्यो सहसा दीख, झपक, छिप जाता तेरा स्मित मुख, कविता की सजीव रेखा सी मानस पट पर घिर जाती है।-इत्यलम्, पृ.६८।६ डरना । सहम जाना । ४०- कहु देत झपकी झपकि झपकह देत खाली दाऊँ!---रघुराज (सब्द०)। झपका-सझा पुं० [अनु० ] हवा का झोंका ।- (तश०)। झपकाना--क्रि० स० [ मनु० ] पलकों को भार वार बद करना। जैसे, माख झपकाना। मपकारी-वि० स्त्री० [हिं. झपक+भारी (प्रत्य॰)11.निदियारी। झपकानेवाली। २ हयादार । लज्जा से झुकनेवाली। उ०- कारी झपकारी मनियारी बरनी सघन सुहाई।-भारतेंदु ग०, भा०२, पृ० ४१४॥ झपकी-सन्ना श्री. [भनु०] १. हलकी नींदापोडी निद्रा। उधाई। ऊँघ । जैसे,—जरा झपकी ले लें तो चलें। कि०प्र०-माना ।-लगना ।—लेना । २. मांख झपकने की क्रिया। ३. वह कपड़ा जिससे मनाज मोसाने या बरसाने में हवा देते हैं। बंवरा । ४ धोखा। चकमा । बहकाना। उ०-कहुँ देत झपकी झाकि झपकह देत खाली दाउँ। बढ़ि जात कहुँ दुत बगल कै बलगात दक्षिण पाउँ।- रघुराज (शब्द०)। झपको -सचा पुं० [हिं० भपका] हवा का झोंका। उ..-दीपक वरत विवेक को तो लौ या चित माहि। जौधौं नारि कटाक्ष पट झपको लागत नाहिं 1-व्रज० प्र०, पृ. । झपकाहाँ, मपकोहाल-वि० [हिं० झपना] [वि० सी० झपकोही] १ नीद से भरा हुमा (नेत्र)। जिसमे भपकी भा रही हो (वह भाख)। झपकता हुमा। उ०-(क) झपकोहें पलनि पिया के पीक लीक लखि अकि महराइहूँ न नेकु मनुरागै त्यों। --पद्माकर (शब्द०)। (ख) झुकि झुकि झपको है पलनु फिरि फिरि जुरि, जमुहाइ। वीदि पिनागम नींद मिसि दी सब भली उठाय। --बिहारी २०, दो० ५८९ । २ मस्त । नशे में चूर। मतवाला । नशे में मरा हुया। उ०-ससि प्रश लदरी चहधा पूरी जोति समरी भाल नस। इगदुति झपकोंही माह बढ़ाही नाक चढ़ाही मधर हंसे ।-सूदन (शब्द०)। झपट--सना खी० [सं० भम्प(- कुदना)] मपटने की क्रिया या भाव। उ०-(क) देखि महीप सकल सकुचाने । बाज झपट जनु लवा लुकाने ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) मब पंछी जब लग उडे विषय वासना माहि । ज्ञान चाज की झपट मे तब लगि माया नाहिं।-चीर (शब्द०)। यो...-लपट झपट -लपटने या झपटने की क्रिया या भाव। उ.-लपट झपट महराने हहराने जात भहराने मट परयो प्रवल परावनो।—तुलसी (शब्द०)। मुहा०--झपट लेनाबहुत तेजी से बढ़कर छीनना ।