पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५८

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छिकरा छिटका छि को दूर करनेवाली मानी जाती है । इसे नफछिकनी भी और जो मुसलमानों में खतने या मुसलमानी के समय काट कहते हैं। दिया जाता है। पर्या--छियफनी। क्षवकृत । तीक्ष्णा । उग्रा । उग्रगया । क्षवका छिछियाना--कि० स० [अनु० छि]ि कुत्सा करना । निंदा करना। ३ रनासा। प्राणदु.खदा। घिन करना। छिकरा-संथा पुं० [सं० छिक्फर] हिरन की जाति का एक जानवर छिछलना-कि० अ० [हिं० छिछला] फिसलना । छटकना । जो बहुत तेज होता है। बृहत्संहिता के अनुसार ऐसे मृग छूते हुए निकल जाना । उ०-पाजाद ने एक अनी लगाई, का दाहिनी ओर से निकलना शुभ है। छिछलती हुई चोट पड़ी।--फिसाना०, भा० ३, पृ० १३६ । छिकार-संज्ञा पुं० [सं० छिवकार] दे० 'छिक्कार' उल-मिरगो एक छिछला-वि० [हि० फूछा+ला (प्रत्य०) प्रथया देश० ] वि० सी० पाँच है हरिणी जामें तीन छिकार । अपने अपने रस के छिछली] ( पानी की सतह ) जो गहरी न हो। उथला। लोभी चरत हैं न्यारा न्यार |--राम धर्म०, पृ.४२ । जैसे, छिछला पानी, छिछला घाट, छिछली नदी। २. छिकुला--संज्ञा पुं० [हिं० छिलका ] छिलका । उ०--प्रेम बिकल, निम्न स्तर का । अगंभीर । क्षुद्र । छिछोरा । जैसे,--वह अति आनंद उर धरि कदली छिकुला खाए।-सूर०, १११३ ॥ छिछले स्वभाव का प्रादमी है। छिक्कर-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मृग । छिकरा। छिछिला-वि० [हिं०] दे० 'छिछला'। छिक्कनी संशा स्त्री० [सं०] नकछिकनी बूटी । वि० दे० 'छिकनी'! छिछिलाई-संघा खी० [हिं० छिछिला] छिछला होने का भाव । डिक्का -संशा पुं० [सं०] छोंक (को०] । छिछिली --वि० श्री० [हिं० छिछिला] दे० छिछला'। छिक्का--संज्ञा पुं० [हिं छींका] दे० 'छौंका' । उ०--छिक्के पर छोटी छिछली-संज्ञा ली० [अनु०] लड़कों का एक खेल जिसमें वे एक सी हंडिया टॅग रही थी, कोने में ।-नई०, पृ० १२६ । पतले ठीक रे को पानी पर इस तरह फेंकते हैं कि यह दूर तक छिक्कार-संज्ञा पुं० ]०] छिपकर नामक मृग। उछलता हा चला जाता है। छिक्काका--संज्ञा खी० [सं०] छिकनी । नकछिकनी। क्रि० प्र०-खेलना। छिगुनना:-कि० अ० [देश॰] मसोसना। खिन्न होना। उ० छिछोरा-वि० [हिं० छिछोरा) २० छिछोर' । जैसे, चोरछिछोर । शेखर फी याद सताती है वह छिगुन छिगुन रह जाती है।- छिछोरपन--संक्षा पुं० [हिं० छिछोरा+पन] छिछोरा होने या भाव। रेणुका, पृ० ५७ । क्षुद्रता । पोछापन । नीचता ।। छिगुनिया-संवा स्त्री० [हिं० छिगुनी] ,३० छिगुगो'।। छिछोरा-वि० [हिं० छिछला] [वि० सी० छिछोरी ] क्षुद । छिगुनी- संशा स्त्री० [सं० क्षुद्र अङ्गली] सबसे छोटी उगली। कनिः । पोछा । जो गंभीर या सौम्पन हो । नीच प्रकृति का । ष्ठिका । उ-(क) गोरी छिगुनी नख अरुन छला श्याम छिछोरापन--पंद्या पुं० [हिं०] दे० 'छि छोरपन' । छवि देइ । लहत मुकति रति छिनेक यह नन त्रिवेनी सेइ।-- छिज-11-मि० भ० [सं० विक्षरणविशिष्ट एप क्षिय दे० 'जीजना। विहारी (शब्द०) । (ख) प्रापे पाप भली करो मेट न मान छिजाना-कि० मा [हिं० छीजमा] किसी वस्तु को ऐमा करना कि मशेर । करो दूर यह देखिहै छाल छिगुनियाँ छोर ।--बिहारी वह छोज जाय । छोजने या नष्ट होने देना । छिटकना-क्रि०अ० [सं० क्षिप्त, प्रा. वित्त, या सं० छित्त+फरण] छिगुली-संशा प्री० [हिं०] दे० 'छिगुनी'। १ इधर उधर पड़कर फैलना। चारों ओर दिधरना। छिचोरा-वि० [हिं० छिछला ] दे० 'छिछोरा' । 30--जिन छितराना । बगरना। छिचोरों की तरफ कोई स्त्री प्रीति से नहीं देखती वो अपने संयो॰ क्रि०-जाना। ...... संगतियों में बैठकर झूठी बातें बनाने में अपनी बड़ाई समझते २. प्रकाश की किरणों का चारों मोर फैलना । प्रकाश का व्याप्त हैं।- श्रीनिवास ग्रं०६४ ॥ होना। उजाला छाना । जैसे, चांदनी छिटकना, तारे छिच्छ @----संज्ञा सी० मिनु०] नू । छींटा। सीकर । उ०—(क) छिटकना । उ०--(क) जहं जहँ विहसि ममा मह हंगी । तह राम पार लागि मनु मागि गिरि पर जरी छलि छिच्छनि तह छिटकि जोति परगसी ।--जायसी (शब्द०)। (ख) नखत सुमन नभ बिटप बौंडि मनो छपा छिटकि छवि छाई।-- शारनि भानु छाए । - सूर (शब्द०)। (ख) कहु श्रोन छिच्छ यति लाल लाल । मनु इंदुबधू करि रहिय जाल ।---सूदन तुलसी मं०, पृ० २७७ । ३. छटकना । दूर भागना । अलग हो जाना । उ०-प्रय मत छिटको दूर, प्राणघन; देखो, छिछकारना-क्रि० स० [अनु॰] छिड़कना। होता है धन गर्जन ।-यबासि. पृ० १८ . छिछड़ा-संज्ञा पुं॰ [सं० तुच्छ, प्रा० छुच्छ] है'छीछड़ा। छिटकनी--संक्षा सौ. [अनु०] अर्गल । चटकनी। सिटकिनी।. .. छिटकाई--संश पुं० [हिं० छिटफना] पालकी के ग्रोहार का वह भाग छिछड़ो-संवा स्त्री० [हिं० छिछड़ा] लिंगे द्रिय के ऊपर का वह जो दरवाजे के सामने रहता है और जिसे उठाकर लोग पालकी अगला भावरण जो बाहर की और कुछ बढ़ा हुआ होता है में घुसते, निकलते या उसमें से बाहर देखते हैं । परदा ।