पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१४४

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जूहिया - - . ." . . जहिया--विहिक जूही'+ इया ( प्रत्य०) ] जूही वैसी । ...-- जृमिनीसहा स्त्री० [सं०म्भिणी ] एलापणं लता।.. - हेमंती प्रोसं की जूहिया नमी भीतर पहुंच रही, थी। नई०, नभित'-वि० [सं० म्भित ] १ चेष्टिता। २. प्रवृद्ध । फेला या - फैलाया हुआ। जिसने जमाई ली हो [को०] 1.-.-.. जूही-सशा बी० [सं० यूपी ]-१ फैलनेवाला एक झाड़ या पौधा भित-सचा पुं० [सं०] १, रमा। २ स्फोटन , ३, स्त्रियो की .जो बहुत घना होता है. मौर जिसकी पत्तियाँ छोटी तथा ऊपर ईहा या इन्छा । - - - -- नीचे नुकीली होती हैं। उ०-जाही जूही बगुचन लावा। जभो,-वि० [सं० , जम्भिन ] १ जुभाई लेनेवाला, २. सिलने पुहुप सुदरसन लाग सुहावा !-जायसी प्र०, पृ.१३।। - वाला कि 1. । ..... . , विशेष-यह हिमालय के-अचल में आपसे माप उगता है। यह

  • जेटिलमैन-सधा पु० [ श..] सन्य पुरुष । भजन । सभ्रात व्यक्ति

पौधा फूलों के लिये बगीचो मे लगाया जाता है। इसके फूल सफेद चमेली से . मिलते जुलते पर बहुत छोटे होते हैं। सुगध जद-सझा 'पुं० [?] १ हिंदू । २. हिंदुनो को भाषण इसकी चमेली ही की तरह हलकी मीठी और मनभावनी होती विशेष पहले पहल पुर्तगानियो ने भारत के प्रतिपक्षकों के लिये है। ये फूल बरसात मे लगते हैं। जूही को कही कहीं पहाडी . इस शब्द का प्रयोग किया था । वाद ईस्ट इंडिया कंपनी के चमेली भी कहते हैं।.पर जूही का पौधा देखने मे चमेली से " * समय अंगरेज लोग रक्त १ मे इस गाब्द का प्रयोग करने लगे। नहीं मिलता, कुद से मिलता है। चमेली की पत्तियाँ सीकों के जेताक-सचा पुं० [सं० जेन्ता] संगा के शरीर में सोना लाफर दूषित दोनों ओर पक्तियों में लगती है पर इसकी नहीं। जूही के फूल - प्रश और विकार मादि निकालने की एक क्रिया । मफारा। का मतर बनता है।.... जे गना-सधा पु. [ प्रा. जोइगणं'] दे० 'जुगुगू-१। उ०-सुदर २. एक प्रकार की मातशबाजी जिसके छूटने पर छोटे छोटे फूल कहत एक रवि के प्रकास विनु जेंगना की ज्योति, कहा रजनी से झडते दिखाई पड़ते हैं। ' " विलात है । सत्त याणी, भा० २, पृ० १२३ । । जही सद्या स्त्री० [सं० यूक ] एक प्रकार का कीड़ा जो सेम, मटर जे गरा-सा . [ देश० ] उर्द, मूग, मोयी, ज्वार, बाजरे पादि के प्रादि की फलियों में लगता है । जूई। - ...डठल जो दाना निकाल लेने के बाद शेष रह जाते हैं । जंगरा। जभ--सपा पुं० [सं० जम्भ] [स्त्री० जभा, वि०, ज भक] १. जंभाई! जेणा-क्रि० विहि. ]दे० 'जहाँ 13-पान सखी तिण मंदिरई, जमुहाई। २ पालस्य । ३ प्रस्फुटन । विकास । खिलना'(को०) सज्ज रहियउ जेण.।' कोइक मीठ बोलडइ, लागो होसा ४. विस्तार | फैलाव (को०) ! ५ एक पत्ती (को०)। ___ण । ढोला०, दू० '३५६ । .. भफ'-वि० [सं० जम्भक ] जमाई लेनेवाला। " जे ना-क्रि० स० [सं० जेमनम् ] दे॰ 'जेवना। भकर-सया पुं० १. रुद्र गणो में ..एक ! २ एक.. अस्त्र जिसके जेवना- सज्ञा पुं० हि जेवना ] भोजन । खाने की वस्तु । चलाने से शत्रु निद्राग्रस्त होकर लडाई छोड जमाई लेने लगते, जेवना-कि०,स[स० जेमन ] भोजन करना । खाना । भक्षण सो.जाते.या शिथिल पड़ जाते थे, .. मी -फरना । उ०--(क) जो प्रभु निगम प्रगम करि गाए । जेवन विशेष-जब राम ने ताडका मादिको मारा-था तव विश्वामित्र मिस ते हम पे-पाए । -नद० प्र०, पृ. ३०४ (ख) म.नंद- ने प्रसन्न होकर मत्र सहित यह प्रस्म उन्हे दिया था। विश्वा- घन व्रज जीवन जेवत हिलिमिलि स्वार तोरि पतानि ढाक। ... मित्र को, यह प्रस्त्र घोर तपस्या के उपरांत..मग्नि से प्राप्त -धनानद, पृ० ४७३ । - - : हुमा था । . . जे वना-सा पु० भोजन । भोजन । खाने का पदार्थ । बह, जो कुछ ज भकास्त्र-मचा [सं० जृम्भकास्व ] दे॰ 'ज भक। खाया जाय। जभण-~-सक्ष पुं० [सं० जम्मण ] १ जंभाई लेना।२ प्रगो को जे वनार-सहा हि० ] दे० 'जेवनार' । २० - चहू प्रकार ___फैलाना, (को०) । ३ खिलना । विकास (को)। . . जेवनार भई बह भाँतिन्ह । -तुलसो न०, पृ० ६० । ज'भण—वि० १. जमाई लेनेवाला [को०] । . .. जे वाना-क्रि० स० [हिं० जेंवना ] भोजन कराना । खिलाना । जभमान-वि॰ [सं० जम्भमत् ] १. जमाई लेता हुमा या जमाई जिमाना। लेनेवाला 1२ प्रकाशमान खिलता हुमा । विकारामान । ज सवं० [सं० ये 1१ 'जो' का वहवचन । २ दे० 'जो' । जभा--सचा स्त्री० [सं० जम्मा ] १ जंभाई। २ मालस्य या प्रमाद 'उ०-जलचर थलचर नभचर नाना । जे जहचेतन जीव से उत्पन्न जड़ता। ३ एक शक्ति का नाम । ४ खिलना. ?"; जहाना। -मानस, १२३ .' - - ,विकास (को०) ५. विस्तार । फैलाव (को०)।.-, . जेएर-सर्व० [सं० एतत् ] यह का बहबचन। उ०-माई, जे ज'भिका-सया स्त्री० [सं० जम्भिका ]:१०.पालस्य । २ ज भा । दोक, कौन गोप के 'ढोटा इनकी बात कहा फही तोसों, ३ एक रोग जिससे मनुष्य शिथिल पड़ जाता है और बार गुनन बडे, देखन के छोटा ।-नद प्र०, पु० ३४१ । । - ... बार जंभाई लिया करता है। . ..... जे -सर्व० [सं० इदम्-] यद । उ०-मागामिनी जामिनी जुग विशेष-यह रोग निद्रा का भवरोष करने से उत्पन्न होता है। होनभामिनीन सौ जे कही। -नद० म०, पृ० ३१७ । ज भिणी-पदा सी० [सं० जम्भिणी ] एलापर्णी लता [को०] । जेई -सवं० हिं.] दे० 'जो'। उ०--हनियंत बीर, लक जेई " . जिम