पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१४

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चलार्थ ४ शव की श्मशानयात्रा । मुर्दे को श्मशान ले जाना। उ०-- चवको -संशा स्त्री० [हिं० चौफी ] देसौकी'। बड़े ठाटबाट धूमधाम से चलावा हुमा। --सुदर० प्र०, चवळी-शानी [सं० चतुप्पष्टि] चौंसठ । यहाँ योगिनियों से भा०१, पृ० १४२ ॥ तात्पर्य है जिनकी संख्या चौंसठ कही जाती है। उ०-ववट्ठी चलार्थ-वि० [सं०] प्रचलनवाला । हमेशा चलनेवाला । चिकार फिकारं फिकीर । गमं गिद्ध ग? पलं पूचि चहई।- यो०-१. चलार्थपत्र = चलपत्र । २. चलार्य मुद्रा यह मुद्रा पृ०रा०, ७. १२४ । जिसका व्यवहार निरंतर होता है। चवड़ी-कि. नि० [देश॰] प्रगट में। उ०-भि सचेत वडाला चलासन--संशा पुं० [सं०] बौद्धों के मत से एक प्रकार का दीप जो भारथ, चव खेत कर चित चोज ।-रधु०००, पृ०१२। .. सामयिक व्रत में प्रासन बदलने के कारण होता है। चवदा--वि० संपा ० [हिं० चौदह] चौदह । उ०-कल चवद ' चलि-संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रावरण । २ अँगरखा । चवदै तशी दुय तुरु मिलें मोहरा तामही । फल मितिय . चलित' वि० [सं०] १. अस्थिर । चलायमान । २. चलता हुप्रा । पोटस बले दसकल पतुरथी तुक में चही। -रघु० २०, यौ०-धलितग्रह । चलिकचित्त । चलित-संहा पुं० नृत्य में एक प्रकार की चेष्टा जिसमें ठोड़ी की में ठोड़ा यो चवदसु जा -संज्ञा पुं० [सं० चतुर्दश] .. 'चतुर्दश' । ३०-कोइक गति से क्रोध या क्षोभ प्रकट होता है। दिन गुर राग पं पढी तु विद्या अप्प ! चयदसु विद्या चतुरवर चलितग्रह-संक्षा पुं० [सं०] ज्योतिष शास्त्र में यह ग्रह जिसके फल का लई सीन पट निप्पा-१०रा०.१७२९ । कुछ अंश भोगा जा चुका हो और कुछ भीगने को बाकी रह जवटा--विort चौहदा 'चौदह'। 30---चबदा हा सत्र गया हो। लोक नौछापरि ग पर फरी। फाग अनोखी नोक पोरन चलित्र @ संशा पुं० [सं० चरित्र] दे० 'चरित' या 'चरित्र' । परके समधरी। ---ज० प्र०, पृ०३२।। उ०-मागे चले चलित्र अनंता । पंचि गुणा या किया सयंता। चवन्ती-संक्षा स्त्रीहि० चौ (चार) याना+ई (प्रत्य॰)] -प्राण०. पृ० ४२ चार पाने मूल्य का चांदी या निफल का सिक्का। चलित्र-वि० [सं०] अपनी ही शक्ति से चलनेवाला । चकमाल-क्रि० प्र० [म० च्यवन] चूना । टपकाना । चलिष्ण-वि० [सं०] चलने का इच्छुक । चलने को उथत [को०। चाना बोलना । 30-जज सबद्ध बंदिन चर्हि, चलु-संशा पुं० [सं०] पूरे मुह से भरा हुआ पानी । मुह भर पानी माग पुरा पवित्र मति । अनधन प्रवाह बहु पुहवि परि, [को०। वरप्पो जेम पुरंद गति -पृ० रा०,११४७२ । चलुक'-संज्ञा पुं० [सं०] चुल्लू में लिया हुआ जल [को०] 1 चवपया -मंथा श्री० [हिं०] दे० 'चौपया'। चलुक-वि० चुल्लू भर (पानी) को । चवर'--संज्ञा पुं० [हिं० घर] दे० 'चेंबर'। चलया+--वि० [हिं० चलना] चलनेवाला। चवर--मंद्या छी० [हिं० चोहट, जोहड] जलयुड। 30-कसर चलैया-वि० [हिं० चलना ] चालनेवाला। रोत के गुसा मंगाए, चालर चवर के पानी। -कवीर श०, चलौना-संहा पुं० [हिं० चलना] १. वह कलछा या लकड़ी फा भा० २, पृ०४३॥ डंडा जिससे दूध, पानी या और कोई द्रव्य पदार्थ हिलाया .. चवरनाल-कि० [सं० चपल, हिचर ] तेजी या वेग से जाता है। २. वह लकड़ी का टुकड़ा जिससे चरखा चलाया बढ़ाना। उ०-पावहि सावन धातु जब मारह बाँड़ पवारि । जाता है। चवरि जो पागे हचले छाइह सोनहा झारि। -चित्रा०, चलौवा–संघापु० [हिं०] दे० 'चलाया। चल्लना@.-कि० प्र० [हिं० चलना] दे० 'चलना' । उ०-चढ़ नवरा-संपासिं० चयल] लोबिया । लोक चल्ल, मसीता महल्ले । झरोखो सझायौ, उठी साह विदेश चतदिह । चारो पोर । उ--गुर लग्ने प्रायो।-रा०६०, पृ० ३२ । ऊवर भर सजिद रहि है पप्पर चवरार हम । पृ० रा०२४ । चल्लवा@+--संश पुं० [हिं० चिलवा ] दे॰ 'चेल्हा'। १०४। चल्ला--संज्ञा पुं० [हि० चिल्ला (धनुप की डोरी)] प्रत्यंचा। चवर्ग- पुं० [सं०] [वि० चवर्गीय] च से न तक के अक्ष रोदा । उ०-सुनतं हि जोधार पुर चोगडद तूटे, पायान चल्ले . समह । इन अक्षरों का उच्चारण तालुस हाता है तें सायद से छूटे 1--रघु रू०, पृ० २३६ । चवल-संज्ञा पुं० [सं०] लोविया। चल्ली - संघ ली [देश॰]..तकले पर लपेटा हृधा सूत या चवाल-संघा मी० [हिं० चौयाई] चारों ओर से चलनवाला ऊन आदि । कु कंड़ी । एका साथ सब दिशाओं से बहनेवाली वायु । उ०-- लागि चल्हवा -संक्षा पुं० [हिं०] चेल्हा । दवारि पहार टही टहनी कपि लंक यथा खरखोकी । - चवंवेद--संघा पं० [सं० चतुर्वेद] उ०.-चर्ववेद बंभ हरी कित्ति • चार चवा चहुँ ओर चली झपटी लपट सो तमीचर तोकी। भाखी । जिन धम्म साघम्म संसार साखी।-पृ० रा०,१,६।। तुलसी (शब्द०)। n पृ०२४ " " "