पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८७

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चंपड़ालना नाखार पर्या-हरिमय । चण । मुगंफ । कृष्णचंचुक! बालभोज्य। ... राजिभक्ष्य । । कंचुकी ।

-चना देना-खा सूखा भोजन ।

.: महा.-चने का चारा मरना इतना दुर्बल होना कि बहुत जरा - सी वोट से मर जाय । नाकों चने चबवाना=बहुत तंग करना। ... मृत दिक वा हैरान करना । नाकों चने चबाना=बहुत हैरान होना । लोहे का चना-अत्यंत कठिन काम । दुष्कर कार्य । विकट कार्य। लोहे का चना चयाना-प्रत्यंत कठिन कार्य करना । - चनाखार-संधा पुं० [हिं० चना+खार चने के डंठलों और पत्तियों प्रादि को जलाकर निकाला हुआ खार ! चनाव--संवा स्त्री० [सं० चन्द्रमाना] पंजाब की पांच नदियों में से एक। ' विशेष--यह लहान्त के पर्वतों से निकलकर सिंध में मिलती है। .. यह प्रायः ६०० मील लंबी है। - ". चार-महा पुं० [फा० चनार] एक प्रकार का बहुत ऊँचा पेड़ जो उत्तर भारत, विशेषतः काश्मीर में बहुत अधिकता से होता है। विशेष-इसके पत्ते पंजे के प्रकार के होते हैं और जाड़े में बिलकुल झड़ जाते हैं। इसकी लकड़ी पीलापन लिए सफेद रंग की और बहुत मजबूत होती है। यह बहुत देर में जलती है और मेज कुरसिर्वां आदि बनाने के काम आती है। . चानयारा-संशा की० [?] एक जलपक्षी जी सांभर झील के निकट और वरमा में अधिकता से पाया जाता है। विशप-इसके पर बहुत सुंदर होते हैं और मेमों की टोपियों . में लगाने तथा मूलवंद बनाने के काम में प्रांते हैं। इसे हरगीला' भी कहते हैं । चनृभरी-संभा मौ० [हिं० चनारी] दे॰ 'चनोरी'। चनठ-संश पुं० [हिं० चना+एठ (प्रत्य॰)] १. एक की प्रकार घास । विशप- इसकी पत्ती चने की पत्ती से मिलती जुलती होती है। वह वहया परमों की शोधि में काम प्राती २. इस घास से बनी हुई औषध जो प्रायः पशनों को दी ...जाती है। चनारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चाँद] वह भेड़, जिसके सारे शरीर के रोएँ . सफेद हों।-(गड़ेरिया). . चन्न-संज्ञा पुं० सं०चरण] दे० 'चरण'। २०-डिने पंभ ब्रह्मड- दिगपाल हल्ली । धरा चन्न भारं तु लाजे मतुल्ली। . . पृ०रा०, २१८४ । चन्नगम-मंडा पुं० [सं० चन्दन, प्रा०चंदण] दे० 'चंदन' 1 30-

. चन्नण केसर चरच कियौ उच्छंव मछरीका ।-रा० रू०

चन्हारिन-संहा पी० [देश॰] एक प्रकार की जंगली चिड़िया । चप-मंदा श्री० [देश॰] घौली हुई वस्तु । जैसे,--चूने का चप । चपकन-संज्ञा सी० [हिं० चपकना] १. एक प्रकार का अंगा। अंगरखा। २. लोहे या पीतल का एक साज जिसे किवाड़, संदूक प्रादि में इसलिये लगाते हैं, जिसमें वंदसंदूकया किवाड़, के पल्ले अटके रहें और झटके आदि से खुल न सकें । इसी के कोड़े में ताला लगाया जाता है। ३. एक छोटी कील जो हल की हरिप में आगे की ओर लगी होती है। चपकना--क्रि० अ० [हिं० चिपकना] दे० 'चिपकना' । चपका-संज्ञा पुं० [हिं० चपकना] एक प्रकार का कीड़ा। .. चपकाना-क्रि० स० [हि चिपकाना दे० 'त्रिपकाना' । चपकलश--संहा की तु०] १. तलवार का युद्ध । २. दंगा । ३. लड़ाई झगड़ा । ४. स्थान की कमी। ५. भीड़ । ६. दिक्कत । अड़चन । कठिनाई (को०)। चपकलिश-संज्ञा स्त्री० १. कठिन स्थिति । अड़चन । फेर। कठिनाई । झंझट । अंडस । क्रि० प्र०- में पड़ना। २. कसामसी । बहुत भीड़भाड़ । अंडस । चपट-संज्ञा पुं॰ [सं० या अनु०] १. चपत । तमाचा। २.३० चपेट (को०)। चपटना -कि० अ० [हिं० चिपटना] दे० 'चिपकना' या 'चिमटना'। चपटा--वि० [हिं० चिपटा] ३० "चिपटा'। चपटा गाँजा-संज्ञा पुं० [हिं० चपटा गाँजा] दवाया हुआ गांजा। बालूबर गांजा। चपटाना --क्रि० स० [हिं० चिपटना का प्रे० रूप] दे० 'चिपकाना' ___ या 'चिमटाना'। चपटी'-वि० सी० [हि चिपटी] दे० 'चिपटी'। चपटी --संक्षा सी० [हिं० चपटा] १. एक प्रकार की किलनी जो चौपाये को लगती है। २. ताली । थपोड़ी। ३. योनि । भग। महा०--चपटी खेलना=दो स्त्रियों का. परस्पर योनि मिलाकर रगड़ना । चपटी लड़ाना = दे० 'चपटी खेलना'। चपड़कनातिया--वि० [हिं० चपरकनातिया] दे॰ 'चपरकनातिया' । चपड़गटू-व० [हि० चौपट+गटपट] प्राफत का मारा। चपड़गट्ट-वि० गुत्थमगुत्या। चपचपड-संज्ञा स्त्री० [अनु॰] १. वह शब्द जो कुत्तों के मुह से खाते या पानी पीते समय निकलता है। क्रि० प्र०--करना ।—होना । चपड़ा-संचा पुं० हिं० चपटा] १. साफ की हुई लाख का पत्तर । . साफ की हुई काम में लाने योग्य लाख । २. लाल रंग का एक कीड़ा या फतिंगा जो प्रायः पाखानों तथा सीड़ लिए हुए गंदे स्थानों में होता है। २. कोई पिटी हुई या चिपटी वस्तु । पत्तर 1 . चपड़ा लेना---कि० अ०[ हि० चपढ़ा ] मस्तूल के जोड़ पर रस्सी लपेटना 1--( लश० )। - . .. चन्ता संहा पु०सं० चन्द्रका दै. 'चांद'०-चन्नी रात का ... चन्ना पड़ मेरी म्हाड़पो। बिजली तेरी दाद साँई करत वात । -दक्विनी०, पृ० ३८६।। - चन्नील-संमा श्रीमहि चंदिनी या चाँदनी] दे० 'चाँदनी' । ०-चन्नी रात का चन्ना पड़ मेरी म्हाडी पो।-दक्खिनी०