पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४७

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विशेष- इस उपनिषद् के प्रथम प्रपाठक (ब्राह्मण के तृतीय) में १३ खंड हैं जिसमें प्रायः ओ३म् का ही वर्णन है। दूसरे में . २४ खंड हैं जिनमें यज्ञों की विधि और मंत्रों के गायन की शिक्षा. बड़ें विस्तार से है। तीसरे प्रपाठक के १६ खंड हैं ... जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति आदि का वर्णन तथा ब्रह्म विद्या का सूक्ष्म विचार है । त्रिकाल संध्या और सूर्य के जप आदि का भी विवरण है। चौथे प्रपाठक में १७ खंड हैं जिनमें सत्यकाम जाबालि के प्रति उपदेश है, यज्ञों की विधियाँ वताई गई हैं और ऋक्, यजु, साम के भूः, भुवः, स्वः यथाक्रम तीन देवता मानकर तप के विधान का प्रतिपादन . . है। पांचवें प्रपाठक के २४ खंड हैं। इसी में प्राण और इंद्रियों का वर्णन है और गाथा द्वारा यह बतलाया गया है कि अग्निहोत्र से सृष्टि की वृष्टि होती है, उसी से मेघ होता है. मेघ से वृष्टि होती है, वृष्टि से अन्न होता है, अन्न से रस .' होता है और रस से सतान आदि की वृद्धि होती है। छठे प्रपाठक में १६ खंड हैं जिनमें उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से सृष्टि की उत्पत्ति ग्रादि का वर्णन करके कहा-'हे . प्रवेतकेतु ! तू ही ब्रह्म है। इस प्रपाठक में वेदांत का महा- वाक्य 'तत्त्वमसि' कई बार पाया है। सातवें प्रपाठक में, • जिसमें २६ खंड हैं, सनत्कुमारों ने नारद को प्रातुर देख उन्हें ब्रह्मविद्या का उपदेश किया है। नारदजी ने कहा है कि मैंने वेद, इतिहास, पुराण, राशिविद्या, देवविद्या, निधिविद्या, वाकोवाक्य विद्या, देवविद्या, ब्रह्मविद्या, भूतविद्या, क्षत्रविद्या, नक्षत्रविद्या, सर्पदेवजनविद्या इत्यादि बहुत सी विद्याएँ सीखी हैं। इन विद्यानों से प्राजकन्न लोग भिन्न अभिप्राय निकालते हैं। पाठवें प्रपाठक में ब्रह्मविद्या का स्पष्टता और विस्तार के साथ उपदेश देकर कहा गया है कि ब्रह्मज्ञान के पश्चात् . जन्म नहीं होता। छा--संज्ञा स्त्री० [सं० छाया, हि० छाँह] दे॰ 'छाह । - क - संज्ञा पुं० [फा० चाक] खड। टुकड़ा। जैसे,—बदली का छाँक । ---(लश०)। छाई --संज्ञा ली० [सं० छाया] परछाँही । छाया । उ०-बन्यो है - मंजुल मोर चंद्र चलत दे खत छाई।-नंद ग्रं॰, पृ० ३६५ । छांगना- क्रि० स० [सं० देश० अथवा हि. छत+करना] काटना । - छीटना। विशेष इस क्रिया का प्रयोग प्रायः कुल्हाड़ी आदि से पेड की ... डाल, टहनी प्रादि के काटने के अर्थ में होता है। पूरबी हिंदी में इसे 'छिनगाना' कहते है। . छगुर-संशा पुं० [हिं०-1-गुल ] वह मनुष्य जिसके पंजे में छह - उगलियाँ हों। छह उगलियोंवाला। छाँछ - संचा स्त्री० [हिं०] दे० 'छाछ' _ छोट'-संक्षा स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने की क्रिया । छिन्न करने ...की क्रिया । काटने या कतरने की क्रिया । यौ०-काट छाँट। २. काटने या कतरने का ढंग । ३. वेकाम टुकड़े जो किसी वस्तु .... के विशेष रूप से कटने पर निकलते हैं। कतरन । ४. भूसी छोटा . . या कना जो अनाज छाँटने पर निकलता है । ५. अलग की हुई निकम्मी वस्तु । छाँटर-संशा सी० [सं० छदि, प्रा० छड्डि ] वमन । के । कि०प्र०--करना।-होना । छांटन-संज्ञा स्त्री० [हिं० छाँटना] १. वह वस्तु जो छाँट दी जाय । . कतरन । २. अलग की हुई निकम्मी वस्तु । छोटना-कि० स० [मं० खण्डन] १. किसी पदार्थ से उसके किसी अंश को काटकर अलंग करना । जैसे, कलम छांटना, पेड़ ' छाँटना, सिर के बाल छांटना । उ०-जे छाँटत, अरिमुड समर मह पंठि सिंह सम --प्रेमघन०, भा० १, पृ०५५ । संयो० कि०-डालना ।—देना । विशेष—इस शब्द का प्रयोग अंग और अंगी दोनों के लिये होता है । जैसे,—डाल छांटना, पेड़ छांटना। २. किसी वस्तु को किसी विशेष आकार में लाने के लिये काटना या कतरना । जैसे, कपड़ा छोटना।-( दरजी)। संयो॰ क्रि०—देना ।-लेना। . ३. अनाज में से कन या भूसी कूट फटकारकर अलग करना । अनाज को साफ करने के लिये कूटना फटकना । जैसे,- चावल छाँटना, तिल छोटना। संयोकि०-डालना ।-देना । ४. बहुत सी वस्तुपों में से कुछ को प्रयोजनीय या निकम्मी समझकर अलग करना । लेने के लिये चुनना या निकालने के लिये पृथक् करना । संयो॰ क्रि०-देना ।--लेना। विशेष--चुनने के अर्थ में संयो० कि० लेना' का प्रयोग होता है और निकालने के अर्थ में सयो० क्रि० 'देना' का प्रयोग होता है। जैसे (क) हम अच्छे अच्छे प्राम छाँट लेंगे। (ख) हम सड़े प्राम छाँट देंगे, आदि; पर जहां दूसरे के द्वारा छाँटने का काम कराना होना है, वहीं संयो० कि० 'देना' का प्रयोग चुनने या ग्रहण करने के अर्थ में भी होता है। जैसे, मेरे लिये अच्छे अच्छे प्राम छाँट दो। ५. गंदी या बुरी वस्तु निकालना । दूर करना । हटाना । जैसे- (क) यह दवा खूब कफ छोटती है। (ख) यह साबुन खूब मैल छाँटता है। ६. गंदी या निकम्मी वस्तुओं को निकालकर शुद्ध करना । साफ करना । जैसे,-कूया छाँटना । उस दवा ने खूब पेट छाँटा । ७. किसी वस्तु का कुछ अंश निकालकर उसे छोटा या संक्षिप्त करना 10. गढ़ गढ़कर बातें करना । हिंदी की चिदी निकालना । जैसे,--कानून छांटना, बातें .: छीटना। . ... विशेष- इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग अकेले नहीं होता, कुछ - शब्दों के साथ ही होता है। ६. अलग रखना । दूर रखना । संमिलित न करना । जैसे,- तुम समय पर हमें इसी तरह छाँट दियां करते हो। छटा'-संज्ञा पुं॰ [हि ] दे० 'छींटा'। उ०-दादू सबही मृतका