पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६३

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विड़ी .. १६४१. छिलछिला छबड़ी- संज्ञा स्त्री० [हिं० छिबड़ा ] १. छोटा टोकरा । २. छियासी'- संज्ञा पुं०.१. छह और अस्सी की संख्या । २. उक्त संख्या ..खांचा । - का द्योतक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है--८६ ।। छिवना--कि० अ० [सं० स्पर्शन, प्रा० छिवरण, हिंछना लगना। छिरकना-क्रि० स० [हिं० छिड़फना ] दे० 'छिड़कना । 30-

- स्पर्श करना । छूना । उ०—(क) अ भाटी छिबता असमाण । एकादशी एक सखि पाई हारयो सुभग अबीर। एक हाथ

. ., . - किलवा सजूटा केवाण ।-रा रू', पृ० २७७ । (ख) इंद्र पीतांवर पकर यो छिरकत कुंकुम नीर ।-सूर (शब्द०)। . .. भाण मुकनेस रौ, ग्रह केवाण तरस्स। आसमान छिब छिरकाना--- वि० स० [हिं० छिड़काना) दे० 'छिड़काना। -:. आखियो, भाई भांरण सरस्स.।-रा० रू०, पृ०७५ 1 छिरनाल-कि० अ० [हिं० छिलना] दे० 'छिलना' । उ०-~मकरि छिमा@ संज्ञा श्री० [सं० क्षमा] दे० 'क्षमा' । उ-छिमा करवाल कतार तेहि कर चीरू । सो पहिरै छिरि जाइ सरीरू ।- है विसाल धीर कर बीच, दरन दयाल कोप नीच कों नसायो जायसी (शब्द०)। है।-दीन० नं०, पृ० १३४।। छिरहटा - संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'छिरेटा'। छिमाछिम-मंद्या श्री [सं० छमा से हिं० छिमा की द्विरुक्ति ] छिरहा - वि० [हिं० छेड़ना] हठी । जिद्दी ।' ... क्षमा का प्रादर । क्षमा करने का अदय या पाभार । तात्कालिक छिरेटा-संशा पुं० [हिं० छिलहिड] [ स्त्री अल्पा० छिरेटी 1 एक शांति । २०-छिन एक छिमाछिम रष । चावहिसि नप मनप छोटी बेल जो मैदानों, नदी के करारों श्रादि पर होती है। .....विटयो । पृ० रा०, । १० । १७ । विशेष इसकी पत्तियों का कटाव सीके की ओर कुछ पान सा छिय छिय-प्रव्य [ अनु० ] घृणासूचक उक्ति । तिरस्कार का होता है, पर थोड़ी ही दूर चलकर पत्तियों की चौड़ाई एक- .. शब्द । दे० 'छि' । उ०-क्षीर सिंधु तेजि कूपे बिलास । छिय बारगी कम हो जाती है और वे दूर तक लंबी बढ़ती जाती ... छिय तोहार रभसमय भास । -विद्यापति, पृ० ५८७ । है। यह चौड़ाई सिरे पर भी उतनी ही बनी रहती है। इन छियना@+-क्रि० स० [सं० स्पर्श] दे० 'छूना'। . पत्तियों की लंबाई ढाई तीन अंगुल से अधिक नहीं होती और छिया -संज्ञा स्त्री० [सं० क्षिम, प्रा० छिव, हिं० छिः छिः] १. वह जिसे इनका रस नियोड़कर जल, दूध आदि में डालने से जल या - देखकर लोग छी छी व रें। घृणित वस्तु। घिनौनी चीज । दूध गाढ़ा होकर जम जाता है। इस वेल में बहुत छोटे छोटे . .. २. मल । गलीज । मैला । उ०-हौं समझत, सांई द्रोह की फल गुच्छों में लगते हैं जो पकने पर काले हो जाते हैं । - गति छार छिया रे - तुलसी (शब्द०)। वैद्यक में फिरेटा मधुर, वीर्यवर्धक, रुचिकारक तथा पित्त, दाह और विप को दूर करने वाला माना जाता है। मुहा-छिया छरद करना=छी छी करना । मल और, वमन के पर्या०छिलहिंड । पातालगरुड़। महामूल । वत्सादिनी । , समान घुरिणत समझना । घिनाना । उ०--जो छिया छरद विक्तांगा। मोचकाभिद्या । दाी। सीपी । गाडी । दीर्घ- ..करि सकल संतन तजी तासु मतिमूढ़ रस प्रीति ठानी ।-- फांडा । महावला । दीर्घवल्ली । दृढ़लता। सूर (शब्द॰) । छिया छार होना=घिनौना होना । घृणित ...एवं मैला होना । घुणित और नष्ट होना। उ०-सो वन छिलकना-क्रि० स० [हिं० छिडकना है छिडकना। छिया छार होय जैहै, नाम न लेहैं कोई ।-कबीर श०, छिलका-संशा पुं० [ सं० शाल्क ( =यल्कल, छाल), देशी हल्ली ( =छाल )] फलों, कदों तथा इसी प्रकार की और छिया-वि० मैला । मलिन । घृणित । वस्तुयों के ऊपर का कोश या वाहर पावरण जो छीलने, छिया-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बछिया छोकरी। लड़की । उ०-कोन काटने या तोड़ने से सहज में अलग हो सकता है। फलों की - की छाँह छिपौगी छिया छहिया तजि नाह की माह निसा त्वचा या ऊपरी झिल्ली। एक परत की खोल जो फलों, में -सुदर सर्व० (शब्द०)। बीजों प्रादि के ऊपर होती है। जैसे, सेव का छिलका, कटहल छियाछी-संहा श्री० [हिं० छूना+छिपाना ] छूने और छिपने का का छिलका, गन्ने का छिलका, अंडे का छिलका । . खेल 1 श्रीख मिचौनी । उ०--चलो छिया छी हो अंतर में ! विशेष-छाल, छिलका और भूसी में अंतर है। छाल पेड़ों के तुम चदा मैं रात सुहागन । चमक चमक उट्टे आँगन में । चलो घड़, डाल और टहनियों के ऊपरी आवरण को कहते हैं, जो छिया छी हो अंतर में-हिम०, पृ० ११ ॥ काटने, छीलने आदि से जल्दी अलग हो जाता है। भूसी छियाज-संपा पुं० [सं०क्षरण+व्याज] कटुमा व्याज। महीन दानों के सूखे हुए आवरण को कहते हैं जो कूटने से छियानवी वि०, संश पुं० [हिं०] दे० 'छानये' । अलग होता है। छियालिस-वि०, संज्ञा पुं० [हिं० छियालीस] दे० 'छियालीस' । छिलछिल-वि० [हिं०] दे० 'छिछिला' 1 उ.--जहँ नहिं नीर गंभीर _ छियालीस'..'वि०संबटचत्वारिंश, हिछह-चालीस] जो संख्या तहाँ भल भंवरी परई । छिलछल सलिल न पर पर तो छवि .. में चालीस और छह हो। नहिं करई ।-नंद००, पृ०१३।। - छयालीस...-संवा पं०१ छह और चालीस की संख्या। २. उक्त छिलछला वि० दिया] हिलता डुलता हमा। जो जमा न हो। ' संख्या का द्योतक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है--४६। ढीला । उ०-ौरन को दह्यो छिलछिलो लागत मैंने तोः यासी-वि० [सं० पाउशीति. प्राः छासीति प्रा० छासी] छह प्रोटाइ जमायो रचि रुचि भरि के तमी।-नंद ग्रं०, पृ०: - मोर अस्सी। जो गिनती में प्रस्सी से छह अधिक हो ।