पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०९

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जितार जिधर ' माण सग, देव विपरीत बसि बूझत पहेली बात । पूछे जो पियारी राजयो नहीं दे सकते । यह राज जितैला है। अगर ऐसा ही ताहि जानत प्रजान पिय, पापु पूछी प्यारी को जताइ के फरना है तो उस जमींदार को बुला लाभो। जिताई जात ।--देव (शब्द०)। जितोg+-वि० [हिं० जिस] जितना (परिमाणनूचक)। उ०-~- जितारा--वि० [सं० जिस्वर] १ जीतनेवाला । विजयी । २ बली। (क) बैठि सदा सतमग ही में विष मानि विषय रस फीति जो जीत सके । ३ पधिक । भारी । वजनी । सदाही। त्यों पद्माकर झूठ जितो जग जानि सुज्ञानहि के विशेप-प्राय पलडे पर रखी हुई वस्तु के सवध मे बोलते हैं। अवगाही।--- पद्माकर (शब्द॰) । ( ख ) नख सित सुदरता जितारि"--वि० [स] १ शत्रुजित् । २. कामादि शानों को अवलोकत, कह यो न परत सुम्ब होत जितो री ।-तुलसी जीतनेवाला । । शब्द०)। जितारि-सञ्ज्ञा पुं० बुद्धदेव का नाम । विशंज-सरया सूचित करने के लिये बहुवनन रूप 'जिते' का जिताष्टमी-सज्ञा स्त्री० [मि0 ] हिंदुमों का एक व्रत जिसे पुत्रवती प्रयोग होता है। स्त्रियों करती हैं। जितो-क्रि० वि० जिस मात्रा से । जितना। विशेष-यह प्रत इश्वन कृष्णाष्टमी के दिन पडता है। इस जितना-क्रि० स० [हिं० जीतगा] दे॰ 'जीतना' । उ०-- दिन स्त्रिया सायकाल जलाशय में स्नान फर जीमूतवाहन (क) द्वादस हथ्व मयद बर भिंडपाल लिय मारि । जब वह की पूजा करती हैं और भोजन नहीं करती। इस व्रत के फर सिधिनि गहै को जित नृा नारि । ----१० रासो, पु०१४ । लिये उदयातिथि ली जाती है । इसको जिउतिया भी कहते हैं। (ख) रहत पोंकी नित ही ध्यान सु रावगे। अब मन लीनो जिवाहार-वि० [सं०] भूख पर विजय प्राप्त करनेवाला [को॰] । जित्त भयो प्रीति सो बावरो। --ब्रज ०, पृ. ३८ । जिति--सज्ञा स्त्री० [ मं०] जीत । विजय । जित्तम-सज्ञा पुं० [ यू० डिड्डमा६ } मिथुन राशि।। जितिक+-वि० [हिं० ] दे० 'जेतिक'। उ०—जितिक हुती ब्रज जि य-पव्य० [40] जहाँ । उ०-अहो अहो धन आनंद जानी गो, बछ, वाधी । तेल हरद करि पाछी काछी ।-नद० प्र०, जित्यू तित्यू जादा है 1--- घनानद, पू. १८१ । पृ० २३५ । जित्य-सझा पु. [ स०] [ लो० जिन्या] १ चहा हल । २ हेगा। जिती-वि० स्पो० [हिं०] २० जितिक' । उ०-ब्रह्मादिक विभूति पटेला । सरावन (को०)। जग जिती । अह अह प्रति दिखियत तिती। -नद० ग्र०, पृ० जित्या-सक्षा स्त्री० [सं०] १ हीग । २ सरावन । पटेला (को०)। २६७ । जित्वर-वि० [सं०] [ वि० श्री जित्वरी] जेता। जीतनेवाला। जिवीक-वि० [हिं०] दे० 'जितिक' । उ०-पुनि जितीक गोपीजन विजयी । भाई1 ते रोहिनी सबहि पहिराई।-नंद० प्र०, पृ० २३५। जित्वरी-सचा त्री० [स] काशीपुरी का एक प्राचीन नाम (को०] । जितुम-सज्ञा पुं० [यू० हिडमाई 1 मिथुन राशि । जिथनी-सर्व० [7] जिससे । जिसका। उ०-तुका सज्जन तिन जितेंद्रिय-वि० [सं० जितेन्द्रिय ] १ जिसने अपनी इद्रियो को जीत सू कहिये जियनी प्रेम दुनाय । ----दक्खिनी०, पृ० १०८। लिया हो। जिद-सज्ञा स्त्री० [अ० जिद ] [ जिद्दी ] १ उलटी बात या विशेष-मनुस्मृति में ऐसे पुरुष को जितेंद्रिय माना है जिसे वस्तु । विरुद्ध वस्तु या बात । २ वैर । शत्रुता । वैमनस्य । सुनने, छूने, देखने, खाने और सूधने से हर्षे या विषाद न हो। २ शात । समवृत्तिवाला। क्रि० प्र०--फरना । -बांधना । -रखना । जिते...-वि० [हिं० जिस+ते ] जितने (सख्यासूचक)। उ०- ३ हठ । प्रह! दुराग्रह । कत विदेस रहे हो जिते दिन देहू तिते मुकुतानि की माला । क्रि० प्र०--प्राना । —करना । --बोधना । —रखना । -पद्माकर (शब्द०)। मुहा०-जिद पर घाना - हठ करना । अडना । जिद चढना- जितेक-वि० [हिं० जिते ] जितना । उ०-नगनि मध्य नग हुते हठ धरना । जिद पकहना = हठ करना । जितेक । ले ले ऊपर बैठे तितेक। -नद० प्र०, पृ० ३१४ । जिदियाना - सज्ञा ली. [अ० विद से नामिक धातु] हठ करना। जिते-कि० वि० [सं० यत्र, प्रा. यत्त 1 जिधर । जिस प्रोर। दुराग्रह करना पडना । प्रड जाना । उ.--लाल जिते चितवै तिय पै,तिय त्यो त्यों चित्तौति सखीन जिद्दों-सना की• [अ० जिद्द ] दे॰ 'जिद' । ___को प्रोरी । -देव (शब्द०)। . जिद्दन-कि० वि० [म.] जिद्द करते हुए । हठ करते हुए। जिद के वितया-वि० [सं० जित् +ऐया (प्रत्य) ] जितवेया। जितधार कारण । [को० । जेता । उ०-प्रबल प्रतीक सुप्रतीक के जितैया रैया रख भाव- जिद्दी-वि० [अ० विद्द + फा० ई (प्र-य०)] १. जिद करनेवाला । सिंह तेरे दान के दुरद हैं ।---मति० प्र०, पृ० ४२७ । हठी। पडनेवाला । जैसे, जिद्दो लडका। १ दुराग्रही । दूसरे जिला-वि० [हिं० जीत + ऐला ( प्रत्य॰)] जीतनेवाला। की बात न माननेवाला। विजेता। उ०-जमींदार ने कहा, तुम किसी जमीदार का जिधर-क्रि० वि० [हिं० जिस+धर (प्रत्य॰)] जिस भोर । जहाँ।