पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११०

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जिधा १७५५ जिमि विशेष-समन्वय में इसके साथ 'उघर' का प्रयोग होता है। जैसे, (क ) यह उज्जल रसमाल कोटि जतनन के पोई । सावधान जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है। हपहिरौ यहि तोरी जिनि कोई-नंद.०, पृ० २५ । यौ०-जिधर तिघर = (१) जहाँ तही। इधर उधर । (ख) जिनि कटार पर लावमि समुझि देनु मन आप । सकति विशेष-अब इसका कम प्रयोग है। जीउ जो काट महा दोप प्रो पाप । जायसी--(शब्द०)। (२) वेठिकाने । बिना ठोर ठिकाने । जिनि -सर्व हिं. जिन ] जिन्होंने । । महा०-जिधर चांद उघर सलाम = अवसरवादिता । उ०-शमा जिनिसा-सा श्री. प्र.जिस दे० 'जिस । जी डांटते हैं, जिधर चाँद उपर सलाम ।-मैला०, पृ० ३४४ । '१६ जिनिसवारी-सहा पुं० [हिं०] दे० 'जिसवार'। सरकार जिधा--प्रव्य [ देश जहाँ। उ०-पिद्दे पलथे ये दस मायाँ जिनेंद्र-संक्षा पुं० [सं० जिनेन्द्र ] १ एक बुद्ध । २. एक जैन । मिलाकर । जिघी पिछे वो जगल बीच यकसर । -दक्खिनी०, संत (को॰] । पृ० ३३८ । जिन्न-सम्मा पु०म० दे० 'जिन' [को०)। जिन'---मज्ञा पुं० [म० ] १ विधा । २. सूर्य । ३ बुद्ध । ४ जैनों के जिन्नात--सका पुं० [प्र. जिन का यहु २० ] भूत प्रेतादि । तीर्थकर। यौ०-जिन सदन=जिनसन । जैन मदिर। जिन्नी'-वि० [40] जिन या भूत सबधी (को०] । | जिन-वि०१ जीतनेवाला । जयी। २ राग द्वेप आदि जीतने- जिन्ती २...-सझा पुं० यह व्यक्ति जिसके वश मे भूत प्रेत हो [को०] । वाला ! ३ वृद्ध [को० । जिन्ह --सपं.हि. जिन | दे० 'जिन' । जिन-दि० [सं० यानि ] 'जिस' का बहुवचन । जिन्ह -सा पुं० [अ० जिन्न ] दे॰ 'जिन' ( भूत प्रेत ) । जिन-सर्व० [हिं० ] "जिम' का बहुवचन । जिन्दार--अव्य० [फा० जिनहार ] हर्गिज । विलफुस ! उ०-कहे जिन'-सा पुं० [म.] भूत । उस शर्त से ऐ नेक पतवार । खिलाफ इसमे न करना तुमे जिन्हार ।-दक्खिनी, पृ. ३२५ ॥ मुहा०-जिन का साया -जिन लगना। जिन चढना, जिन सवार होना - क्रोध के ग्रावेश में होना। क्रोधाच होना। जिप्सी-घर पुं० [१०] १ एक घूमती फिरती रहनेवाली जाति- जिन-प्रम्य [हिनि ] मत । उ०--सोच फरी जिन लोह विशेष । २ उक्त जाति का व्यक्ति । सुखी मतिराम प्रवीन सवै नरनारी । मजुल बजुल कुंजन में जिवह-सधा पुं० [प्र. जव्ह ] दे० 'जबह' । 30-मुरगी मुल्ला से धन, पु ज सखी ससुरारि तिहारी। -मति० प्र०, पु० २६. । कहै, जिवह फरत है मोहि । साहिब लेखा मोगसी, सकट परि- जिन-सा पुं० [अ०] एक प्रकार की शराब । उ०—जिन का एक है सोहिं !-सतवाणी., पृ०६१ । देग। यो दुनिया, पृ० १४२ । जिन्भा-सा स्त्री० [सं० जिह्वा ] दे० 'जिह्वा' । जिनगानी/---सबा सी० [हिं० जिटगानी] दे० 'जिन्दगानी' । जिव्हा सश . [ सजिह्वा ] दे० 'जिह्वा । जित्नगो-समा बी० [हिं०] दे० जिंदगी1 30--यफाठोस दूल्हा जिभला-वि०वि० जीम+ला (प्रत्य॰)] पटोग । च । के साथ किस तरह अपनी पिनगी काटगी।-मई०, पृ० २६ । १६°, १° १५. जिभ्याfg-सहा मी० [सं० जिह्वा दे० 'जिह्वा'। म जिनस - ससा भी [4. जिस १ प्रकार 1 जाति । किस्म । जिम -पध्य. हि] ३० "बिमि' 1 उ०-ले धरण एही सपजइ, त-बहु जिमस प्रेत पिसाद चोगि जमात बरनत नहि सउ निम ठल्लह जाइ ।-ढोला०, दू० ४५६ । बनें।-मानम, 11६३ | २ दे० 'जिन'। जिना--सशा पुं० [प्र. जिना व्यभिचार | दिनाला । जिमखाना-समा ० [प्र. जिमनास्टिक का सक्षिप्त रूप जिम+ मि०प्र०-फरना। हि० खाना ] वह सार्वजनिक स्थान जहाँ लोग एकत्र होकर व्यायामादि करते हैं । व्यायामशाला। यौ० --जिनाकार । जिनाकाती। जिनाचिल्जन । सिनाकार-त्रि [५० जिना + फा० पार ] [ सभा जिनाकारी ] जिमनार-~-सक्षा श्री० [हिं० जिमाना] भोज । समष्टियोज। उ.-- व्यभिचारी। जहाँ गए ब्रह्मभोज, साघु जिगनार यथेच्छ करते 1-सुदर प्र० जिनाकारी-समारी [अ० जिना+फा० कारी] पर-स्त्री-गमन । (जी.), मा० १, पृ० १४२।। व्यभिचार। जिमनास्टिक-सया पुं० [.] वे मरते जी पाठ के दोहरे बल्लो जिनाविजन-सा पु. [4] किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा मौर या छडों मादि के ऊपर की जाती हैं। पनजी कसरत । सम्मति के विरुद्ध बलात् ममोगदारना। जिमाना-क्रि० स० [हि. जीमना ] खाना खिलाना। भोजन जिनावर -राशा पुं० [हिं० दे० 'जानवर'। उ -फहै श्री कराना। हग्दिान पिजग के निनावर मो. रफरा रहयो उहिवे को जिमि-कि० वि० [हिं०जिस् + इगि] जिस प्रकार मे। से। कि हरि ।- पोद्दार अभि० ग्रे०, पृ० ३६० । यथा । ज्यों। 10--कामिहि नारि पियारि जिमि, लोमिहि जिनि -म हि० जनि ] मत 1 नही। दे० 'जनि' । उ०- प्रिय जिमि दाम 1-मानस,७।१३.। हा