पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१७

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बीताला चौदहाई १५९६ ... ही वा रंगीले के रंगी रंगी ये चबाइन चौत्रंद कीबो कर। चौडोल' मा पुं० [हिं० चौ--डोल ? ] एक प्रकार का बाजा - संत० (शब्द०)। जिसे चौघड़ा भी कहते हैं । ३०--प्रासपास बाजत घोडोला। . क्रि० प्र०--करना।-होना। हुंदुभि झांक तूरडफ ढोला ।--जायसी (शब्द०)। महा-चौचद पारना चबाव करना । बदनामी करना। चौतग्गी-वि० [हिं० चौ+ तागा ] वह डोरा जिसमें चार तागे २ शोर । उ०-चित चोपन चाह के चीचंद मैं हराय हिराय लगे हों। के हारि परों।-धनानंद० पृ० २६।। चौतनियाँ-जम [हिं० चौ (=चार)+तनी (=बंद)].१. चंदहाई-वि० मी [हिं० चौचंद+हाई (प्रत्य०) ] चबाब चौतनी । -भाल तिलक मसि विदु विराजत सोहति सीस ..'करनेवाी । बदनामी फैलानेवालो। दूसरों की दुराई करने लाल चौतनियां 1--तुलसी (शब्द०)। २. अंगिया । चोली। बाली | 3-चौचंदहाई जर अज की जै परायो बनो सब चौबंदी । ३०--नारंगी नीबू उरोजनि जानि दए नख बानर . भांति बिगा।-ठाकुर (शब्द॰) । चौतनियाँ में 1 --सेवक श्याम (शब्द०)। ...त्रीज-संज्ञा पुं० [चोल] दे॰ 'चोज'। चीतनिया@i-संसा को [ हिं० चौतनो+इया (प्रत्य॰) ] दे० बोजाम-संज्ञा पुं० [हिं० चौ+जाम (प्रहर)] चार प्रहर । 'चौतनियाँ' । उ०-(क) करत सिंगार चार भैया मिलि चीजामा@-- वि० [हिं० चौजामा--प्रा (प्रत्य) ] चार प्रहर की। शोभा बरनि न जाइ । चित्र विचित्र सुभग चौतनिया इंद्रधनुष ... चार पहर की। --मुसाफिर चेत करो निति बीत गई छबि छाइ 1-सूर (शब्द॰) । चीजामा । भारतेंदु ग्रं०, भाग २, पृ० ८४६ । चौतनो-संज्ञा स्त्री० [हिं० चौ (चार)+तनी (=बंद)] बन्नों .: चौजुगी, संवा ली [सं० चतुयुगी. हि चौ+ सं० युग ] चार युगों की टोपी जिसमें चार यंद लगे रहते हैं। उ०--(क) पीत का काल। . ... चौतनी सिरन सुहाई । तुलसी (शब्द०); (ख) रुचिर चौतनी चठी--संज्ञा स्त्री [ चतुर्थी हि, यो ] लवनी का चौथा अंश । सुभग सिर मेचक कुनित कैन । नव सिख सुदर बंधु दोउ ताड़ी चुपाने के बर्तन का चौथा भाग। . , शोभा सकल सुदेस । --मानस, ११२१६ । चौजुत्त -वि० [चौ+सं० युक्त, प्रा० जबत] चतुर्दिक : चारो चौतरका--संज्ञा पुं० [हि। चौ+तढक (=लफड़ी, परन)] एक

और 1.

प्रकार का खेमा या तंबू ।। चौड़'-संवा पुं० [सं० नोड] चूड़ाकरण संस्कार । चौतरफ-क्रि० वि०, वि० [हिं० चौ+तरफ ] चारों ओर । चीड-वि० [हिं० चौपट] चौपट । सत्यानाशा सभी और। क्रि० प्र०—करना ।—होना । चौतरफा---प्रन्य० {हि० चौ + तरफ] चारो ओर । चारों तरफ । चौड़कम-संज्ञा पुं० [सं० चाडकर्मन] ३०' चौड़। चौतरा-संज्ञा पुं० [सं० चत्वरक] दे॰ 'चबूतरा'। चीड़ना-क्रि० स० [हिं० चीड चौपट करना । सत्यानाश करना। चौतग'-संज्ञा पुं० [हिं० चौ+तार] एकतारे की तरह का एक

चौड़ा-वित हि०चौ (=चार) +पाट(= चौड़ाई) या मचिविष्ट - प्रकार का बाजा जिसमें बजाने के लिये चार तारं होते हैं।

=चिपटा] वि०सीचौड़ी] लंबाई की और के दोनों किनारों चौतरा - वि० चार तारोंवाला। जिसमें चार तार हों। ... के बीच विस्तृत । लंबाई से भिन्न दिशा की ओर फैला हमा। चौरिया-संथा सी० [हिं० चौतरा छोटा चबूतरा। चकला। चौतरिया --वि० [ हि० चौ+तार+इया (प्रत्य०) ] चार यौ०--चौड़ा चकता। तारोंवाला। 1चोड़ा-संवा पुं० [सं० चुटा ( = कूएं के पास का गड्ढा)] १ कूए चौतहाई वि० [हिं० चौ तहा ] चार तहाँवाला। के पास का वह गड्ढा, जिसमें मोट प्रादि से निकाला हुआ चौतही--संघा स्रो० [हिं० चौ तह ] रोस की बनावट (सहरिए. - ... पानी गिरता है। चौड़ा। २. गड्ढा । वह गड्ढा जिसमें दार) का एक कपड़ा जो इतना लंबा होता है कि चार ...अनाज रखते हैं। ... तह करके विछाने पर भी एक मनुष्य के लेटने भर को घोड़ाई--संघा सी० हिं० चौडाई (प्रत्य०) लंबाई से भिन्न दिना की ओर का विस्तार । लंबई के दोनों किनारों के बीच चौतार संशा पुं० [सं० चतुष्पद] चौपाया। चतप्पट

का फैलाव।

चौताल-संश पुं॰ [हिं० चौ+साल] १. मृदंग का एका ताल । चौड़ान--संज्ञा स्त्रीचीडा-पान (प्रत्य॰) चौड़ाई। '. . विशेप--इसमें छह दीर्घ अथवा १२ लघु मात्राए' होती हैं और चौड़ाना- क्रि० सहि चौडा से नामिक धातु ] चौड़ा करना। नामिक धातु चौड़ा करना चार प्राधात और दो गाली होने हैं। इसका योत यह है- धा.धा धिनता कत्ता दिदता टेकता गदिधिन। .... पाहावा--संश०.हिं चोटामावस्या है, चौडान' २. एक प्रकार का गीत जो होली में गाया जाता चौड़ा--वि० सी० [हिं० चौड़ा का नौ ] दे० 'चौड़ा। चौताला वि० [हिं० चौ.-ताल चार तालोदाला। जिसमें चार चाडोल --संथा पुं० [हिं०] दे॰ 'चंडोल'। ताल हों।. . minor-indimammine- Primpinger