पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६

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११३२ खयाल खमर पाल .. करना । उ०-न बम ताप हजार नर, जुदो जुदो डर जाग । खमीरी-वि० सी० [फा० नामी-] दे० 'सामीरा' -वांकी० न०, भा० १, पृ०२५ । खमीलन-संज्ञा पुं० [सं०] तंद्रा । झपकी किो०] । खमर ग्राल-संज्ञा पुं० दिश०] एक प्रकार का कंद । उ०- नहीं तो खमूनि-संघा पुं० [सं०] १. शिव । शंकर । २. दिग्ध शरीर या दिम ., कोही के जंगल से 'खमर पाल' उखाड़ लाएंगी।-मैला०, पुष्प [को०] 1. पृ० १३. खमूली-संना [सं०] जल भी लता [को०] । खम्सना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'बभरना। . खमो-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक छोटा सदाबहार पेड़। :: खमसा-संवा पुं०० खमसह-पांच संबंधी.] १. एक प्रकार की विशेष—यह भारतवर्ष, वरमा और अंडमान टापू में समुद्र के गजल जिसके प्रत्येक बंद मैं पाँच चरण होते हैं । २. संगीत मटियाले किनारों और दरारों में उत्पन्न होता है । इसके में एक प्रकार का ताद जिसमें पांच प्राधात और तीन खाली छिलके में सज्जी का अंश अधिक होता है और यह चमड़ा होते हैं। इसका बोल यह है- सिझाने के काम में आता है। इससे एक प्रकार का रंग निकलता है जिसमें सूती कपड़े रंगे जाते हैं । इसके फन सपने धा, घा, केटे, ताग, तेरे केटे, तागर, देत, धा। में मीठे होते हैं और बाए जाते हैं। इसकी डानियों से सूत' ४. पांवो उंगलियाँ (को०)। की तरह पनली जटा निकलती है जिससे एक प्रकार का खमसा--वि० पाव संबंधी । पांच से संबंध रखनेवाला [को०] | . ' . नमक बनता है। इसकी 'लकड़ो भी अच्छी होती है, पर यहत खमा@-संज्ञा चौ० [सं० क्षमा, प्रा० खमा ] दे० 'क्षमा' 1 30-- कम काम में प्राती है । इसे भार और राई भी कहते हैं। ...... दौरि राज प्रथिराज सु आयो । खमा खमा अउर्व उच्चायो।- खमोश-वि० [फा० खमोश] दे० 'खामोश'। पृ० रा०४।४। खमोशी-संका मौ० [फा० खामोशी] दे० 'खामोशी' । खभाच--संज्ञा स्त्री० [हिं० खम्माच दे० 'खम्माच! खमोस-वि० [फा०खनोश दे० 'सामोश'। उ-हों को कर खमाल-मया पुं० [देश॰] वजूर के हरे फल जो पच्छिम में भेड़, . 'खम म होस ना तन को र च । गगन गुफा के बीच पियाला बकरी और गायों को खिलाए जाते हैं। प्रेम का चाख-पलट० बानी, भा० १, पृ०६। खमाल:-[अ० हम्माल ] जहाज में असवाब की लदाई । लदनी। खम्माच-संज्ञा दी० [हि भावती ] माल कोस राग की दुसरी खमियाजा-संधा पुं० [फा० खम्याजह, ] १.अंगड़ाई। २. जमाई। गिनी जभा । ३. एक दंड जिसमें अपराधी को शिकंजे में कस दिया विशेष—यह पाड़ जाति की रागिनी है और रात के दुसरे जाता था। ४. करनी का फल । वदला ५. नतीजा। पहर की पिछली घड़ी में गाई जाती है। परिणाम 1. कष्ट । दुःख । ७. दंड । सजा [को०)। . मुंहा०-खमियाजा उठाना = करनी का फल पाया। दंड पाना। खम्माच कान्हड़ा--संज्ञा पुं० हि० खम्माच+कान्हा का एक संकर राग जो रात के दूपरे पहर में गाया खमीदगी-संवा स्त्री० [फा० खमीदगी ] वक्रता । टेढ़ापन (को०]। खमीदा-वि० [फा० खमीदह] १. झुका हुप्रा। खमदार । २'वक्र । जाता है। टेवा [को०] । खम्मांच टोरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० खंभावती+टोरी ] संपूर्ण जाति खमीर-संज्ञा पुं० [प० समीर] १. गूधे हुए ग्राटे का सढ़ाव का एक रागिना जा छभिावती पोर टोरी से मिलकर क्रि० प्र०----उठना।--उठाना ! बनती है। .' महा०-खमीर बिगठना= गधे हए प्राटे का अधिक सड़ने के खम्हा -संशा पुं० [हिं० समा] दे० सभा, कारण बहुत खट्टा हो जाना। खमीर खट्टा होना= दे० फिरिधता चारि बहाया । एही चारि खम्हाँ तन लाया।-सं० 'खमीर बिगड़ना'। दरिया, पृ० ३१। २. गूधकर उठाया हुण घाटा । माया । ३. कटहल, चनन्द्रास खम्माचा- संज्ञा जी० [हिं०] दे० 'खम्माच'। खयंग ___.. : आदि को सड़ाकर तैयार किया गया एका पदार्थ जो तंबाकू में -संशा (० [सं० खड्ग दे० 'खडग 17 , उसे सुगंधित करने के लिये डाला जाता है। ४. स्वभाव। करइ पल्लारिणयाँ पवंग । खुरसारणी सूधा खयेंग चरिया चतुरंग । ढोला०, दू० ६४० ॥ महा०--द्वामीर बिगाड़ना= स्वभाव या व्यवहार प्रादि में भेद खय -संवा सी० [सं० क्षय] १. दिनाण । छय । २. प्रलय। . पड़ना । खया@-संशा पुं० [सं० स्कन्ध ] भुजमूल । खवा! उ०-कंदुक खमीरा'-वि० [फा० नापीरह.] [सी० खामीरी] मीर उठाकर केलि कुशल हय पहिचढ़ि, मन कसिकसि ठोकिठोकिने . बनाया या नमीर मिनाया दृया । तामीरबाला। जैसे,-- --तुलसी (शब्द०)। ... सामोरी रोटी। नामोरा तंबाकू ।। • खयानत-संदा की. [अ०] १. धरोहर रखी हुई वस्तु न देना अथवा खमीरा-संथा पुं०१. चीनी या शोरे में पकाकर बनाई हुई ग्रोपधि। कम देना । गबन । २ चोरी या बेई पानी। '. ' से. जमीरा बनफशः । २. पीने का सुगंधित तंबाकू (को०1 खयाल---संक्षा पुं० [प्र० खपाल दे० पाल ना . . प्रकृति।