पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५०

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चितवाहु १५२९ चिता: हार जीत का निर्णय होता है। (लोग प्रायः कौड़ी, पैसा, चितवन--संज्ञा स्त्री० [हिं० घेतना] तागाने का काम भाय या ढंग। जूता मादि फेंकते हैं)। २. नुश्ती । मल्लयुद्ध । अवलोकन 1 दृष्टि । कटाक्ष। नजर । निगाह । ३०--सलज्ज । " चिंतबाह-संवा पु० [हिं० चित+सं० याह) तलवार के ३२ हाथों में लोचनों की मनोहाटी चितवन ।--प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० से एक । ज०-पायित निर्मयार्द कुल चितबाहु निस्सृत रिपु १२५। दुखं ।- रघुराज (शब्द०)। मुहा०-चितवन चढ़ाना-त्योरी चढ़ाना भी चढ़ाना । कुपित चितभंग-संज्ञा पुं० [सं० चित्तन-भंग] १. ध्यान न लगना । उपाट । दुष्टि करना । क्रोध की दृष्टि से देखना । । उदासी । उ०-(क) मेरो गन हरि चितयन समझानो। यह चितवना@-त्रि० स० [हिं. चेतना] देखना । ताकना । निगाह रसमगन रहति निसि यासर हार जीत नहि जागो । सरदास करना । अवलोकन करना । दृष्टि टालना। 10--चितयति चितभंग होत क्यो जो जहि रूप समानो --रार (सनद०)। चकित चहू दिसि सोता ।--मानस, ११ २३२ । (ख) सरद (ख) कमल, खंजन, मीन मधुकर होत है चितभंग।-सूर . समिहि जनु चितय चकोरी 1--गानम, १।२३२। (शब्द०)। (ग) देव गान मन नंग पितभंग मद पोध संपो.कि-देना ।-लेमा। लोभादि पर्वत दुर्ग भवन गर्ता ।--तुलसी (शब्द०)। २. बुद्धि चितवनि --गंधा की० [हिं० चितवन] दै० चितवन' । उ०-- का लोप । होश का ठिकाने न रहना । मतिभ्रम । भौचक्का (क) नितयनि चारू भृगुटि बर बाँकी । तिलक रेख शोण जनु पन । चकपकाहट । चांकी। तुलसी (शब्द०)। (ख) तुलसीदास पुनि भरेइ चितरकना--संज्ञा पुं० [सं० चित्र+हिना प्रत्य०] दे० चित्रक। देखियत राम कमा चितवनि चितए -तुलसी (शब्द०)। उ०--अजमोदा चितदारना, पतरज वाभिरंग । रोंधा सोंग (ग) प्रनिगारे दीरध दानु किती न तानि समान । वह: । त्राफला नासहि मारत अग।--इंद्रा०, पृ० १५१ । । नितमि और गाळू, जिहि घस होत सुजान |---बिहारी २० चितरकारी@.-संक्षा खो. [ हि० चित्रकारी ] दे० 'चित्रकारी' दो०५८८। उ०--पलंग को छोड़ खाली गोद से उठ ग सजन मीता। चितवाना --वि० स० [हिं० चितवना का प्र० रूप] दिखाना। चितरकारी लगे खाने हमन को घर हुया रीता 1-कविता तफाना । उ०-मितवो चिनवाए हंसाए हँसो पो बोलाए से को०, भा०४, पृ० १२। बोलो रहे मति मौने ।---के गव (शब्द०)। चितरन -संद्या पुं० [सं० चित्ररण] दे० 'चित्रण' । चितविलास-संशा पुं० [हिं०] एक प्रकार का डिंगल गीत । यो०-चितरनहार=चित्रण पारनेवाला । ७०-उरण पर दुही अरटिया वालो फिर तुक प्रादि तिका अंत चितरना- क्रि० स० [सं० चित्र] चित्रित करना । चित्र बनाना । फालो । धरैतिका मोहरा तुध धारो, चितविलास सो गीत नक्काशी करना। बेल बूटे बनाना। उचारो।---रपु० रू, पृ० १०५। चितरवा--वि० पुं० [सं० चिनक] एक प्रकार की चिड़िया जिसका चितसरिया --मंशा सौ. [हिं० चित्रसारी] दे० 'चित्रसारी' । उ०- रंग ईट पा सा लाल होता है । इसके हनों पर काली चित्तियाँ , चित चितसरिया' मैं हिलो लिखाई। -धरनी०, पृ०१। पड़ी होती हैं और अन्य अनारदाने के समान सफेद और लाल चितहिलोलg+--संघ पु० [हिं०] एक प्रकार का डिंगल गीत । होती हैं। . . . ' उ०---प्रौढ़ गीतर पर तयं उन्नावो तोन । कहै मंद तिणनू चितरा- संशा पुं॰ [सं० चित्र दे० 'चीतल। .... . सुकवि, पाच नितहिलोल |--रघु रू. पृ० १६३ ।। चितराका-संसः पुं० [सं० चित्र] एक प्रकार का झुटों में रहनेवाला' चिता--संशात्री० [सं०] १. पनकर रखी हुई लकडिया प र .', जंतु, जो पेड़ों पर चढ़कर गिलहरियों यादि को खा जाता है। जिसपर रयकर मुरदा जलाया जाता है। मृतक के शवदाह चितरोख@t-संज्ञा स्त्री० [सं० चित्रक ] एक प्रकार की चिड़िया । . के लिये बिछाई हुई लगड़ियों को राशि। चितरवा । उ०-धौरी पांडक काहि पिय ठाऊ। जो चितरोखन क्रि०प्र० - बनाना ।—लगाना ।। दूसर नाक ।-जायसी (शब्द०)। पर्या--चित्या । चिति । चत्य । काष्ठमठी। चितला'-वि० [सं० चित्रल] कवरा। चितकबरा । रंगबिरंगा । यो०----चितापिंड यह पिडदान जो शवदाह के उपरांत होता चितला. संशा पुं० १. लखनऊ का एक प्रकार का खरबूजा जिसपर है । चिताभस्म=विता को राख। । चित्तियां पड़ी होती हैं। २. एक प्रकार की बड़ी मछली जो मुहा०--चिता चुनना-शवदाह के लिये लकड़ियों को नीचे पर लंबाई में तीन चार हाथ और तौल में डेढ़ दो मन, होती है। क्रम रो रखना । चिता साजना । निता तैयार करना। 1. विशेष-- इसकी पीठ बहुत उठी हुई होती.मोर उसपर पूछ के चिता पर चदमा-मरना । चिता में बंटना-सती होने के पास पर होते हैं। इसमें कटे बहत होते हैं । गले से लेकर पेट - लिये विधना का मृत पति की चिता में बैठना । मृत पति के

  • के नीचे तक ५१ काटों की पंमित होती है । इस मछली की

शरीर के साथ जलना। सती होना । चिता साजना-दे० ....... :पीठ का रंग कुछ मटमैला और तामड़ा तथा बगल मा चाँदी चिता चुनना'। की तरह राफेद होता है। यह मछली बंगाल, उड़ीसा पौर २. प्रमशान । गरपट । उ०-भीख मागि भव खाहि पिता नित सिंध में होती है। इसमें से तेल बहतं निकलता है जो खाने. .. सोवहिं । नाहि नगन पिशाच, पिसाचिन जोदहि ।-तुला .