पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/८०

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खाला धार-संज्ञा पुं० [फा० खार] १. काटा। कंटक । फांस । २. सारिश-संज्ञा दी [फा०]: खुजली। खाज । मुनें, दीतर आदि पक्षियों के पर का काटा। डांग। ३ डाह । बारिश्त-संवा ली फा०] दे० 'बारिश' ।

जलन । द्वेष। .

खारी'- संज्ञा स्त्री० [सं०] किसी के मत से चार और किसी के मत महा.---हार खानाहाह करना । जलना । खार चुजरना= से सोलह द्रोण को तौल । .. वरा लंगना । वटकना । जार निकलना :डाह या द्वेष मिटना। खारी संज्ञा श्रीहि खारा एक प्रकार का क्षार लवण जो - खार निकालना बदला लेना । डाह या जनन मिटाना। दवा के काम में आता है । संडास में मल गनाने के लिये भी खारक-संज्ञा पुं० [सं० क्षारक, प्रा० खारक, फा० खारिक] छोहारा। .. इसे डालते हैं । ३०-लौंग सुधारी छांड के, क्यों लादो खारी '.30---खारक दास दवाय मरो किन केटहि कंटकटारहि रे।-कबीर श०, पृ० ३७ । भावै ।-केशव शब्द०। खारी--वि०जिसमें खार का मेल हो । क्षारयुक्त । जैसे-खारी माट । सारच -[म. खारिज) १. खारिज । व्यर्थ, या बेकार। सारीमाट संचा पुं० [हिं० खारी+माट-मटका] नील का रग ".. -दव विरण सारा दाहिया, अथवा खारच अंग!-- तैयार करने का एक ढंग । चांकी० ०, भा० ३, पृ. २३ । २. कसर । उ- विशेष-इसमें एक बड़े मटके में लगमग चार मन पानी छोड़कर - 'क्रमणारी मतवाल की, करमण बारच खेत !--वांकी उसमें सेर भर कच्चा नील, चूना और सज्जी डालते हैं और ग्रं॰, भा० ३, ५० ४६ । - थोड़ा गुड़ मिलाकर उटने के लिये रख देते हैं। गरमियों में यह सारजार-संचा पुं० [फा० सारजार काँटों से भरा स्थान । काटौं . एक दिन में और जाड़ों में तीन चार दिन में तैयार हो जाता ... का दंगल। 30---फिरे भई परेशान हो खारवार । जिधर है। अधिक जाड़े में इसे कभी कभी पाग पर चढ़ा देते हैं । जाय उधर सूहोय मार मार ।-दक्खिनी०, पृ०२३३ । सारंगा, खारुवा-संज्ञा पुं० [सं० क्षारक] १. पान से बना हमा शारदार-वि० [फा०, सार+दार (प्रत्य॰)] कंटीला । काँटोंवाला। एक प्रकार का रंग जिसमें मोटे कपड़े रंगे गते हैं । २.इस रंग उ०-कंजा कंजई रग में लपेट फलों को खारदार बिरहबस्तर से रंगा हुया एक प्रकार का मोटा कपड़ा जो विशेषतः काल्पी पिन्हाया !-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० २०.. .. में तैयार होता है। सारदा -संज्ञा पुं॰ [देश॰] खलासी ! मल्लाह । जहाजी। खारेजा-संघा पुं० [फा० खारिजा] एक प्रकार का जंगली कुसुम या सारा-वि० पुं० [सं० क्षार] [वि०, श्री खारी] १. क्षार या बरें। बनबरें। वम कुसुम । कटियारी।। नमक के स्वाद का । २ कर पा । अरुचिकर । उ०-कृपासिंधु विशेष-यह पंजाब के मैदानों में उगता है और वर की अपेक्षा मैं देख विचारी। एहि मरने ते जीवन बारी।-विधाम अधिक केंटीला होता है । इसके दाने बहुत छोटे और निकम्मे होते हैं। और इसमें अनेक रंग के सुहावने फूल लगते हैं । खारा-संज्ञा पुं० [१०वारक] १. एक प्रकार का कपड़ा जो सारी सारो-वि० [हिं०] दे० 'खारा' । धारीदार होता है। २.[खौ० प्रल्पा० खारी] धास या सूखे मार सार्कार-संथा पुं० [सं०] गदहे का रेंकना [को०] । पचे बांधने के लिये जालदार बंधना, जिसे घसियारे या भड़भूजे माल खार'--संत्रा पुं० [सं०] खजूर के रस से बनी हुई मदिरा जो

  • काम में लाते हैं । ३. वह जाली या थैला जिसमें भरकर तोडे

. प्रायः महुए की मदिरा के समान होती है। वैद्यक में इसे हुए घाम पेड़ से नीचे लटकाए जाते हैं ।४. याम, सरकंडे या रुचिकर, कफघ्न, कपाय और हृद्य माना है।। ग्रादिका बड़ा और गहरा टोकरा। यह विशेषतः खार्जर-वि० खजर सबंधी। खजर का को चौखटा होता है। झावा । बांचा । ५.बांस का वडा पिंजड़ा। खा -संञ्चाबी० [सं०] त्रेतायुग । दूसरा युग। ६. सलटे टोकरे के प्रकार का सरकंडे प्रादि का बना हया खाल'–संवा बी० [सं० शान, प्रा० खाल] १. मनुष्य, पशु आदि के एक प्रकार का चौकोर ग्रासन । . विशेष----इसका व्यवहार प्रायः खत्रियों में विवाह के अवसर पर शरीर का कपरी घावरण । चमड़ा । स्वचा । - वर घौर कन्या के बैठने के लिये होता है। मुहा०-खाल उहामा= बहुत मारना या पीटना । खाल मधेड़ना खारा-संवा पुं० [फा० खारह ] कड़ा पत्थर । चट्टान [को०] । . या खींचना = (१) शरीर पर से कपड़ा खींचकर अलग कर शारि-संज्ञा ली [सं०] दे० 'बारी'। देना । 10--खाल वंचि जम मुसा भरावं, ऐंचि लेहि जस सारिक@-संघा पुं० [सं० क्षारक, फा० सारिक] छोहारा । पारा ।--घरम०, पृ०२७ । (२) बहुत मारना पीटना या खारक। उ०-(क) बारिक दास खोपरा खीरा । केरा . कड़ा दंड देना ।खाल बिगड़ना=दुर्दशा कराने या वंटित होने .... आम मत रस सीरामूर०,१०।२२१ । (ख) खारिक की इच्छा होना । पामत आना। खाता म दारिउँ दाखन माखन ह सह मेटि इठाई।-केशव २. किसी चीज का अंगीभूत प्रावरण। जैसे-वाल की खाल । खारिज-वि० [५० खारिज] बाहर किया हश्रा । निकाला हा। .. ३. प्राधा बरसा। अधोड़ी1 ४. धौकनी। भाथी ।५ मत वहित । २.भिन्न । प्रलग। ३.जिस (अभियोग) की धारीर। 30-कहि तु अपने स्वारथ साको . सुनवाई न हो। करिहै खलु बालहि !-सूर (शब्द०)।