पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५०१

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.... चैत्तिक . -चेहलुम चेहलुम संज्ञा पुं० [फा०] १. वह सम को मुहालमानों में मुहर्रम के भी बंगाल में इनके चलाए हुए संप्रदाय के बहत से लोग हैं चालीसवें दिन होती है। २. मृत्यु का चालीसवाँ दिन (को०)। जो इन्हें श्रीकृष्णचंद्र का पूर्ण अवतार मानते हैं । ४८ .:: ३.उक्त दिन होनेवाला उत्सव । वर्ष की अवस्था में इनका शरीरांत हो गया था। इनके - हाने-क्रि० अ० [हिं० चिहाना] दे० 'चिहाना' । चैतन्य महाप्रभु और निमाई आदि और भी कई नाम है। चंवर संशा पुं० अं०] दे० 'वर' । यो०-चैतन्यचरितामृत=कृष्णादास कविराण लिखित गैतन्यदेव "चैसलर-संज्ञा पुं० [पं. चांसलर] दे सेलर । का जीवनचरित । तयवाहिनी नाडी- इंद्रियज ज्ञान को सेलर-संच पुं० [अ चांसलर)१ जर्मनी के राष्ट्रपति का मस्तिष्क तक पहुंचानेवाली नाड़ी। चौतन्य संप्रदाय चैतन्य- "... अभिधान । ३. यूनिवर्सिटी का प्रधान । विश्वविद्यालय का देव द्वारा प्रवर्तित मत । ... मुख्य अधिकारी। चांसलर । चैतन्य'-वि०१.चेतनायुक्त । सन्त । २. होशियार | सावधान । . विशेष-यूनिवर्सिटी में चैसलर का वही काम है, जो प्रायः चैतन्यघन-संज्ञा पुं० [सं०] चैतन्य म परमात्मा । उ०—सर्वदिस . सभा समितियों में सभापति का हुअा करता है । चैसलर सब काल, पूरि रह्यो चैतन्यधन । सहा एकरस चाल, बंदन वा परब्रह्म को 1-व्रज० ५०, पृ० १०६ । के साथ एक सहायक या वाइस चेसेलर भी होता है। सलर के अधिकांश कार्य प्रायः बाइस सेलर को ही करने चैतन्यता -संज्ञा सौ० [हिं०] दे० 'चेतनता'। चैतन्यभैरवी-संक्षा श्री० [सं०] तांत्रिकों को एक भैरवी फा नाम । पड़ते हैं।' चैतन्या-संशा श्री० [सं०] अनाहत चक्र की चौथी मात्रा । Fटी . संवा श्रीहि चटी या चीटी] " "चिउंटी' 1 चैतसिक-वि० [सं०] चित्त या चेतन संबंधी । उ०-अमुक अमुक चल संज्ञा पं० [सं० चय] समूह । ढेर । उ०-उठ्यो घट त्रौंकि प्रकार के सत्वों को जो कायिक और तसिक धर्म सामान्य .... चहु पोर चितवन लग्यो चित्त चिंता जगी चैन चे चोरिगो । है उनको प्रागम 'समागत' संशा से प्रज्ञप्त करता है ।-संपूरण. .. -रघुराज (शब्द०)। . अभिः ०, पृ. ३३४ ।। चर-पुं० [अ० चेक] दे० 'चेक' । । चैता-संशा पुं० [सं० चित्रित] एक पक्षी जिसका सिर काला छाती चैकित--संज्ञा पु न एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । चितकबरी और पीठ काली होती है। चेकितान-विसं जो कितान के वंग में उत्पन्न हुपा हो। चनार-संवा पं० [हिं० चैत प्रा (पन्य०)] दे० चैती'। -". 'चकित्य-संवा पुं० [सं०] वह जो चकित ऋपि के गोत्र का हो। चैतस्वर-मंझा हि० तस्विर चैत में गाया जानेवाला चैत-मंझा पुं० [सं० चैत्र] १. वह चांद्र मान जिसकी पूर्णिमा को गीत । चैतागौन ('बहार।

- चित्रा नक्षत्र पड़े । फागुन के बाद और वैसाख मे पहले का चैती' चा स्त्री० [हिं० चैत-- (प्रत्य॰)] १. वह फसल जो

-::.... महीना । १२..चैती फसल । रबी की फसल। चैत में काटी जाय । रब्बी। । चतन्य-मंडा पुं० ] १. चितस्वरूप प्रात्मा । चेतन प्रात्मा। क्रि०प्र०-कटना !-दोना!- होना। २.जान ! २. जपा नीत जो चैत में वोया जाता है। ३. एक प्रकार का विशेप-न्याय में ज्ञान और चैतन्य को एक ही माना है। और __ चलता गाना जो चैत में गाया जाता है।

" उसे प्रात्मा का धर्मलाया है। पर सांख्य के मत से ज्ञान

चतो-वि० न संबंधी। चैत का । जैसे, चैती गुलाव । से चैतन्य भिन्न है । यद्यपि इस में रूप, रस, गंध प्रादि विशेष चैी गौरी--मंज्ञा कोः [हि नैती+गौरी] चैन में संध्या समय गुण नहीं है, तथापि संयोग, विभाग और . परिमारण गा जानेवाली एक रागिनी । वि गोडी'! आदि गुणों के कारण सांख्य में इसे अलग द्रव्य माना है और - ज्ञान को बुद्धि का धर्म बतलाया है। चैत -महा पुं० [हिं० चैत+उआ (प्रत्य॰)] रब्बी की फसल .... ३.परमेश्वर । ४.प्रकृति । ५. एक प्रसिद्ध वंगाली वैष्णव काटनेवाला। .. धर्मप्रचारक जिनका पूरा नाम श्रीकृष्ण चैतन्यचंद्र था। चैत्त'-वि० [पं०] चित्त संबंधी । चित्त का । - विशेष-इनका जन्म नवंद्वीप में १५०७ शाब्द के फागुन की चैत्तर.- संखा पुं० वौद्धों के मत से विज्ञान स्कंध के अतिरिक्त शेष पूणिमाको रात में चंद्रग्रहण के समय हा घा। इनकी माता सब स्कंध । ' या नाम शत्री और पिता का नाम जगन्नाथ मिथ था। कहते विशेप-बौद्ध लोग रूम, वेदना, विज्ञान, मंद्या और नंस्कार ये .... हैं बाल्यावस्था में ही इन्होंने अनेक प्रकार की विलक्षण = - मानने हैं। वि० दे० स्कंध' और 'संशा' । ..:: लीलाएं दिखलानी प्रारंभ कर दी थीं। पहले इनका विवाह हुअा था, पर पीछे ये संन्यासी हो गए थे। ये सदा । भगवद्भजन में मग्न' रखते थे। पहले इनके शिष्यों और दुपरांत अनुयायियों की भी संख्या बहुत बड़ गई थी। अब :