पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९७

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पयनीय १४७६ घरखरे चयनीय-वि० [सं०] चयन करने योग्य । चरकर-संचा पुं० [सं० चक्र ] कुष्ठ का दाग । सफेद दाग । फूल । चयित- वि० [सं०] चुना हुमा [को०)। चरक -संशा पं० [अनु० ] फटना । दरकना । वरेद-संज्ञा पुं॰ [फा० चरिद ] चरनेवाले पशु । चरक्टा-संचा पुं० [हिं० चारा+काटना] १. ऊट या हाथी के .चर-संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा की ओर से नियुक्त किया हुआ वह लिये चारा काटकर लानेवाला प्रादमी। २. तुच्छ मनुष्य । मनुष्य जिसका काम प्रकाश या गुप्त रूप से अपने तया पराए . छोटे वित्त का प्रादमी। राज्यों को भीतरी दशा का पता लगाना हो। गूढ़ पुरुष । चरकना@-क्रि० वि० [अनु॰] चिटकना । फटना । उल-पए अवध चतुर वर चारी।- तुलसी (शब्द०)। चरकसंहिता-मंदी० [सं०] चरक मुनि का बनाया हुआ वैद्यक २. किसी विशेष कार्य के लिये कहीं भेजा हुना यादमी। . संबंधी सर्वमान्य एवं अति प्राचीन उपलब्ध संस्कृत ग्रंथ । दूत । कासिद । ३. वह जो चले । जैने,- अनुचर, खेचर, चरका-संज्ञा पुं० [फा० चरकह, ] १. हलका धाव । जस्म । निणिवर । ४. ज्योतिप में देशांतर जिसकी सहायता दिनमान कि० प्र...खाना। देना। लगाना । उ0-- गवरू जवान के निकालने में ली जाती है। ५. खंजन पक्षी। ६. कौडी। नश्तरे हुस्न का में भी चरका खाए हुए हूँ। फिसाना०, कपर्दिका । ७. मंगल। मौम । ८. पाले से खेला जानेवाला ... भा० ३, पृ० २६ । एक प्रकार का जूमा । ६. नदियों के किनारे या संगमस्यान .२. गरम धातु से दागने का चिह्न । ३. हानि नुकसान । धक्का। पर को वह गीली भूमि जो नदी के साय बहकर आई हुई क्रि० प्र०--देना। मिट्टी के जमने से बनती है। १०. दलदल । कीचड़। ११. ४. धोखा । नदियों के बीच में बालू का बना हुया टापू । क्रि० प्र० साना ।—देना ।-पढ़ना। चर:--संका पुं० [हिं०] १, छिछला पानी ।-(लश०)। २. नदी का चरका-संज्ञा पुं० [देश॰] गडुवा नामक अन्न का एक भेद । तट ।-(लश०)। ३. नाव या. जहाज में एक मूढ़े. अर्थात् चरकाल मंबा पुं० [सं०] ज्योतिष के अनुसार समय का कुछ विशेष पाड़ी लगी हुई लकड़ी के बाहर की भोर निकले हुए भाग अंश जिसका काम दिनमान स्थिर करने में पड़ता है। २. से दूसरे मूड़े के बीच का स्थान :-(लश०)। - वह समय जो किसी ग्रह को एक अंश से दूसरे अंश पर जाने चर-वि० [सं०] १. आपसे आप चलनेवाला। जंगम । जैसे,-चर में लगता है। जीव, चराचर । २. एक स्थान पर न व्हरनेवाला । अस्थिर। चरकीन-संबा ० [हिं० चिरकीन ] मल। पाखाना। वि० दे० जैसे,-घर राशि। चर नक्षत्र। ३. खानेवाला। याहार' । 'चिरकीन' । १०-चुगली उगली चीज है, चुगली है करनेवाला। चरकीन । काग हुवै के कुथरो इण रे रस अाधीन । बाँकी. चर-मंशा [ अनु० ] कागज, कपड़े आदि के फटने का शब्द । विशेष-खट, पट प्रादि यादों के समान इसका प्रयोग भी 'से' ___ ग्रं०. भाग २, पृ० ५४ । विभक्ति के साथ ही शिवि० वत होता है प्रतः इसका चरक्का -संग्रा पुं० [फा० चरफह ] घाव । चोट। उ०—जप - लिंगविचार व्यर्थ है। नवीर सारंग तं, भोरा नाम अभंग भर । भुवै कोन को चरपनी-संघा की० [हिं० चार पाना] दे० 'चरन्नी । उ०- भुग्गि हैं, करों चरक्का पग्गवर ।-पृ० रा०, १२ । १२४ । दो अन्नी और चरअन्नी भुजाने में भी एक एक पैसा भुजाना चरख संद्या पुं० [फा० चर्स ] १. पहिए के आकार का अथवा इसी - लगता है। भारतेंदु नं०, भा० ३, पृ० ६४६ . ' प्रकार का और कोई घूमनेवाला गोल चक्कर । चाक । चरई'- संवा मोहि .] पत्थर पर ईंट आदि का बना हुप्रा वह गहरा विशेप-इस प्रकार की चक्कर की सहायता से कुएँ से पानी ___ गढा जिसमें जानवरों को चारा या पानी दिया जाता है। खींचा जाता है, प्रतिशवाजी छोड़ी जाती है तथा इसी प्रकार चरई-संका की सं० चरिका] तार की वह खूटी जिसमें के और बहुत से काम होते हैं। जुलाहे तार आदि बांधते हैं। . चरक -संज्ञा पुं० [सं०] १. दूत । कासिद। चर। २ गुप्चर । २. खराद । यो०-- चरखकश। ... भेदिया। जासूस। ३. वैद्यक के एक प्रधान प्राचार्य जो . शेषनाग के अवतार माने जाते हैं, और जिनका रचा हुमा क्रि० प्र०-चढ़ना । चढ़ाना । .'चरकसंहिता' वैचक का सर्वमान्य ग्रंथ है। इसके उपदेशक । ३. लकड़ी का एक ढाँचा जिसमें चार अंगुल की दूरी पर दो अनिपुत्र पुनर्वसु ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक छोटी चरनियाँ लगी रहती हैं और जिनके बीच में रेशम या हैं । ४. मुसाफिर । बटोही। पथिक । ५. दे० 'चटक'.६.. कलवत लपेटा जाता है। ४. सूत कातने का चरखा। ५. . चरकसंहिता नाम का ग्रंथ । ७. बौदों का एक संप्रदाय । कुम्हार का चाक । ६. गोफन । हेलवाँस ७ वह गाड़ी जिस- ८. भिखमंगा । भिक्षुक । . पर तोप चढ़ी रहती है। उ०-च रखिनु पाकरपंसदजल परक-संधा नी. एक प्रकार की मछली। उ०—मारे चरक चाल्ह , यरस परदल घरपं भले भले ।--सू बन (शब्द०)। पर हासी। जल तजि कहाँ जाहि जलवासी।--जायसी चरख-संथा पुं० [फा०चरग] तेंदुए की जाति का लकडबग्या नाम (छन्द) . . . . . . " का जाववर । बाज की जाति की एक शिकारी चिड़िया।