पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४४९

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५५२८ चितपट . हुए पुरणा। विरक्ति । अप्रसन्नता । कुढ़न । खिजलाहट। ' चित'--वि० [सं०] १. चुनकर इकट्ठा किया हुमा । २. का हमा। नफरत । जैसे,-मुझे ऐसी बातों से बड़ी चिढ़ है। . मान्छादित । ३. संचित । जमा किया हुमा (को०)। महा.-चिढ़ निकालना= टूटकर ऐसी बात कहना जिससे कोई चिन--संक पुं० [सं० चित ] चित्त । मन । 30-अब चित चेति चिड़े । चिढ़ाने की युक्ति निकालना । छेड़ने का ढंग निकालना। चित्रकूटहि चलु ।---तुलसी ग्रं०, पृ०४६६ । कुढ़ाना । खिझाना । जैसे,—इस बात से यदि इतना चिढ़ोगे विशेष--३० "चित्त'। - तो लड़के चिढ़ निकाल लेगे। . मुहा०-दे. 'चिस' के मुहावरे। चिढ़कना--क्रि०अ० [हिं० चिढ़ना दे० 'चिढ़ना। चित'--संधापु० [हिं० चितवन] चितवन । दृष्टि । नजर । 10- चिड़काना क्रि० स० [हिं० चिढ़ा] दे० 'त्रिढ़ाना'। चित जानको अघ को कियो। हरि तीन हूँ अवलोकियो । चिढ़ना-क्रि० प. [ हि. चिड़चिड़ाना ] १. अप्रसन्न होना। केशव (शब्द०)। ... विरक्त होना। खिन्न होना । नाराज होना। बिगड़ना। चित-वि० [सं० चित (ढेर किया हुआ) ] इस प्रकार पड़ा हमा कृढ़ना । खोजना । झल्लाना । जैसे,—तुम थोड़ी सी बात पर मुह, पेट प्रादि शरीर का अगला भाग ऊपर की पोर हो और भी क्यों चिढ़ जाते हो।' पीठ, चूतड़ ग्रादि पीछे का भाग नीचे की ओर किसी प्राधार . संयोकि०-उठना । —जाना। से लगा हो। पीठ के बल पढ़ा हुग्रा । 'पट' या 'पौंधा' का २. द्वेष रखना । कुरा मानना । जैसे,--न जाने क्यों मुझसे वह उलटा । जैसे, चित कौड़ी। यो०-चित नी मेरी पट नी मेरी=(१) हर हालत में अपने बहुत चिढ़ता है। पाप को बढ़ा चढ़ाकर दिखाना । (२) पासे या कोही खेलने चिढ़वाना क्रि० स० [हिं० चिढ़ाना का प्र० रूप] दूसरे से चिढ़ाने में बेईमानी करना। का काम कराना। क्रि०प्र०—करना । —होना । चिढ़ाना-संवा सी० [हिं० चिढ़ना] १. चिढ़ानेवाली बात या वजह । यो०-चितपट । २. चिढ़ने का भाव या स्थिति। मुहा०-चित फरना-कुश्ती में पछाड़ना । कुस्ती में पटकना । . चिढ़ाना-किस हिचिना] १. अप्रसन्न करना । नाराज चारो खाने (या शाने) चित-(१) हाथ पैर फैलाए बिलकुल करना चिढ़ाना। खिझाना । कुढ़ाना । कुपित और खिन्न पीठ के बल पड़ा हुमा । (२) हक्का बक्का । स्तभित । ठक । - करना । जैसे,-ऐसी बात कहकर मुझे बार बार क्यों जड़ीभूत । चित होना-वेसुध होकर पड़ जाना । बेहोश होना चिढ़ाते हो? जैसे,—इतनी भांग में तो तुम चित्त हो जामोंगे। संयो॰ क्रि०-देना। चित क्रि० वि० पो के बल । जैसे,—चित गिरना, चित पढ़ना, .." २. किसी को कुढ़ाने के लिये मह बनाना, हाथ चमकाना या चित लेटना। किसी प्रकार की पौर कोई चेष्टा करना। खिझाने के लिये चितउन संभ मी० [हिं० चितवन] दे० 'चितवन'। . किसी की प्राकृति, चेष्टा या ढंग की नकल करना। चितउर-संचाए. [ हिं चित्तौर ] दे० 'चित्तौर' । १०.-देहि मुहा०-मुह चिढ़ाना=किसी को छेड़ने या खिजाने के लिये पसीस सर्व मिलि तुम्हमा निति छात । राजफरह गढ़ चित- विलक्षण प्राकृति बनाना । विराना। उर राखहु पिय महिवात ।-जायसी पं० (गुप्त), पृ० २०६। . ३. कोई ऐसा प्रसंग छेड़ना जिसे सुनकर कोई लज्जिन हो। कोई चितकबरा' वि० [सं० चित्र+कर] [सौ. चितकबरी ] सफेद ऐसी बात कहना या ऐसा काम करना जिससे किसी को अपनी रंग पर काले, लाल या पीले दागवाला । फाले पीले या पौर विफलता, अपमान प्रादि का स्मरण हो । उपहास करना । किसी रंग पर सफेद दागवाला। रंगविरंगा। फचरा । ठट्ठा करना। चितला। शवल । वि० दे० 'कबरा'। चितकबरा--संवा पु० चितकबरा रंग। चिढ़ोनी---संबायोहि चिढ़--श्रीनी (प्रत्य०)] वह बात चितकावरी-वि० [हिं० चितफवरा] ३० चितकबरा'। . जिसके कहने से कोई चिढ़ जाय । चितकूट -संज्ञा पुं० [सं० चित्रकूट] • "चित्रकूट'। चित्-संथा की सं०] १. चैतन्य । चेतना । ज्ञान । चितगरी-वि० [सं० चित+गर (प्रत्य॰)] चेतवाली। होधि- । यो०-चिदाकाश । चिदानंद । चिन्मय । पार । उ०-भई जो सचान भई चितगरी । पनि विद्या भा, चित्-t०१. चुननेवाला । बीननेवाला । इकट्ठा करनेवाला । विद्याधरी !--इंद्रा०, पृ. १७।। -संधा . [सं० चित्रगुप्त चिमाप्त। २. मरिन ! ३. रामानुजाचार्य के प्रसार तीन पदायों में से चितगुपति एक जो जीव-पद-वाच्य, भोवता. परिच्छिन्न, निर्मल-ज्ञान- चिनचार-संवा पुं० [हि. चित्त + चोर ] चित्त को चरानेवाला। स्वरूप और नित्य कहा गया है । (शेष दो पदार्थ प्रचित् पौर जी को लूमायनेवाला । मनोहर । मनभावना । मनको माफ- पित करनेवाला प्यारा । प्रिय । ईयर हैं)। . भित्-प्रत्य संस्कृत का एक प्रनिश्चयवाची प्रत्यय जो का, किम् चितपट- ० [हि चित+पट] १. एक मकार का रोल पा .. भादि सर्वनाम शब्दों में लगता है। जैसे; कश्चित्, किचित् । माजी जिसमें किसी फेंकी हुई वस्तु के चित चा पट पड़ने व