पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५८२

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शेह छ्वाना मोह ।-मानम,२।१६। २. दया। अनुग्रह । गृपा । उ०- से मिले हुए कड़कड़ाते घी को दाल मादि में डालना जिसमें यह पारयनी सम पति प्रिय होहू । देवि न हम पर छोड़ब सोंधी या सुगंधित हो जाय । बघारना । जैसे, दाल छौंकना । डॉ1-मानस, २ ११८ । २. मेथी, मिरचा, हींग आदि से मिले हुए कड़कड़ाते घी में मोह-गंहा देनीमह । ध। जत्था । उ०-धारास फच्ची तरकारी, अन्न के दले या भीगे दाने श्रादि को सुनने के सुमन पनि गास प्रोतः । देपंत नेन मुनि मगन मोह 1-पृ० लिये डालना । तड़का देना । जैसे,-तरकारी छौंकना। रा०,१01 ६२ छोड़ा-संशा पुं० [सं० चुण्डा(= गड्ढा)] जमीन में खोदा हुमा वह छाहगर'- वि० [हिं० छोहनपर (प्रत्य॰)] प्रेमी । स्नेही । ममता गड्ढा जिसमें अनाज रखते हैं। खत्ता । गाढ़। रानेवाला। छोड़ा-संज्ञा पुं० [सं० सूनु या शावफ, हिं० छौना [ली छोड़ी] छोहगर-वि० [देश॰] कम । घोड़ा। लड़का । वालक । छोहना -मि० अ० [हिं० छोह+ना (प्रत्य॰)] विचलित छोड़ी-संहा स्त्री० [हिं०] लडकी । बालिका । उ०-छीलन की छौंडी होना । चंचल होना । क्षब्ध होना । उ०-बड़गूजरह कोयो। सो निगोड़ी छोटी जाति पांति, कीन्ही लीन आयु में सुनारी पंचानन ज्यों छोयो। सदन (शब्द०)। भोंडे भील की।-तुलसी (शब्द॰) । छोहना:-० अ० [हिं० छोह (प्रेम+) ना (प्रत्य॰)] प्रम छोह. छोहा-वि० [सं० छाया ( फाति, सादृश्य)] सदृश। समान । करना । अनुराग करना । (समासांत में प्रयुक्त) जैसे. कराह । ललछौंहा । होहनार,-वि० [देश॰] कम । थोड़ा । अल्प । छोकना-कि०म० [सं० चतुष्क, प्रा. चउपक] किसी जानवर छोहनीg-inी० [सं० प्रक्षोहिणो दे० 'छोहिनी' । उ-ज्ञान (शेर, बिल्ली आदि) का चारों पर उठाकर किसी की दल छोहनी भालु वानर लिहें ।-पलटू०, भा॰ २, पृ०१५। मोर कूदना या झपटना। चौकड़ी के साथ झपटना । छोहराए-पा० [सं० पायक, प्रा० छावक, छाव+रा (प्रत्य॰)] छीना-संघा पुं० [सं० सूनु (-पुत्र अथवा सं० शावषा, प्रा० छाव+ [ी छोहरी] लड़का। बालक। छोकड़ा । उ०-यापुस श्रौना (प्रत्य॰)] [बी० छौनी] १. पशु का बच्चा । किसी ही में बहुत हंसत है प्रभुहिरदै यह सालत । तनक तनक से जानवर का बच्चा जैसे-मृगछौना, सूअर का छौना । ग्याल घोहरन कम प्रवाहि बधि घालत 1-सूर (शब्द०)। २.बालक । शिशु। छोटा बच्चा । उ०--बाछरू छबीले छोहरिया:-संभा गडी० [हिं० छोहरी] दे० 'छोहरी' । छौना छगन मगन मेरे कहति मल्हाइ मल्हाई । --तुलप्ती छोहरी-संता मो. [हि छोहरा लड़की । बालिका । छोकही। (शब्द०)। -ताहि महीर की छोहरियां छछिया भर छाछ प नाच छौनी-संपा सी० [सं० क्षोरिए] दे० 'क्षोणी' । उ०-पृथ्वी, छिति, नचावें।--र समान (शब्द०)। छौनी, छिमा, घरनी, धात्री, गाइ। -नद० ग्रं॰, पृ. ६४ । छोहाना-मि० अ० [हिं० छोह] १. मुहब्बत करना । प्रेम छोर'-संचा पुं० [सं० क्षार, हि० छोरा] दे० दिवाना उ०-मग गोफर हिया चराना। सो पिता छोर'--संज्ञा पुं० [सं० क्षौर] दे० 'क्षौर'। हिए छोहाना । —जायसी (शब्द०)। २. अनुग्रह करना। मा छोर--संज्ञा पुं० [ हिउँवर (-चमड़ा) पुराने समय में सरहद के दया मरना । उ०---तुलसी तिहारे विद्यमान युवराज पाज झगड़ों के संबंध में शपथ खाने की एक रीति । गोपि पारोपि बमि के छोहाय छाडिगो।-तुलसी (शब्द०) विशेष-शपय खाने की इस रीति में वादी प्रतिवादी या किसी मुहाल-फिस पर छोहाना=(१) किसी पर स्नेह प्रकट करना। तीसरे व्यक्ति को, जिसके सत्यकथन पर झगड़े का निपटेरा (२) किसी पर दया या अनुराह करना। छोड़ दिया जाता था, गाय का चमड़ा सिर पर रखकर उसे छोहारा-संक्षा पुं० [हिं०] दे० 'छहारा'। सरहद या सिवान पर घूमना पड़ता था। छौरनाt कि० अ० [हिं० छोडना] दे० 'छोड़ना' । उ०-अपनी छोहिनी--संशा गटी० [सं० प्रक्षौहिणी दे० 'अक्षौहिणी'। घर छोरि के उहाँ क्यों पधारे हते।-दो सौ बावन०, छोही@ --वि० [हि छोह] प्रेमी । स्नेही । ममता रखनेवाला। भा० १, पृ० १९२। अनुरागी। 3०-पियो नैव यह वैपणवद्रोही । राजा महे साधु छोरा-संशा पुं० [सं०क्षर (=नाशवान, नष्ट)] २. ज्वार या बाजरे को छोही ।--रशुराज (शब्द०)। फा डंठल जो चारे के काम में प्राता है । डाँठ । कोयर । छोही. संक्षा मी [हि छोलना] सोइया । चूसी हुई गेंडरी को गरी। खरई। २.कपास का डंठल । मीठी । 30--रस छदि छोही गहे कोल्ह पेरत देश । गहै छोल -संका सौ० [देशी] दे० 'छोल"। 10-फरत कलोला प्रसार प्रसार गो हिरदे नाहि विवेक ।--कबीर (शब्द०)। दरियाव के बीच में ब्रह्म की छौल में हंस झूले ।-संतवाणी, पोक--संवा सो [मनु०] बघार । तदका । भा० २, पृ. १६। योर--हॉप वपार। छवाना@:-क्रि० स० [हिं० छुवागा] छुलाना। स्पर्श करना । उ०- छोकना--नि० स० [अनुदाय छाय' (तपी हुई वस्तु पर पानी ह्र कपूर मनिमय रही मिलि तन-दुति मुफुझालि । छिन छिन पड़ने का शब्द०)] १, हींग, मिरना, जीरा, राई, लहनुन प्रादि . . सरी विच्छिनौ लखति छ्याइ तिनु मालि।-विहारी (शब्द०)