पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५०

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छाजा १६२८ छाती विद्यमान होना । विराजना । सुशोभित होना । उ-मुकुट मोर पर पुज मंजु सुरधनुष विराजत । पीत बसन छिन छिन नवीन छिनछवि छवि छाजत । मतिराम (शब्द०)। छाजा:--संगा पुं० [सं० छाद] १. छज्जा। उ.---"चे भवन मनोहर छाजा, मणि कंचन की भौति । —सूर (शब्द०)। २. छाजन । छाजित-वि० [हिं० छाजना] शोभित । छाडना, छाड़ना --क्रि० अ० [सं० छदि ] के करना । उलटी करना । वमन करना । छाडना, छाड़ना-क्रि० स० [हिं०] 'दे०छोड़ना', 'छोड़ना। छात' -मंशा पुं० [सं० छत्र, प्रा० छत्त] १. छाता। छत्तरी । २. राजछत्र उ०- रूपवंत मान दिए ललाटा । माथे छात बैठ सब पाटा - जायती (शब्द०)। ३. पाश्रय । प्राधार । उ० · हम से प्रोछ के पावा छातू । मूल गए सँग रहा न पातू ।-जायसी (शब्द०)। छात-वि० [सं०] १. कटा हुआ । छिन्न । २. दुर्वल । कृश । छात -संवा स्त्री॰ [सं० छत्र, प्रा० छत्त, हिं० छत ] दे० 'छत' । उ०-सेवरा हराए बादी, पाए नप पास, ऊ चे छात पर बैठि एक माया फंद डारयो है ।- भक्तमाल (श्री.), पृ. ४६६ । छाता-संज्ञा पुं० [सं० छत्र, प्रा० छत्त] १. लोहे, बांस प्रादि की तीलियों पर कपड़ा चढ़ाकर बनाया हुआ आच्छादन जिसे मनुष्य धूप, मेंह यादि से बचने के लिये काम में लाते हैं। बड़ी छतरी । उ०-फूला कंवल रहा होइ राता । सहस सहस परिन कर छाता । “ जायसो ग्रं॰, पृ० १२। । मुहा०-छाता देना या लगाना=(१) छाने का व्यवहार करना। (२) छाता ऊपर तानना। २. छत्ता । खुमी। ३. चौड़ी छाती। विशाल वक्षस्थल । ४. वक्षस्थल की चौडाई की नाप । छाती-संह जी [म० छाचिन्, छादी (= अाच्छादन करनेवाला) १. हड्डी की ठठरियों का पल्ला जो कलेजे के ऊपर पेट तक फैला होता है। पेट के ऊपर का भाग जो गरदन तक होता हैं । सीना । वक्षास्थल । विशेष- छाती की पसलियां पीछे की ओर रीढ़ और आगे की ओर एक मध्यवती प्रस्थिदंड से लगी रहती हैं। इनके अंदर के कोठे में फुप्फुस और कलेजा रहता है। दूध पिलानेवाले जीवों में यह कोठा पेट के कोठे से, जिसमें अंगड़ी प्रादि रहती है, परदे के द्वारा बिलकुल अलग रहता है। पक्षियों और सरीसृपों में यह विभाग पतना स्पष्ट नहीं रहता। जलचरों तथा रेंगनेवाले जीवों में तो यह विभाग होता ही नहीं। महा०-छाती का जम (१) दुःखदायक वस्तु या व्यक्ति । हर घड़ी कष्ट पहचानेवाभपादमी या वस्तु । (२) कष्ट पहनाने के लिये सदा घेरे रहनेवाला आदमी। (३) धृष्ट मनुष्य । होठ पादमी छाती पर का पत्थर या पहाड़=(१) ऐसी वस्तु जिसका खटका सदा बना रहता हो । चिता उत्पन्न करनेवाली वस्तु । जैसे,—कुआरी लड़की, जिसके विवाह की चिंता सदा बनी रहती है। (२ सदा कष्ट देनेवाली वस्तु । दुःख से दवाए रहनेवाली वस्तु। छाती फूटना= दे० 'छाती पीटना' । उ०-कूटते हैं तो बदों को फूट दें। बाट मरें, क्यों कूटते छाती रहें।-धुभते० पृ० ३६ । छाती के फिवाड़ छाती का पंजर। छाती का परदा या विस्तार । छाती फा किवाद खुतना=(१) छाती फटना । (२) कल से चीकार निकलना । गहरी चीख निकलना । जैसे,-मैं तो प्राता ही था; तेरी छाती के विचार क्या खुल गए । (३) हृदय के कपाट खलना।हिए की प्रांख खुलना हृदय में ज्ञान का उदय होना । अबोध होना । तत्व बोध का होना । (४) बहुत आनंद होना । छाती के किवाड़ खोलना=(१) कलेजा टुकड़े टुकड़े करना । (२)जी खोलकर बात करना । हृदय की बात स्पष्ट कहना। मन में कुछ गुप्त न रखना । (३) हृदय का अंधकार दूर करना । प्रज्ञान मिटाना। प्रतोंध करना। छाती खोलना=वातों द्वारा हृदय को वैधना । अपने कथन से किसी की पीड़ा पहचाना । 30--पाकवाक वकि और भी वृथा न छाती छोल।-सुदर० ग्रं॰, भा॰ २, पृ०७३६ । छाती तले रखना=(१) पास से अलग न होने देना । सदा अपने समीप या अपनी रक्षा में रखना । (२) प्रत्यंत प्रिय करके रखना । छाती तले रहमा=(१) पास रहना । प्रांखों के सामने रहना । (२) प्रत्यत प्रिय होकर रहना । छाती दरकना=दे. 'छाती फटना' । छाती दरना=सताना । क्लेश देना । 30-- ब्रजवास ते ऊधी प्रवास करो, अब खूब ही छाती दरी सो दरी। नट०, पृ० २६ । छाती निकालकर चलनातनकर चलना । अकड़कर चलना । ऐंठकर चलना । छाती पत्थर की फरना-भारी दुःख सहने के लिये हृदय कठोर करना । छाती पर मूग या फोदो दलना=(१) किसी के सामने ही ऐसी बात करना जिससे उसका जी दुखे । किसी को दिखा दिखाकर ऐसा काम करना जिससे उसे क्रोध या संताप हो। किसी के आँख के सामने ही उसकी हानि या तुराई करना । जैते,- यह स्त्री वड़ी कुलटा है। अपने पति की छाती पर कोदो दलती है (अर्थात् अन्य पुरुप से बातचीत करती है) । (२) प्रत्यंत कष्ट पहुँचाना । खूब पीड़ित करना । (स्त्रियाँ प्रायः 'तेरी छाती पर मूग दलू' कहकर गाली भी देती हैं) 1 छाती पर चढ़ना- कष्ट पहुंचाने के लिये पास जाना । छाती पर चढ़फर डाई चल्ल लह पीना-कठिन दंड देना। प्राणदंड देना । छाती पर धरकर ले जाना अपने साथ परलोक में ले जाना। -(धन प्रादि के विषय में लोग बोलते हैं कि 'क्या छाती पर धरकर ले जायोगे?') छाती पर पत्थर रखना--किसी भारी शोक या दुःख का पाघात सहना.। दुःख सहने के लिये हृदय कठोर करना । छाती पर बाल होना-उदारता, न्यायशीलता आदि के लक्षण होना ।--लोगों में प्रवाद है कि सूम या विश्वासघातक की छाती पर बाल नहीं होते) । छाती पर सांप लोटना या फिरना=(१) दुःख से कलेजो पहल जाना । हृदय पर दुख शोक मादि का पाघात पहुँचना । मन मसोसना । मानसिक व्यथा होना । (२) ईया से हृदय व्यथित होना । डाह होना । जलन होना । छाती पर होना=3