पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१६१

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१९०७ जौहर- __ मनुचित करही। गुरु पितु मातु मोद मन भरही । -तुलसो जौनावर---वि० [हिं०] दे० 'जोरावर'। 3.--जोरावर कोई वा चि, रावण पा दशकंधा। कबीर सा०, पृ० ८५७ । औ-त्रि० वि० हिं०] जब। जौलाई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'जुलाई। । यौ०-जो लौ, जौ लगि, षौ लहि-जब तक । जौलाऊ-संक्षा पुं० [हिं० जीपाय (-बारह)] प्रति रुपया बारह जोक-सा पुं० [तु० जूक] १. सेना। २. कतार । ३ मुद। पैसे । फी रुपया तीन पाना । (दलालो) 1- ... . . गिरोह । उ.-तुजे देखना था बड़ा हुम कुशौक । तुजे देक। जौलानीसा श्री०म०] १. तेजो। पुरती। उ०-शराब पाए हजारा सूबौछा-दक्खिनी॰, पृ० ३४५ । मंगामो तो पक्ल को पोर जौलानी हो।-प्रेमघन॰, भा॰ २, लोक-सका पुं० [अ० जोक स्वाय । मजा । शोक । मानद [को०)। पु०८८। २ घोडा (को०)। ३. शराब का प्पाला (को०)। जौकेराई-सका स्रो० [हि. जो केराव] मटर मिला हुआ। ४ मनोरजन (को०)। मौखg-संश्ा पुं० [तु० जूक] १ झड । जत्या।२ फौज । सेना। सोलार । जौलाय-वि० [हिं० जौलाय] बारह । (दलाल)। ३ पक्षियों की श्रेणी। उ०-वनी गोख वे जोख की मौख । जौशन-सा पुं० [फा०] बाह पर पहनने का एक प्राभूषण। पोहे । पठाकानु की पिकी ही परोहै ।-सुदन (शब्द०)। दे० 'जोशन'। ४. भादमियों का गोल । समूह । मोड। मोगदवा-सा पुं० [हिं० जौगढ़ (-कोई स्थान)+मा (प्रत्य॰)] जौहर'-सा पु० [फा० गौहर का मरवी रूप] १ रत्न । बहुमुल्य एक कार मान। पत्थर । २. सार वस्तु । सारांश । तस्व। " , विरोप-यह प्रगहन के महीने में तैयार होता है और इसका मि०प्र०-निकालना। । चावष चैकड़ों वर्ष तक रह सकता है। ३. तलवार या पोर किसी घोहे के धारदार हथियार पर वे सूक्ष्म जौचनी-सहा कोहि चना मिला हुमा जी। चिह्न या पारियां जिनसे लोहे की उत्तमता प्रकट होती है। जीजा-सहा श्री० [म. जीजहजोरू । मार्या । पत्नी। हथियार की पोप। ४. गुण। विशेषता। उत्तमता । खूबी। गोलीयत-सा स्त्री० [म. कौमीयत] पत्नीत्व । वारीफ की बात । जैसे,—(क) घुलने पर इस कपड़े का जोहर देखिएगा। (ख) मैदान में वे अपना जौहर दिखाएंगे। औड़ा- पुं० [हिं० जेवरी या जेवड़ी] मोटा रस्सा। 30---फूस क क्रि०प्र०-खुलना। -दिखाना। बौड़ा दुरि करि, ज्यू वहुरिन लागै लाइ । -कवीर प०, मुहा०-बौहर खुलना= (१) गुण का विकास होना । ग्रण प्रकट होना । खूबी जाहिर होना । (२) करतब प्रकट होना। जोतुक-सा ० [सं० यौतुक] दे० 'यौतुरू। भेद खुलना । गुप्त कार्रवाई बाहिर होना । जोहर खोलना- बोधिक -सका पु० [सं० यौद्धिक ] तलवार या खड्न के ३२ हाथो गुण प्रकट करना । उस्कर्ष दिखाना । खूबी जाहिर करना । में से एक। २०-पृष्ठत मथित बोषिक प्रथित ये हाथ जानी करतब दिखाना। बत्तिस ! --रघुराज (शम्द०)। ३ पाईने की धमकी लोना -एवं० [सं०य पुन (क. न>कोन के साम्य पर जौहर साशा पुं० [हिं० जीवन हर ] .. राजपूतों मे युद्ध के समय बना)]ो । की एक प्रथा जिसके अनुसार नगर या गढ़ मे शत्रु के प्रवेश जौन -विजो। उ०-ौन ठौर मोहिं माशा होई। ताहि ठौर का निश्चय होने पर उनकी स्त्रियां और बच्चे दहकती हई रहाँ मैं जोई।-सूर (शब्द॰) । चिता में जल जाते थे। दौन -सहा . [हिं० दे० 'यवन' । विशेष- राजपूत लोग जम देखते थे कि वे गढ़ की रक्षा न कर बोनाल-साली [सं० यव+नाल]१. वह जमीन जिसपर जो माधि सकेंगे पौर शत्रुमों का अवश्य मधिकार होगा सब वे अपनी रबी की फसल बोई जाय । रबी का खेत । २ जी का डठल । स्सियों और कश्चों से विदा लेकर और उन्हें दहकती चिता में सौन्दर-सञ्ज्ञा की० [हिं०] दे० 'जोन्ह'। भस्म होने का प्रादेश देकर भाप युद्ध के लिये सुसज्जित होकर जोपै -पव्य[हिं० चौ+4] भगर । यदि । निकल पड़ते थे। स्त्रियां भी गार करके बडे भारी दहकते जीपति -सा औ• [सं० युवती] दे॰ 'युवती'। कुड में कूदकर प्राण विसर्जन करती थीं । प्रसिद्ध है कि जब जीवन -संशा पुं० [सं० यौवन] दे० 'यौवन' । भलाउद्दीन ने चिरतोरगढ़ को घेरा था तय महारानी पमिनी जोम--संक० [हिं०] दे० 'बोम'। सोलह हजार स्त्रियों को लेकर भस्म हुई थी। इसी प्रकार जय बैसलमेर का दुर्ग घिरा पा तव नगर की समस्त स्त्रियां मार-मा० [प] अत्याचार । जुल्म 1 30-पद तवक खीच पौर बच्चे पर्याप्त २४... प्राणियों के छगभग क्षण भर में चौरी जफार तरह दोस्ती निमाहीहै।-कविठा 'जल मरे थे। , को०, भा० ४, पृ०१७॥ कि०प्र०-करना । —होना । बारा-समपुं० [हिं० जरा यह मनाज जो गौवों में नाक मारी -मादि पौनियो को उनके काम के बदले में दिया जाता है। मुहा०-जौहर होना=चिता पर जल मरना। उ०-जौहर भरे बोरा-स० [सं० ज्या+वर अथवा हि. जेवरी] वहा रस्सा । सपनी पुरुष भए सग्राम । -बायसी (सन्द०)।