पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४४१

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मा विकारा १५२० चिताः वाला हो । जैसे,-चाहे जो हो, हम वहां अवश्य जायेंगे। सोच । फिक्र । उ०-सो करिण पधारी चिंत हमारी जानिय चिकारा- पुं० [हि. चिकारा] दे० 'चिंकारा'। भगति न पूजा । -मानस,१११८६। ।...... चितक'-वि० [सं० चिन्तक] १. चिंतन करनेवाला । ध्यान रखने- विंगट-संज्ञा पुं० [सं० चिङ्गट ] [ सी० प्रल्पा चिंगटी] एक प्रकार '. की मछली । झिगवा । झिगा। वाला । उ०-(क)जे रघुवीर चरन चिंतक तिन्हकी गति प्रकट दिखाई । अविरल अमल अनूप भगति दृढ़ तुलसिदास . विशेष—यह मछली केकड़े की जाति के अंतर्गत है । दे० 'झिंगा। तब पाई।-तुलसी ग्रं॰, पृ० २६४ । (ख) सिय पद वितक किंगड़-संज्ञा पुं० [सं० चिङ्ग] झींगा मछली को । जे जग माहीं। साधु सिद्धि पावहिं सक नाहीं।-रामाश्वमेध विाड़ा - संच पुं० [सं० चिङ्गड़ा] झींगा मछली। (शब्द०)।२. सोचनेवाला । विचार करनेवाला । ध्यान विंग--संक्षा पुं० [देश॰] १. किसी पक्षी, विशेषतः मुर्गी का छोटा करनेवाला। . बच्चा। २. किसी जानवर का बच्चा। ३. बच्चा । यौ०--शुभचिंतक । हितचिंतक-खैरख्वाह 1 ... छोटा दालक । विशेष--इस शब्द का प्रयोग समास में अधिक होता है। चिंगारी- ही [हिं० चिनगारी] ३० चिनगारी'। चितक'-संज्ञा पुं० मनन या चिंतन करनेवाला व्यक्ति । दार्शनिक । वित्रारक। चिंघाड़-संशा मौः [सं० चीत्कार अथदा अनु० ] १. चीख मारने __ चिंतन--संज्ञा पुं॰ [सं० चिन्तन ] [ वि० चितनीय, चितित, चित्य ] का शब्द । चिल्लाहट । २. किसी जंतु का घोर शब्द । ३. हाथी की बोली । चिधाड़। ध्यान । वार वार स्मरण 1 किसी बात को बार बार मन में लाने की क्रिया । उ०-त्री रघुवीर चरन चितन तजि नाहीं क्रि० प्र०-मारना। ठौर कहू - तुलसी (शब्द०)। विधाड़ना-क्रि० प्र० [सं० चीत्कार ] १. चीखना। चिल्लाना। २. विचार । विवेचन। २. हाथी का चिल्लाना । ३. गरजना । यो०---चिंतनशील = विचारक। . चिचन्न-संथा स्त्री० [सं० चिञ्चिनी] इमली का पेड़ । उ०-कहूं चिंतनाg-क्रि० सं० [सं० चिन्तम ] १. चिंतन करना । ध्यान दाडिमी चूव चिचन्न चंपी। मनो लाल मानिक्क पीरोज करना। स्मरण करना । उ०---सनक शंकर ध्यान ध्यावत थप्पी ।—पृ० रा०, २॥ ४४० । निगम अवरन वरन । शेष शारद ऋपि सुनारद संत चितत चिचा-संवा की० [सं० चिञ्चा] १. इमली। २. इमली का फल या चरन ।-सर ( शब्द०)। २. सोचना । समझना । गौर: बीज । विप्रा । ३. गुंजा (को०)। करना । विचारना । चिंचाटक-संज्ञा पुं० [सं० चिञ्चाटक चेंच साग । चिंतना-संक्षा बी० [सं० चिन्तना] १. ध्यान । स्मरण । भावना। चिचाम्ल-संवा पुं० [सं० चिञ्चाम्ल] १. चूका या चूकनाम का साग। २. चिता । सोच । ३. गंभीर विचार | मनन। चितन (को०)। २. एक प्रकार का फेनक जो इमली से बनता था (को०)। । चितनीय-वि० [सं० चिन्तनीय ] १. चिंतन करने योग्य । ध्यान करने योग्य । भावनीय । २. चिता करने योग्य । जिसकी चिचिनो-संशा नौ [सं० चिञ्चिनी, या सं० तिन्तिली] १. इमली फिक्र उचित हो। ३. विचार करने योग्य । सोचने समझने. का पेड़ । २. इमली का फल । उ-तेरी महिमा तें चल योग्य । विचारणीय। चिचिनी-चियाँ रे। तुलसी ग्रं॰, पृ०४७१ । चितवन-संश पुं० [सं० चिन्तन] दे० 'चिंतन'। चिची-संक्षा श्री० [सं० चिच्ची] गुजा । घुघवी। चिar-संक्षा ली [सं० चिन्ता] १. ध्यान । भावना । २. वह भावना चिचोटक-संज्ञा पुं० [सं० चिञ्चोटक] चेंच साग । जो किसी प्राप्त दुःख या दुःख की आशंका आदि से हो। चिजाल-मंज्ञा पुं० [सं० चिरञ्जीवी ] [खी चिजी ] लड़का । सोच । फिक्र । खटका । उ०—चिता ज्वाल शरीरं वन, पुत्र । वेटा। 30-गिरत बम को है गरभ चिजी चिजा दावा लगि लगि जाय । प्रगट धुवाँ नहिं देखिए, तर अंतर इर।-भूपण (शब्द०)। घुघुप्राय।-गिरघर (शब्द०)। विजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चिजा लड़की । कन्या। क्रि० प्र०-करना होना। महा-चिता लगना=चिंता का बराबर बना रहना । जैसे- बिह-संज्ञा पुं० [सं० चिण्डी] नृत्य का एक भेद । नाच का एक मुझे दिन रात इसी की चिता लगी रहती है। कुछ चिंता . भेद । नाच का एक दंग । उ०-उलथा ती पालम सदिड । - पद पलटि हरमयो निशंक चिड। केशव (शब्द०)।' • नहीं-कुछ परवाह नहीं । कोई खटके की बात नहीं। विशेष-साहित्य में चिता करुण रस का व्यभिचारी भाव माना चिगृला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० चिगुला) ३. चिगुला' । जाता है, अत: वियोग की दस दशामों में से. त्रिता दूसरी चावका-संवा श्री० [सं० चिञ्चिका] गुजा । घुपत्री (को०] । दशा मानी गई है। चिचिड़-मंचा पुं० [सं० चिञ्चिड] परवल (को०] । ३. मनन । चितन । गंभीर विचार। . चित--संभ स्त्री० [सं० चित्ता] चितना। चिता । ज्यान । याद । यो०-चिंताधारा-विचार की दिशा । . ..