पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४२५

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पढ़िी चाटर संज्ञा पुं० [सं०] १. विश्वासघाती कोर । वह जो किसी का चाटुक-संज्ञा पुं॰ [सं०] मीठी बात [को०)। " .... विश्वासपात्र बनकर उसका धन हरण करे । ठग । चाटुकार-संभा पुं० [सं०] १. खुशामद करनेवाला। झूठी प्रशंसा विशेष-स्मृतियों में ऐसे व्यक्ति का दंडविधान है। करने वाला । चापलस । खुशामदी । २. वृहत्संहिता के अनुसार २. उचक्का। चौई। ७०-चाट, उचाट सी चेटक सी चुटकी सोने के तार में पिरोए मोतियों की वह माला जिसके बीच ....... ध्र कुटीन जम्हाति अमेठी ।-देव (शब्द०)। में एक तरलक मणि हो। चाटक -वि० [हिं० चटक दे० 'चटक' । उ०-लोकवार चाटक चाटकारी-मा मी० [सं० चाटुकार+हिं० ई (प्रत्य॰)] झूठी ." "दिन चारी।-चरनी०, पृ०४८. . . प्रशंसा या खुशामद करने का काम । चापलूसी। चाट की टॅगड़ी-संहाली [देश॰] कुश्ती का एक पंच जो उस समय चाटता-संथा श्री० [सं० चाट् +ता (प्रत्य॰)] दे० 'चाटुकारी। . काम में लाया जाता है जब प्रतिपक्षी (जोड़) पहलवान के चाट्पट --संभा० [सं०] भंड । भोड़। - पेट के नीचे घुस पाता है और अपना बायाँ हाथ उसकी कमर चाटवट, चाटवट---शा पुं० [सं०] विदूषक । जोकर भांड किो०] । चाटुलोन-वि० [सं०] १ चाटुकार । कुगल चाटुकार । २. खूब. विशेष-इसमें पहलवान अपने बाएं हाय से प्रतिपक्षी का सूरती से हिलनेवाला [को० । बायाँ हाथ (जो पहलवान की कमर पर होता है) दवाते हुए चाटूक्ति-संशा सी० [सं०] चाटुकारिता। चापलूसी । उ० -पा उसकी दाहिनी कालाई को पकड़ता है और अपना दाहिना - क्रूरता ही पुरुपार्थ का परिचय है ? ऐसी चाटूक्तियाँ भावी हाथ और पैर बढ़ाकर वाई जाँघ और पिंडली पर धक्का भासक को अच्छा नहीं बनातीं 1-मजात०, पृ० २४ । .." मारकर उसे गिराता है। चाटूल्लोल-वि० [सं०] दे॰ 'चाटलोल' [को०] । चाटना-क्रि० स० [अनु० चट चट (=जीम चलने का प्रध्द)] १. चाठ-पंचा पुं० [देश खाद्य वस्तु । वि०'चाट'| 30 -परनिंदा ... खाने या स्वाद लेने के लिये किसी वस्तु को जीभ से उठाना । पापहर चाट विपरी चाट । क्यों नह तुम प्राणी कर पंच किसी पतली या गाढ़ी चीज को जीभ से पोंछकर मुंह में रतन रोपा०।-यांकी ग्रं०, भाग, पृ०१५॥ लेना । जीभ लगाकर खाना । जैसे,—शहद चाटना; अवलेह चाटना ।. चाठा- संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'चाटा' 1 3०--ल्योकी लेज पवन संयो० कि०- जाना।-लेना ।-डालना। का ढींक मन मटका ज बनाया। सत की पाटि सुरति का २. पोंछकर खा लेना। चट कर जाना । जैसे,—इतना हलुमा चाठा सहजि नीर मुकलाया। कबीर ग्रं॰, पृ० १६१।। था, सब चाट गए। चाड़'--संशा सौ० [हिं० चाँड़ सं० चण्ड (=प्रबल) ] गहरी - मुहा०-चार पोंटकर खाना=सब खा जाना। कुछ भी न चाह । चाव। प्रेम। वि० दे० 'वाड़'। उ०-क) हिन . छोड़ना। . पुनीत सब स्वारयहि परि अशुद्ध विन चाड़। निज मुख ३. (प्यार प्रादि से) किसी वस्तु पर जम फेरना । जैसे - मानिकसम दमन भूमि परे ते हाड़-तुलसी (शब्द०) । (ख) - गाय अपने बछड़े को चाट रही है। कुच गिरि चढ़ि प्रति हघजी दीठि मुख चाड़ । फिरि न यो०-चूमना चाटना प्यार करना। टरी परिय रही परी चिवुक के गाड़। - बिहारी (शब्द०)। ४. कीड़ों का किसी वस्तु को खा जाना । जैसे, जितना कागज (ग) काहे को काहु को दीजै उराहनो प्राव इहां हम प्रापनी था, सब दीमक चाट गए। ५. धन संपत्ति बेच डालना । ६. च.. ।-(शन्द०)। ... खुशामद करना। . : . . कि० प्र०-लगना । पाटपुट संघा पुं० [सं०] तवले का एक ताल । दे० 'चाचपुट' चाड़ --वि० [सं० चाट, प्रा० चाड] चुगलखोर । उ०-साह पाटान-संवा सी० [हिं० चाटना ] चाटने का कार्य । उ०- दुकानां चोरटा, साहव कानां चाड़ । लागे वित मत हर .... चुपनि पावनि, चाटनि चमनि । नहि कहि परति प्रेम की लिए, बे शोमा का फाड़1-बाँकी००, भा०२, पृ०५०। .. घरनि ।-नंद० ग्रं॰, पृ० २६६ । चाडिला-वि० [हिं० चांडिला] दे॰ 'चाँडिला' । या पु० [देश०] [स्त्री० अल्पा० चाटी वह बरतन जिसमें चाड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० चाट] पीठ पीछे की निंदा । चगली। . कोल्हू का पेरा हुमा रस इकट्टा होता है। नांद। क्रि०प्र-खाना। को [देश] मिट्टी की मटकी जिसका दल खुच मोटा हो। चाडू --वि० [सं० चराह, हिं० चांड़ (तेज)J तेज प्रखर । पाद-संवा पुं० [सं०] १. मीठी बात। प्रिय बात । उ०-धनवानंद अधिक ! 30-मान न कर थोस कर लाडू मान करत जीवन प्रान सुजान तिहारिये बातनि जीजिए जू । नित नीके रिस मान चाडू |--जायसी ग्र०, (गुप्त) पृ० ३२६ 1 रहो तुम चाट कहाय असीस हमारियो लीजिये जू।- जा- नगढ़ -शा स्त्री० [हिं० चाह] १. इच्छा । २. प्रेम। ममता। - रसखान०, पृ०५६ । २. झठी प्रशंसा या विनय से भरी हई चाढ़ा---संद्धा ली० [हिं० चढ़ना] चढ़ाई। एसा बात जो केवल दूसरे को प्रसन्न या अनुकन करने के लिये चाढ़ा -संवा ० [हिं० चाढ़] [स्त्री० चाढ़ी] १. प्रेमपाय । .कही जाय । खुशामद ! चापलूसी । प्यारा । प्रिय । उ० -वन्य धन्य भक्तन के चाढ़े।-सुर