पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/६७

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खेलिश ११४३ सवाई । खेलिश-संज्ञा सी० [फा० सलिश] वह कसक या पीड़ा जो किसी खल्तमल्त--वि० [तु खल्तमल्त] मिला जुला। मिश्रित । एकम- चीज के चुभने अथवा घाव आदि के भरने के उपरांत पीव एक गड्डमड् [को०] 1 . प्रादि दूपित अंशों के वाकी रह जाने के कारण होती है। खल्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] बह भूमि जहाँ मई लिहान हों (को०] । . २. चिता । फिक्र । उलझन (को०)। खल्ल-संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का कपड़ा। २. चमड़े की । खलिहान - संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खलियान'। मशक । ३. चमड़ा। ४. चातक । ५.योपधि सूटने का खला। खली'-संज्ञा जी० [सं०] तेल निकाल लेने पर तेलहन की बची खरल । ६. गड्ढा (को०)। ७ खान । नहर (को०)। :: .. हुई सीती। खल्लड---संज्ञा पुं० [सं० खल] १. चमड़े का मशक या चला । २.. खली--वि० [हिं० खलना] जो बुरा मालम हो । खलने या खटकने प्रोपधि कूटने का खल । ३. चमड़ा । जैसे--मरते मारते .. वाला । 30-करि रारि प्रागे खली ट्रष्ट होई ।-विश्राम खल्लड़ उधेड देंगे। ४. बह वृद्ध मनुष्य जिसका चमड़ा झूल . (शब्द०)। गया हो। खलो-संवा पुं० [सं० खलिन] १. महादेव 1 २. एक प्रकार के दानव खल्ला-संज्ञा पुं० हिं० खाली] १, नत्य में एक प्रकार का भाव जिन्हें महाभारत के अनुसार वशिष्ठ देव ने मारा था । ' जिससे पेट का खालपना झलकता है । २. जूना । खली-वि० खल से युक्त । खलवाला [को०] । खल्ला ---- संघा पं० [सं० खल खलियान। .. खलीज-संज्ञा स्त्री॰ [अ० खलीज] खाड़ी ! खल्ला-संहा स्त्री० [सं० सल्ल, देश० सल्ला . चपा] जना ।... खलीता-संधा पुं० [हिं०] {सी० अल्पा० खगोती] १. दे० 'खरीता'। खल्लाक--संज्ञा पुं॰ [ग्र० खल्ला सष्टि को बनानेबाला-श्वर । उ०—अमल खलीती घरि रही।--वी० रासो०, पृ० १७ । उ-बचावं कौन चिन खल्लाक बारी ।-कावीर मं०, पृ० २. अोहार । पर्दा । उ०--प्रेम के डोरि जतन से बांधो । .५७५ ॥ कपर खलीता लाल ओढ़ावो ।-धरम०, पृ०७४। खल्लासर-मंया पुं० [सं०] ज्योतिष में दसवां यो। . . खलीता--वि० [हिं० खालो] खाली। बेकार । ध्यर्थ । ७०-सोवं खल्लिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] कड़ाही [को०] । ' खाय कर नहैं सुकृत खोवै टोह खलीता। रधु० रू०, खल्लिट'-वि० [सं०] गंजा । ल्वाट को । - पृ०१६ । खल्लोट-संज्ञा पुं० दे० 'खल्लीट' खलीन-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'खलिन' [को०] । खल्लिश-संडा पुं० [सं० खनसा नाम की मछली को । खलीफा-संज्ञा पुं० [अ० खलीफह] १. अध्यक्ष। अधिकारी। २. कोई वूदा व्यक्ति । ३. खुर्राट (दरजी)। ४. खानसामा । खल्ली'-संज्ञा पुं० [सं०] एक वायुरोग जिम में हाथ पांव मुड़ जाते . बावर्ची । ५. हज्जाम । नाई। ६. मुहम्मद साहब के उत्तरा- हैं। उ०-शिरगत वायु के होने से खल्ली रोग को उत्पन्न । करता है।-माधव०, पृ. १३६ । . . धिकारी (को०)। खलु--प्रव्य०, क्रि० वि० [सं०] १. शब्दालंकार । २. न खल्ली - संशा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'खली' । .. प्रार्थना । ४. नियम ५. निषेध । ६. निश्चय । अवश्य । - खल्लोट-संज्ञा पुं० [सं०] वह रोग जिससे सिर के बाल झड़ जाते हैं। गंज । ... उ०-तब प्रभाव बड़वानल हि जारि सके खलु तूल 1-तुलसी खल्लीट - वि० गंजा [को॰] । (शब्द०)। खलूरिका, खलूरी--संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ अस्त्र शास्त्र खल्व-संज्ञा पुं० [सं०] वह रोग जिसके कारण सिर के बाल झड़ .. का अभ्यास या व्यायाम इत्यादि हो । अखाड़ा । व्यायामशाला । जाते हैं । २. एक प्रकार का धान । ३ चना 1 खलेटी-संशा स्त्री० [हिं० खाल = नीचा] खलार भूमि या नीची खल्वाट-संज्ञा पुं० [सं०] गंज रोग जिसमें सिर के बाल झड़ .

‘जमीन । उ०--अब वह खेतों के बीच की पगडंडी छोडकर . . जाते हैं। .

एक खलेटी में आ गया था।--गोदान, पृ० ५। खल्वाटर--वि० जिसके सिर के बाल भाड गए हों। गंगा । खली -संशा श्री० [सं० घाफाशलता को । खलेरा-वि० [अ० खालह] काल। से उत्पन्न या संबद्ध । मौसेरा। खवा-संज्ञा पुं० [सं० सम्ध, प्रा० खंघ कंधा । भुजमूल । उ०—(क) ... - उ०-ममेरा फुफेरा खलेरा धनेरा ।-धरनी, पृ०८। कच समेटि कर भुज जलटि खए सीस पट टारिकाको मन । खलेल-संज्ञा पुं० [हिं० खली +तेल] खली प्रादि का वह अंश जो .बाँधं न यह जूरी बोधनिहारि :---विहारी (शब्द०) । (ख) फुलेल में रह जाता है और निथारने या छानने पर निकलता भाधव जी श्रावनहार भये । अंचल उड़त मन होत नहगहो फर• . .. है। फुलेल का गाज। उ०-सुख सनेह सब दियो दशरथहि कत नैन खा ।-सूर (शब्द०) (ग) खए लगि बाह उसारि खरि खलेल थिरथानी।—तुलसी (शब्द०)। उसारि । ए इतरत्त जब रिस धारि'।-सूबन (प्राब्द०)। . खल्क-संवा स्त्री० [अ० खल्क] दे० 'खलक' । उ०-- सयाने खल्म मुहा०-सवे से खया छिलना = (बहुत अधिक भीड़ के कारण) . . से यू' भागते हैं कि जू आतिश सेती भागे है पारा । कविता 'कंधे से कंधा हिलना।। को०, भा०४, पृ०४१ । खवाई-संञ्चा श्री० हिं० खाना] १. खाने की क्रिया । २. वह '..