पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४७५

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चीराबंद . . १५५४ चील्ही २. गांव की सीमा पर गाड़ा हया पत्थर या मुंभा प्रादि । विशेष—पहु संसार के प्रायः सभी गरम देशों में पाई जाती है, ३. चीरकर बनाया हुया क्षत या घाव । और कई प्रकार के रंगों की होती है। बहुत तेज उड़ती है क्रि० प्र०-देना ।--मिलना।---लगाना । और त्रासमान में बहुत ऊँचाई पर प्रायः बिना पर हिलाए महा०-चीरा उतारना या तोड़ना=(किसी पुरुष का स्त्री के चक्कर लगाया करती है। यह कीड़े मकोड़े, चूहे, मछलियाँ, साथ) प्रथम समागम करना । कुमारी का कौमार्य नष्ट करना । गिरगिट और छोटे छोटे पक्षी खाती है। यह अपने शिकार यौ०--चीरावंद। . को देखकर तिरछे उतरती है और बिना व्हरे हुए झपट्टा चीरावंद'-संश पुं० [हिं० चीरा= कपड़ा+फा० बंद] धीरा बांधने मारकर उसे लेती हुई आकाग की ओर निकल जाती है। वाला । वह जो लोगों के लिये चीरे बांधकर तैयार करता है। बाजारों में मछली और मांस की दुकानों के आसपास प्रायः - चीरावंद-वि० सी० [हिं० चीरा (क्षत)+फा० बंद] जिसने पुरुष बहुत सी चीलें बैठी रहती हैं और रास्ता चलते लोगों के हाथों - के साथ समागम न किया हो। कुमारी (बाजारू)। से झपट्टा मारकर खाद्यपदार्थ ले जाती हैं । यह ऊँचे केचे चीराबंदी-संशा ली [हिं० चीरा ( = पगड़ी का कपड़ा)+फा० वृक्षों पर अपना घोंसला बनाती है और पूस माघ में तीन चार बदी ] एक प्रकार की बुनावट जो पगड़ी बनाने के लिये ताश अडे देती है। अपने बच्चों को ग्रहदूसरे पक्षियों के बच्चे लाकर . के कपड़े पर कार चोवी के साथ की जाती है। इस बुनावटकी खिलाती है। यह बहुत जोर से ची, ची करती है इसी से पगड़ी कुछ जातियों में विवाह के समय वर को पहनाई इसका नाम चिल या चील पड़ा है। हिंदू लोग अपने मकानों जाती हैं। पर इसका बैना अशुभ समझते हैं और बैठते ही इसे तुरंत . चीरि--संभ सो [सं०] १. प्रांख पर बांधी जानेवाली पट्टी। २. नड़ा देते हैं। - धोती, सौड़ी प्रादि की लांग । ३. झींगुर [को०] । पर्या--प्रातापी । शकुनि । सत्रांत । कंठमोड़क । चिलंतन । चौरिका-संघा स्त्री० [सं०] झिगुर । झिल्ली । यौ० चील झपट्टा=(१) किसी चीज को प्रौचक में झपट्टा चीरिगो-संहः मौ० [सं०] बदरीनारायण के निकट की एक प्राचीन मारकर लेने की किया। (२) लड़कों का एक सेल जिसमें . नदी का नाम । वे एक दूसरे के सिर पर, उसकी टोपी उतारकर धौल लगाते हैं। विशेष—जिसके पास वैवस्वत मनु ने तपस्या की थी। इसका नाम महाभारत में पाया है। मुहा० चील का मूत = वह चीज जिनका मिलना बहुत कठिन, प्रायः प्रसंभव हो। चरितच्छया-संक्षा ली [सं०] पालक का साग । चीलड़-संज्ञा पुं० [हिं० चीलर] दे० 'चीलर'। चौरी-संज्ञा पुं० [सं० चीरिन्] १. झींगुर । भिल्ली। २. एक । प्रकार की छोटी मछली। चीलमण@--संग पुं० [देश॰] सर्प की मणि । उ० - चाल करा गज चीलमण निजकर माहि लियंत । मोताहल मय कुंभर घोरी महा मी० [हिं० चिही या चिड़िया] चिड़िया। पक्षी। ऊपर वार यिंत ।-वाँकी ०, भा० ३, पृ०७०। उ०--सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास चौरी को भरन चीलरसंशा पुं० [देश॰] जू की तरह का सफेद रंग का एक छोटा खेल बालकनि को सो है।--तुलसी (शब्द०)। कीड़ा जो मैले कपड़ों में पड़ जाता है। चीरी-संक्षा की० [हिं० चौह या चीड़] दे० 'चीढ़' ।। विशेप-दे० 'विल्लड़। पोरी: संज्ञा मौ० [हिं० चिट या चिट्ठी ] चिट्टी। उ०-सात क्रि० प्र०-पड़ना। ..बरस पेहलो रह्यो चीरी जगह न मोकल्यो कोई।-बी० चीलवा--संशा पुं० [हिं०] दे० चिलड़ा नाम का पकवान । रासो.१०४४ । विशेष--दे० 'उलटा। चौरीवाक-संप पुं० [सं०] १. एक प्रकार का कीड़ा। मनु के चीला-संक्षा पुं० [हिं०] दे० 'चिलड़ा' या चिल्ला' । मत से नमक चरानेवाला मनुष्य दूसरे जन्म में इसी योनि में चोलिका-संवा या सं०] झिल्ली । झींगुर । जन्म लेता है। चील-मा पुं० [सं०] बाट, की तरह का एक प्रकार का पहाड़ी मेवा । चीरु- संज्ञा पुं० [सं० चीर] दे० 'चीर' । चील्लक---संशा पुं० [सं०] झिल्ली। झींगुर । चारुक-संधा पुं० [सं०] एक प्रकार का फल जिसे दैद्यक में रुचिकर, चील्ह-संभाजी [सं० चिल्ल] दे० 'चील' (पक्षी)।

. दाहजनक और कफ-पित्त-वर्धक माना है।

चील्हड़, चील्हर-संज्ञा पुं० [हिं० चीर दे० 'चीलर'। चोरुका-संझा सी० [सं०] झींगुर [को० । चोल्हारावल-मंग पुं० [हिं० चील्ह- राज] शेषनाग । उलचे चारू-संक्षा पुं० [सं० चीर | लाल रंग का चीर जो विदेश से चील्हाराव सीस हजार ढालवा लागा, दीगीस ठालवा लागा पाता है। दिसाया दुझल 1-~-रघु० २०, पृ० २०१ । चारण--वि० [सं०] फटा इमा। चीरा या चीरा हुमा । चील्ही:-- [देश॰] एक प्रकार का तंत्रोपचार जिसे बालकों परिगपरग-संपा [सं०] १.नीम का पेड़। २. खजूर का पेड़ । के पाल्यासार्थ स्त्रियो गारती हैं। उ०-मनै रघुराज मुख अलि-संघ [सं० चिल्ल ] गिद्ध और पाज आदि की जाति चूमति चरण चापि चीलही कारवाय राई लोन उतराया है। की पर उनसे कुछ दुर्बल एक प्रसिद्ध चिड़िया। ---युराज (जब्द०)।