पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४५

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छलेमलाना छल्ली या प्रेम को जब तिय करत उदोत । तब वाके छलबल निरखि, . ... विधि हूँ कायर होत । व्रज ग्रं०, पृ० १०५। छलमलाना-क्रि० प्र० [हिं०] दे० 'छलकना' उ०-वंसी धुनि - घनघोर रूप जल छलमल । -घनानंद. पृ० १७६ । - छलविद्या-संज्ञा स्त्री० [सं० छल+विद्या] मायाजाल। जादू । उ०- . . कोउ कहैं अहो दरस देत पुनि लेत दुराई । यह छलविद्या कहो, कौन पिय तुमहिं सिखाई ।-नंद० ग्रं०, पृ० १७६ । छलहाई -वि० श्री. [सं० छल+हा (प्रत्य॰)] छली। कपटी। चालबाज । धूर्त । उ०—ये छलहाई लुगाई सबै निसि द्यौस - निवाज हमें दहती हैं।-निवाज (शब्द०)। ... छलहाई-संज्ञा स्त्री० छल । कपट । छलांग-संक्षा श्री० [हिं० उछल+ग] पैरों को एकबारगी दूर तक - फेंककर वेग के साथ आगे बढ़ने का कार्य । कुदान । फलांग ।

चौकड़ी।

क्रि० प्र०-सरना । मारना । ... छलांगना-कि० अ० [हिं० छलांग] चौकड़ी भरना । कूदकर आगे बढ़ना । फलाँग मारना। छला'g+-संज्ञा पुं॰ [सं० छल्ली (लता)]छल्ला उंगली में पहनने का गहना । उ०-छला परोसिनि हाथ से छल करि लियो . पिछानि 1 पियहिं दिखायौ लखि विलखि रिससूचक . मुसकानि।-विहारी र०. दो ३७६ । छला'-मासी० [छटा] प्राभा। चमक । दीप्ति । झलक । छलाई था-संज्ञा स्त्री० [हिं० छल+आई (प्रत्य॰)] छल का भाव । कपट । उ० -पंड के पूत कपूत सपूत सुजोधन भो कलि छोटो छलाई।--तुलसी (शब्द॰) । . छलाना, छलावना-क्रि० स० [हिं० छलता का प्रे० रूप] घोखे ... में डलवाना । धोखा दिलाना। प्रतारित करना । उ०- कुमुदिनि तुइ वैरिनि नहीं धाई । मोहि मसि बोलि छलावसि ". . आई।—जायसी (शब्द०)।। छलाव--संवा पुं० [हिं० छल+प्राव (प्रत्य॰)] दे० 'छलावा' । उ०- सिर ते द्वे अघसिर कर सिर सिर चहुँ चह' पाव । ऐस सिर _ चालीस हैं मन कहिये क छलाव-सुदर० ग्रं०, भा०२, . पृ०७३०। - छलावा-संधा पुं० [हिं० छल] १. भूत प्रेत आदि की छाया जो एक वार दिखाई पड़कर फिर झट से अदृश्य हो जाती है । माया- दृश्य । उ०-छलावे की तरह भासित हुए उस रूपक की - 'छायाद श्य' (फैन्टज्मेटा) कहते हैं।-चितामणि भा०२, 'पृ० २००। . मुहा०-छलावा सा=बहुत चंचल । उ०—कर तें छटकि छटी छलकि छलावा सी। हरिश्चंद्र (शब्द०)। २. वह प्रकाश या लुक जो दलदलों के किनारे या जंगलों में रह - रहकर दिखाई पड़ता और गायब हो जाता है। अगिया वैताल । उल्कामुख प्रेत। मुहा०-छलावा खेलना-प्रगिया बैताल का इधर उधर दिखाई . पड़ना । इधर उधर लक फिरता हुमा दिखाई देना। ३, चपल । चंचल । शोख ।। ४, इंद्रजाल । जाद।। छलिक-संचा पुं० [सं०] नाटय शास्त्र में रूपक का एक भेद। छलित-वि० [सं०] जिसे धोखा दिया गया हो। छला हुप्रा । प्रतारित । बंचित । छलितक-संज्ञा पुं॰ [सं०] नाटक का एक भेद। छलिया-वि० [सं० छल+हिं० इया (प्रत्य॰)] छल करनेवाला। कपटी । धोखेबाज । उ०-(क) यह छलिया सपने मिलि मोसों। गयो पराय कहाँ सति तोसों।- रघुराज (शब्द०)। (ख) या छलिया ने बनाय के खासो पठायो है याहि न जाने कहाँ सों। -हरिश्चंद्र (शब्द०)। छलिहारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० छल+हारी (प्रत्य॰)] दे० 'छलहाई। उ०-लाख वात तक धरो करो पन साख दूर, और को सिखा के देखी फेती छलिहारी है!-शुक्ल अभि० ग्रं० (सा०) पृ०३१। छली-वि० [सं० छलिन्] छल करनेवाला । कपटी । धोखेबाज । उ०-व्याजी चंचक कुटिल सठ छपी धूर्त छली जु।- अनेकार्थ०, पृ० ४८। छलीक हु-वि० [हिं० छली] दे० 'छली'। उ०-विहरत पास पलास बास नहि मोहत कामै । निरस कठोर छपीक छलन की लाली जाम।-दीन ग्रं॰, पृ०२०५। छलौरी-संशा औ० [हिं० छाला] एक रोग जिसमें उगलियों के नाखून के भीतर छाला पड़ जाता है। विशेष-लोगों में यह प्रवाद है कि यह रोग उस मिट्टी के लगने से होता है जिसपर सांप का मद गिरा रहता है । इस रोग में उगलियों में पीड़ा होने लगती है और कभी कभी नाखून पक भी जाता है। छलाही-वि० [हि० छल+ोही (प्रत्य॰)] छलनेवाली । 30- कोऊ छली छलौंही मूरति छलछाया सी गयो दिखाइ।बज. ग्रं॰, पृ० १६२ । छल्ला --संक पुं० [सं० छल्ली(=लता)] १. वह सादी अंगूठी जो धातु के तार के टुकड़े को मोड़कर बनाई जाती है और हाथ पर की उगलियों में पहनी जाती है। मुंदरी । उ०-अंगूठी लाल की करती कयामत साज गर होती। जिन्हें की प्रान पहुंची लड़ मुए वह एक छल्ले पर।-कविता को०, भा०४, पृ० २६। २. अंगूठी की तरह की कोई मंडलाकर वस्तु । कड़ा। कु'उली । ३.नेचे की बंदिश में वे गोल चिह्न जो रेशम या तार लपेटकर बनाए जाते हैं । ४.वह पक्की पतली दीवार जो ऊपर से दिखाने या रक्षा के लिये कच्ची दीवार से लगाकर बनाई गई हो। ५. तेल की बूदें जो नीबू आदि की अर्क की बोतल मे ऊपर से इसलिये डाल दी जाती है जिससे अर्क बिगड़ने न पावे । ६. एक प्रकार का पजाबी गीत या तुकबंदी जिसे गा गाकर हिजड़े भीख मांगते हैं। छल्लि-सक्षा श्री० [सं०] दे० 'छल्ली'। छल्ली'—संघा स्त्री० [हिं० छल्ला] कच्ची दीवार की रक्षा के लिये उससे लगाकर उठाई हुई पक्की दीवार । छल्लो '-संक्षा श्री० [सं०] १. छाल । २. लता। ३. संतति । ४.एक प्रकार का फूल ।