पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५१

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खदंगी ११२७ खनखनाता खदंगी-संज्ञा स्त्री० [फा० खदंग] वाण । तीर । उ०-लाखन खदुहा -संशा पुं० हिं० सदुका] छोटी जाति का या छोटा व्यापार भीर बहादुर जगी । जैबुक कमानें तीर खदंगी। —जायसी करनेवाला मनप्य । (शब्द०)। . .. खदरवासिनी-संक्षा सौ. [सं०] बुद्ध की एक शक्ति का नाम । .. खद-संज्ञा पुं० [सं० क्षुद्र या निषिद्ध] मुसलमान ।--(डि.)। खदेड़ना--कि० स० [हिं०] ३० 'देरना। .. ..... विशेप--'लुट' शब्द का यह प्रयोग मिलता नहीं हो, रवद, खदेरना-क्रि० स० [हिं० खेदना ] दूर करना । हटाना भगाना । रवद्द और रौंद आदि शब्द इस अर्थ में मिलते हैं । संभव है, उ०-भाजत हम सब तरत आदेरत पावत माली।-प्रेमधन, भा० १,१०३६। लिपि के कारण 'रवद' का 'खद' हो गया हो। खद्दर-संज्ञा पुं० (देश०] हाय का काता भौर हाथ करघे पर बीना खदखदाना-क्रि० घ० [अनु॰] दे० 'खदवदाना'। हुआ वस्त्र । ख दी। खदबद-संवा स्त्री० [नु.] खदखद या खदबद शब्द जो प्रायः किसी खद्योत--संधा[सं० ०. जुगन् । २. सूर्य । तरल पर गाढ़े पदार्थ को खौलाने से उत्पन्न होता है। खद्योतक-- संज्ञा पुं० [सं०] १. सर्व । १. एक प्रकार का वृक्ष जिसका खदवदाना-क्रि० अ० [अनु०] छदग्द शब्द करना, जो प्रायः किसी फल बहुत विषला होता है । चीज के उबालने से उत्पन्न होता है। खद्योतन--संशा पुं० [सं० सूर्य को०] । खदरा-संथा पुं० [देश॰] घास का एक भेद । खदी। उ०-समधिन खधूप--संज्ञा पुं० [सं०] १.एक प्रकार का प्रग्निवाण । २. एक पकार के टुरवा खदर लुये प्राइस, प्रोला गडग खदर बन के खौझा। का गंधद्रव्य [को०गा लानि देवे ते भइया वसुला वो विधना, हेरि देवे भोकर तन खन@--संशा पुं० [सं० क्षरण, प्रा० रान] १. क्षण । महमा । २. के खगेझा ।-शुक्ल अभि० ०, पृ० १४२।। समय । वक्त । ३. तुरंत । तत्काल । उ०-चेरी धाय सुनत खदरा--संज्ञा पुं० [हिं० खता या संगर्तक +हिं० रा (स्त्रा० प्रत्य॰)] बन घाई। हीरामन ले पाय बोलाई।-जायसी (शब्द०)।... १.गडढा। २.बिना मेकाला हुया छोटा बैल । बछड़ा। खन-संज्ञा पुं० [सं० खण्ड (मकान का) खंड । मरातिब । खदरा - वि० [सं० क्षन्द्र ] निकम्मा। रद दी । वेकाम । जैसे, सादरा तल्ला । मंजिन्न । जैसे,--चार खन का मकान । उचार माल । खान की अटारी के ।-लक्ष्मण (शब्द०) (ख) सत्त सानै खदशा-- संचा पुं० [अ० खशह] १. भय । डर । आशंका। २. प्रावास -पृ० रा०, ११४४ । २. हिस्सा विमाग ।। संदेह. शक (को०)। खन-संशा पुं० [देश०१. एक प्रकार का वृक्ष जो 'गोर' की । खदान--संशा श्री हि० खोवना या खान ] वह गड्ढा जिसे खोदकर तरह का होता है। २. एक प्रकार का कपड़ा जिससे महाराष्ट्र उसके अंदर से कोई पदार्थ निकाला जाय । खान । में स्त्रियां चोली बनाती हैं । खदिका---संज्ञा पुं० [सं०] भुना हुआ अन्न । लावा (को॰] । खन - संज्ञा म्ही० [अनु॰] रुपये, से, चूड़ियों आदि के बजने की खदिर--संज्ञा पुं० [सं०] १. खैर का पेढ़। २. खर । कत्था । ३. पावाज खनक । चंद्रमा । ४. इंद्र ५.एक ऋषि का नाम । खनक'-संवा पुं० [मं०] १. चूहा । मूसा । २. सेंध लगानेवाना चोर । खदिरचंच--संधा पुं० [सं० ख दरचन्च] वंजुल नाम का एक सेंघिया चोर ३. जमीन या खान खोदनेवाला प्रादमी । ४. पक्षी --वृहत०, पृ० ४१०। वह स्थान जहां सोना आदि जहन्न होता हो 2. भूतत्व- खदिरपत्रिका--संवा सी० [सं०] दे० 'सादिरपत्री' [को०] । शास्त्र जाननेवाला व्यक्ति । खदिरपत्री-संघा स्त्री० [सं०] लाजवंती या लजाधुर नाम की ला। खनकर-संज्ञा स्त्री० [खन से अनु० जानकाने की क्रिया या भाव । खदिरसार-मंझा पुं० [सं०] खैर । कत्या [को०] । सानसानाहट । खदिरी-संचा स्त्री० [सं०] १.वराहांता । २. लाजवंती । लजाधुर। खनक–वि० जमीन खोदने या माननेवाला । 30-हे जनक, किए जा .खदी-संवा • [देश॰] एक प्रकार की घास जो तालों में उत्पन्न कूप खनन. तू यहाँ बीच में ही न हार। दैनिकी पृ०३० । - होती है। खनकना-क्रि० प्र० [अनु॰] 'खान' 'मन' शब्द होना । वानवानाना। खदीजा-संशा स्री० [अ० खदीजह] हजरत मुहम्मद की पहनी उ०- झांझरियां झनकेंगी सारी, सानकेंगी-चुरी तन को तन पत्नी [को०] । तोरे ।-भिखारी० ग्रं, भा० प. पु. १२१। . खंदीव--संज्ञा पुं० [तु, फा०' खदी] १. मिन के बादशाह की खनकाना--क्रि० स० [अनु॰] 'खन' शब्द उत्पन्न करना। उपाधि । २. सामंत या मांडलीक राजा (को०)। खनकार—मंचा बी० [अनु०] झनकार । खनक । उ०-खनकार भरी खदुका-संघा पुं० [म० खाद= प्रघमण] १. महाजन से कर्ज ___कापती हुई तान हृदय खुरचने लगी।-याधी, पृ०६१।। लेकर व्यापार करनेवाला यादमी। २. ऋणी। कर्जदार। खनखजूरा:-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'कनखजूरा'। उ.--दो खेतवानों में सिवान का झगड़ा साड़ा करके उन्हें खनखना--संज्ञा पुं॰ [अनु॰] १. वह जिससे 'खन' 'खन' शब्द. उत्पन्न मुकदमें में बझा देना और उनमें से एक को सादुका बनाकर हो । २. एक प्रकार का झनझुना। लील जाना -रति०, पृ० १६. . . . . खनखनाना'-कि० अ० [अनु०] खनखन' शब्द होना । खनकना। ..