पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५६

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चित्रघाम । चित्रकृत् २. चित्तौर (शिलालेखों में चित्तौर का यही नाम पाता है)। हैं। बिहार, उत्तर पदेश और मध्य प्रदेण ये सब कायस्थ अपने ३. हिमवत् खंड के अनुसार हिमालय के एक शृग का नाम । को चित्रगुप्त के वंशज बतलाते हैं। यमद्वितीया के दिन कायस्थ :- चित्रकृत--संज्ञा पुं० [सं०] १. विनिश का पेड़ । २. चित्र लोग चित्रगुप्त मौर कालम दावात पी पूजा करते हैं। कार (को०)। चित्रगृह-संपुं० [सं०] चित्रशाला योग चित्रकृत-- अद्भुत । विचित्र [को०] । चित्रघंटा-संज्ञा स्त्री० [चित्रघण्टा ] देवी जो नौ दुर्गाषों में चित्रकेत संधः पुं० [सं० १. वह जिसके पारा नित्रित पतागा तृतीय मानी जाती है। हो। २. भागवत के अनुसार विमरण के एक पुत्र का नाम चियचाप संशा पुं० [2] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । ३. गरुड़ के एक पत्र का नाम। ४. वशिष्ठ के एक पुगका चिनजल्प-संका पुं० [ साहित्य में पस के अंतर्गत एक वाक्यभेद। . नाम। ५ कंसा के गर्भ से उत्पन्न देवभाग यापय का एक यह भावपूर्ण और सभिप्रायभित बाक्य जो नायक और . पुष । ६. भागवत के अनुसार शूरसेन देश का एक रागा जिसे नायिका रूठकर एक-दूसरे के प्रति पढ़ते हैं। पुत्रशोक से संतप्त देख नारद ने मंत्रोपदेश दिया था। विशेप-चित्रजप के दस भेद किए गए हैयया-प्रजल्प, चित्रकोट- संज्ञा पुं० [सं० चित्रकूट ] चित्तौर। उ०-गरावत परिजल्पित, विजल्प, उज्यल्प, संबल्प, अवजल्प, अभिजल्लित, मासणांन पारामांन सा है। उदसिंघ चित्रकोट जियो सोनिया है। माजल्प, प्रतिजल्प चीर गुजाप । . .... -- रा००, पृ० १२२ । चिरजात संघा पं० [i] निमगांग। .. चित्रकोरग- पु .] १ गुटकी। २. पाली पास। चित्रण-संधा पुं० [f] चित्रमय शनि । शब्दों द्वारा ऐसा पनि चित्रकोल -संपा [सं०] छिपाली को। करना जिससे वश्यं गा मानसिक चित्र उपस्थित हो जाय । चित्रगंध-संज्ञा पुं० [ चित्रगन्य] हन्ताल । संहिलाट रूपयोजना । २०-नयरगन में तो वरतुरन की चित्रगढ़-संश घु-हिं० चित्रनगढ़ | "चित्रकोट'। राजनबर सूक्ष्मता गुन दिनों सगा वैसी ही बनी रही पर ऋतुवर्णन में रप्पिय प्रसन फनिय तन सामंत । उ०-माल मुति दिय चंद चित्रण उतना चावश्यक नही समझा गया जितना गुछ इनी कवि चल्यो चित्रगढ़ मंति 1- पृ०रा०, २४ । ४८१ । गिनी पस्तुपों का ज्थन भाग करके भावों के उद्दीपन का चित्रगत-वि० [मं.] चित्रित किी। दान--चितामरिण, भा०१, पृ०१६। .. चित्राप्त--संस० [सं०] चौदह यमराजों में से एक जो प्राणियों चिar--- सी० [सं०] विनिता । ३०-- धीर गति से वह बदलता के पाप और पुण्य का लेखा रखते हैं। जा रहा नित सेल के पट । चिता पर उस पर फी माज- विशेष-चित्रगुप्त के संबंध में पदापुराण, गरुण पुराण, भविष्यपुराण तक यता रही है।-चिता, पृ०७३। मादि पुराणों में माथाएँ मिलती हैं । स्कंदपुराण के प्रभासखंड चिवतंडल-संधा पुं० [सं चित्रतराल वायविडंग। में लिखा है कि चित्र नाम के कोई राजा थे, जो हिसाव किताव चिनताल-संश0 संगीत में एक प्रकार का चौताला तात रखने में बड़े दक्ष थे। यमराज ने चाहा कि इन्हें अपने यहाँ जिसमें दो द्रुत, एक प्लुत, और तब फिर एक द्रुत होता है । लेखा रखने के लिये ले जाय । अतः एक दिन जब राजा नदी इसका बोत यह है-इगु० दुगु०धुमि धुमि थरिया तक में स्नान गारने गए, तब यमराज ने उन्हें उठा में गाया पीर तया यों। अपना सहायक बनाया। इसपर राजा की एक बहिन अत्यंत चित्रतल संश[सं० रडी या झंडी या तेन । दुखी हुई और चित्रपथा नाम की नदी होकर चित्र को ढूंढ़ने चित्रत्वक-संश०सं० भोजपत्र । समुद्र की भोर गई। भविष्यपुराण में लिखा है कि जब ब्रह्मा तिव्रत्वच-संगापुसे० दे० 'चित्र त्वक् । सृष्टि बनाकर ध्यान में मग्न हए तव उनके शरीर से एक चित्रांडक-संहा सचिनदरारक] १. सूरन । २. कपास (का)' हाथ में लिए उत्पन्न हुना। जय चित्रदीप-संशा पुं० [सं०] पंचदशी नामक वेदांत ग्रंय के अनुसार एक ब्रह्मा का ध्यान शंग हुमा तब उस पुरुप ने हाथ जोड़कर दीप । पट के ऊपर बने हुए चित्र के समान जगत् के विविध याहा-महाराज ! गेरा नाम और काम बताइए' ! बह्मा जी रूपों का आभास जिसे मायामय और मिथ्या समझना चाहिए। • ने संतुष्ट होकर कहा---'तुग हमारे शरीर से उत्पन्न हुए हो; . चित्रदेव-संक्षा पुं० [मं० कातिकग का अननर। . इरा लिये तुम कायस्थ हुए और तुम्हारा नाम चित्रगुप्त हुमा । तुम प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा रखने के लिये यमराज के चित्रदेवी-संज्ञा श्री० [सं०] महेंदवारणी लता। २. शक्ति या देवी यहाँ रहो'। भट्ट, नागर, सेनक, गौड़, श्रीवास्तव, माथुर, का एक भेद। प्रतिष्ठान, शैकसेन और अंबष्ठ ये चित्रगुप्त के पुत्र हुए। यह । चित्रधर्मा - संया पुं० [सं० चित्रवर्मन् ] एक देता का नाम जिसका कथा पीछेमी गढ़ी हुई जान पड़ती है; ययोंकि ऊपर जो नाम . . उल्लेग गहाभारत में है। दिए हैं, वे प्राय: देशभेद सूचक हैं। गरुड पुराण के चित्रकल्प चित्रधाम - मंशा पुं० [सं०] यज्ञादि में पृथ्वी पर बनाया हा एक में तो लिखा है कि यमपुर के पास ही एक चित्रगुप्तपुर है, जहाँ चौखूटा चक्र जो चारखाने की तरह होता था और जिसके चित्रगुप्त के अधीनस्थ कायस्थ लोग बराबर काम किया करते ., खानों को भिन्न भिन्न रंगों से भरते थे। सर्वतोभद्र मंडल ।