पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४८

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छोटा छोही। समान हैं, जीया तेबही जाणि । दादू छाँटा अमी का, को साधू बाहै प्रापि।-दादू०, पृ० ३० । छाँटाम--संज्ञा पुं॰ [हिं० छाँटना ] धोखा । क्रि० प्र०-देना। छाड़ चिट्ठी-- संवा स्त्री० [हिं०छोड़ना+चिट्ठी] वह पत्र या परवाना जिसे देखकर उसके रखनेवाले व्यक्ति को कोई रोक न सके । रवन्ना। छोड़ना@1--क्रि० स० [सं० छर्दन, प्रा० छड्डन] छोड़ना । त्यागना । उ०-सप्त दीप भूज वल बस कीन्हें । लेइ लेइ दंड छडि सब दीन्हें । तुलसी (शब्द०)। छाद-संझा सी० [सं० छन्द (-बंधन)] १. छोटी रस्सी जिससे घोड़े गदहे मादि के दो पैरों को एक दूसरे से सटाकर बांध देते हैं जिसमें वे दूर तक भाग न सके, केवल कूद कूदकर इधर उधर चरते रहें। उ०--जो मन घरि बेन्हिए बाँधो, भाजे छाद तुराई। -धरनी०, पृ० ५। २. वह रस्सी जिससे अहीर गाय दुहते समय गाय के पर बांध देते हैं। नोई। नोइड़ा। छादना-क्रि० स० [सं० छन्दन] १. रस्सी आदि से बाँधना । जकड़ना । कसना। यौल-बांधना छांदना=बोधना । जैसे--असबाब बाँध छोदकर रख दो। २. घोड़े या गदहे के पिछले पैरों को एक दूसरे से सटाकर बाँध देना जिसमें वह दूर तक भाग न सके, पास ही पास चरता रहे । ३. किसी के पैरों को दोनों हाथों से जकड़कर बैठ जाना और उसे जाने न देना। जैसे-वह स्त्री अपने स्वामी का पैर छांदकर बैठ गई और रोने लगी। मुहा०--पैर छाँदना-जाने से रोकना । छाँदाt'-संक्षा पुं० [हिं० छांटना] हिस्सा । बखरा । भाग । छांदा+-संवा पुं० [हिं० छानना उत्तम भोजन । पकवान । क्रि० प्र० उड़ाना। छानी -वि० [हिं० छाना ] छिपी हुई। ढेको हुई । दबाई हुई (वात)। उ०-केड़ें पड़ी रहे मानदघन छानी वान उधाई छ ।--घनानंद, पृ० ३२५ । छाम--वि० [सं० क्षाम] दे० 'छाम' । उ--पहले मुसकाइ लजाइ कछु क्यों चित मुरि मों तन छाम किया।-पोद्दार, अभि० ग्रं॰, पृ० ४६५ छवि-संथा की. [सं० छाया] दे० 'छाह' । छांवड़ा -संज्ञा पुं० [सं० शावक, प्रा० छावन+डा (स्वा० प्रत्य०) तुलनीय हिं०छौना] [स्त्री० छानड़ी, छौड़ी] १. जानवर का बच्चा। किसी पशु का छोटा बच्चा। इ०-धरिये नाव बलि जाव राधे चंद्रमुखी वारी गतिमंद पै गयंदपति छाँवड़े। --देव (शबद०)। २. छोटा बच्चा । बालक । शिशु छाँस-संक्षा स्त्री० [हिं० छाँटना] १. भूसी या कन जो अनाज ... चाटने से निकलता है। २. कूड़ा करकट। छाह-संक्षा सौ. [ सं० छाया ] १. वह स्थान जहाँ पाड़ या रोक के कारण धूप या,चाँदनी न.पड़ती. हो.। छाया जैसे, पेड़ की. छाह । उ०--हरषित भये नंदलाल वैठि तरु छांह में।- सूर (शब्द०)। मुहा०-छोह फरना=पाड़ करना। प्रोट करना । छाँह में होना=ोट में होना। छिपना । 30--पंथ अति कठिन पथिक कोउ संग नहि तेज भए तारागन छोह भयो रवि है । —(शब्द०)। छोह धूप न गिनना=पाराम और तकलीफ न विचारना। उ०--ऐसी अनूप मृदुला मरोरि मारे सुमन मुख सुबास मृगमद कदन । तिय रूप लखि छाह धूप नहि गिनत मन ! --ब्रज००, पृ० ६१६ १. ऐसा स्थान जिसके कपर मेंह आदि रोकने के लिये कोई वस्तु हो । ऊपर से धावत या छाया हया स्थान । जैसे-पानी बरस रहा है, छह में चलो। ३. बचाव या निर्वाह का स्थान । शरण । संरक्षा । जैसे-अब तो तुम्हारी छाह में पा गए हैं। जो चाहो सो करो। यो०-छत्रछाँह । ४. पदार्थो का छायारूप प्राकार जो उनके पिडों पर प्रकाश रुफने के कारण धूम, चाँदनी या प्रकाश में दिखाई पड़ता है। परछाई। उ०-आँगन में प्राई पछताई ठाढ़ी देहली में, छांह देख प्रपती श्री राह देखे पिय की 1-(शब्द०)। मुहा०-छाँह न छूने देना=पास न फटकने देना । निकट तक न पाने देना । छाँह बचाना=दूर दूर रहना । पास न जाना। अलग रहना। छाँह छुना-पास जाना। पास फटकना । उ०-मुंह माहीं लगी जक नाहीं मुबारक, छांहीं छुप छरक उछल । --मुवारक (शब्द॰) । ५. पदार्थों का आकार जो पानी, शोशे आदि में दिखाई पड़ता है। प्रतिबिंब । उ०---केहि मग प्रविसति जाति हंक ज्यों दरपन मह छाँह । तुलसी त्यों जगजीध गति करी जीव के नोह।-तुलसी (शब्द०)। ६ भूत प्रेत यादि का प्रभाव । भासेज । बाधा। उ०---भाल की, कि काल की, कि रोप की, त्रिदोष की है, वेदना विषम पाप ताप छन छोह की।- तुलसी (शब्द०)। छांहगीर-संघा पुं० [हिं० छह +फा० गीर १. छत्र। राजछन । 3०-उयो सरद राका ससी करति क्यों न चित चेत । मनों ... मदन छितिपाल की छोह गीर छवि देत ।-विहारी (शब्द०). २. दर्पण । भाइना । ३. छड़ी के सिरे पर बंधा हुप्रा . एक प्राइना जिसके चारों ओर पान के प्रकार की किरने लगी रहती हैं और जो विवाह में दुलहे के साथ पासा प्रादि की तरह चलता है। छोहड़ी-था, श्री० [हिं० छाँहड़ी , (प्रत्य॰)] दे० 'ह' । उ०- बासुरि गमि न रैगि गनि, नां सुपनतर गम । कबीर तहाँ .. विलंबिया जहाँ छोहड़ी न म ।-फवीर ग्र०, पृ० ५४ 1 छोहरी--संघा स्त्री० [हिं० छाह+री (प्रत्य॰)] दे० 'छाह' ।. (ख) सुंदर यों अभिमान करि भूलि गयौं निज रूप। कबहूँ .. बैठे छाहरी कबहु बैठे धूप।-सुंदर मं०, भा०२. पृ०७७४। । छांही-संवा सौ. [ हिं० छाँह ] दे॰ 'छोह' । उ०प्रभु सिय - लखन वैठि बट छोहीं। प्रिय परिजन वियोग बिलखाहीं।- . मानस, २। ३२०। . छाँवडाननीय EिIN पशु का छोटा मतिमंद व गण