पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/६८

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११४४ संसकाना ।... धन प्रादि जो मोशन करने के पुरस्कार में दिया जाय। स्वशखाश-संश्वा पुं० [फा० शाश] पोस्ते का नुप और उसका ने,-कलेवा खवाई। ..... . .. .... वीज को। । विशेष-विवाह आदि के अमर पर वर ण वरपक्ष के लोगों खशी-वि० [सं० सशिन] हलका पासमानी रंग का [को०)। | को जलपान के समय नहीं कहीं नेत्र देने का नियम है। खश्म-संज्ञा पुं० [फा० खश्म, तुल० सं० खप्य = क्रोध] गुस्सा। वाई-संबा भी दे] नाव.का वह पडटा जिसमें मस्तूल खड़ा भोप । रोप कोना ! किया जाता है। : : ..:. यो०-खश्मगीन, खश्मनाक गुस्से से भरा हुमा । प्रकुपित । बवाना@-क्रि० [हिं० खाना-] भोजन कराना। खिलाना। श्वास-संशा पुं० [सं०] बाबू । हवा [को०] ।' उ०-यामानन का पान ज्यावत पहरावन उर माल. I--नंद खष्य--संज्ञा पुं० [सं०] १. कोप । क्रोध। गुस्सा । २. शूरता । निर्दयता । ३. हिंसा [को०)। खवारी --वि० [हिकबाड़ खोटा । चुरा । खराब । खस-संथा पुं० [सं०] १. बर्तमान गढ़वाल और उसके उत्तरवर्ती खवारि संचा मी० [सं०) प्रकाशजल । वर्षा किती। - प्रांत का प्राचीन नाम । २. इस प्रदेश में रहने वाली एक खवारी-संगी ? [फा० नवारी ] दे॰ 'मवारी | -हूँ पत ... प्राचीन जाति । उ०—पव सदर खस जमन जड़ पावर तूझ गुणा बलिहारी, वरदी बात कीध सवारी :-रघु० ख०, कोल किरात । राम कहत पावन परम होत भुवन विख्यात ।- '. , पृ०.१६७ 1 . . ... . . . . . . . तुलसी (शब्द०)। खबाप्प---संशा पुं० [सं०] अवश्याय । प्रोस कोला! . . विशेष प्रात्य क्षत्रिय से उत्पन्न इस जाति का वर्णन महाभारत 'खवास-संधा... ० खवा] [ली खवासिन] १. राजानों और राजतरंगिणी में पाया है। इस जाति के वंशज अब तक और रईसों आदि का खास खिदमतगार, जिसका काम कपड़े नेपाल पौर किस्तवाड़ ( काश्मीर ) में इसी नाम से विख्यात 1. पहनाना, हवा भरमा, पान लाना आदि है । २. खास लोग। हैं घोर अपने आपको क्षत्रिय बतलाते हैं। ये लोग बड़े परिश्रमी । मुख्य लोग (को०)। ३. गुणधर्म । खासियत (को०)। . . और साहसी तथा प्रायः सैनिक होते हैं । इन्हीं को खासिया । खवास--संशः सी. वह दासी जो राजा के पास एकांत में पाठी भी कहते हैं। जाती हो । पाचवान। खेली 1.30-8वे वसीरो बारिणयो, ... ३.खुजली (को०)। . पातर हुव खवाय । हुवे कीमियागार ग, चिध हर जावे. खस-संशा स्त्री॰ [फा० खस ] १. गांडर नामक घास की प्रसिद्ध ... नास-दौकी० ०, भा० २, पृ० ६२। सुगंधित जड़। । खवास -संवा पुं० [अ० खवास सेवक ] वह जो सेवा करता विशेष-यह घास भारत, बर्मा और लंका के मैदानों और छोटी हो। नापित. नाका . ..... पहाड़ियों पर विशेषतः नदियों और तालों के किनारे । खवासी - संज्ञा ही हि लवास+ई (प्रत्य॰)] १. खवास का उत्पन्न होती है। गरमी के दिनों में कमरे आदि ठंडा काम । खिदमतनारी । २०---और पाना करी जो अब तू । रखने के लिये दरवाजों और खिड़कियों में इसकी टट्टियाँ | हमारी खवामी करि। दो सी. बावन०, पृ०१८११२. लगाई जाती हैं। कहीं कही इसकी पंखियां और टोकरियां पाकरी। नौकरी! १० उग्रसेन की करत खवासी।- भी बनती हैं। इसका इत्र भी बहुत अच्छा बनता है और विधाम (गद०)। ३. हाथी के हौदे या गाड़ी यादि में पीछे अधिक दामों में बिकता है । अनेक प्रकार की सुगंधियों . की और वह स्थान जहाँ खवास बैठता है। ..- बनाने के लिये विलायत में भी इसकी बहुत खपत होती है । । खवासी--संशा घोहिं०] भंगिया में का वह जोड़, जो बगल मैं २. सूखी घास (को०)। __ खसकता-संझा की [हिं० खसकना+अंत (प्रत्य॰)] बसकने । सविद्या-संसा पी० [सं०] ज्योतिविद्या । ज्योतिष [को०)।.. का काम। सवी- संज्ञा फोः [फा० खत्रीद= हरी घास या फसल ] एक प्रकार खसकना-क्रि० अ० [अनु॰] धीरे धीरे एक स्थान से दूसरे स्थान की घास जिसे पंजाब में घटियारी कहते हैं। पर जाना। अपने स्थान से इधर उधर हट जाना। विशेष-यह अगिया घास की तरह होती है और इसमें से स्थानांतरित होना । सरकना । जैसे-(क) यह ईंट खसक गई है. । सुगंध पाती है। इसकी पत्तियाँ लबी होती हैं जिनसे एक (ख) उधर बहुत जगह है, जरा खसका चलो । (१) हमें | प्रकार का सुगधित तेल निकरता है और औषध के काम में देखते ही वे खसक गए। प्राता है। यह कराची से पेशावर और लुधियाना तक संयो० क्रि०-माना।-चलना-देना--पड़ना। रेगिस्तान में और रास्लुई भूमि में उपजती है। इसे संस्कृत में विशेष-इस शब्द में 'गुप्त रूप से' या 'मनजान में'. का भी 'भूस्तृण' कहते हैं। .. कुछ भाव मिला हुया है। खवैया-- पुं० [हिं०/मा+वैया (प्रत्य०) ] १. वानेवाला । खसकवाना-क्रि० स० [हिं० खसकना का प्रे० रूप] खसकाने का ... मधिक बानेवाला। २. हिचाने वाला। - काम चूसरे से कराना। (खसकाना-कि० स० हि खसकना] १. खसकना का सकर्म का मा