पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८०

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चढ़ावनी १४५४ चतुःसप्तति ए हुए गहने पहा बदन मास जो चुनने यो०-चढ़ाव उतार-एक सिरे पर मोटा और दूसरे सिरे की विशेप-यह घास पोपध के काम में भी पाती है और वृष्य ओर क्रमशः पतला होते जाने का भाव । गायदुम प्राकृति । तथा वलकारक समझी जाती है। जैसे,-- इस छड़ी का चढ़ाव उतार देखो। चणिया--संवा पुं० [गुज० चरिणयो] एक छोटा लहंगा या पापरा। ३. वह गहना जो दूल्हे के घर की ओर से दुलहिन को विवाह चतरंग - संज्ञा पु० [हिं० चतुरंग] ३० 'चतुरंग'। के दिन पहनाया जाता है । ४. विवाह के दिन दुलहिन को चतर-वि० [हिं० चतुर] ३० 'चतुर'। दूल्हा के यहां से पाए हुए गहने पहनाने की रीति । उ०- चतर -संक्षा पुं० [सं०छा, हि० छतर] छत्र। अब मैं गवनब' जहाँ कुमारी । करिहीं चढ़न चढ़ाव तयारी :- चतरना'-मि० अ० [हिं० छितराना] छितरना । विवरना। रघुराज (शब्द०) ५. दरी के करघे का वह बांस जो वुनने- चतराना-क्रि० स० छितराना। वाले के पास रहता है । ६. वह दिशा जिधर से नदी या चतरभंग-संज्ञा पुं० [सं० छनमा बैलों का एक दोप, जिसमें उनके पानी की धारा पाई हो । वहाव का उलटा । जैसे,-चढ़ाव डिल्ले का मांस एक मोर लटक जाता है। पर नाव ले जाने में बड़ी मेहनत पड़ती है। विशेष-जिस बैल में यह दोप हो, उसका रखना या पालना चढ़ावनी-वि० [हिं०चढ़ना] चढ़ानेवाली । पहचानेवाली । ले जाने- हानिकारक और अशुभ समझा जाता है। वाली । उ०-प्रेम की पड़ावनी बढ़ावनी विरति ज्ञान, अंत में चतरभांगा-[हिं०वि० चतरमग] ( वह चल) जिसे चतरभंग का । चढ़ावनी श्री रामराजधानी में-राम० धर्म०, पृ० २६०। रोग हो । चढ़ावा-संज्ञा पुं० [हिं० चढ़ना] १. वह गहना जो दूल्हे की ओर से चतरोई-संहा स्त्री॰ [देश॰]पांच छह हाथ ऊँची एक प्रकार को झाड़ी। दुलहिन को विवाह के दिन पहनाया जाता है । उ०—इसके विशेष---यह हिमालय में हजारा से नेपाल तक ९००० फुट की कुछ दिनों पीछे रमानाथ के साथ देवबाला का व्याह ठीक ऊँचाई तक पाई जाती है । इसकी छाल सफेद रंग की होती हो गया, चढ़ावा भी चढ़ गया।- ठेठ० पृ० १६ । २. वह है और फागुन चैत में इसमें पीले रंग के छोटे फूल लगते हैं। सामग्री जो किसी देवता को चढ़ाई जाय । पुजापा। ३. इसकी लकड़ी के रस से एक प्रकार की रसौत बनाते हैं। टोटके की वह सामग्री जो बीमारी को एक स्थान से दूसरे चतन-संधी पुं० [सं० चतस्रः] चार । स्थान पर ले जाने के लिये किसी चौराहे या गांव के किनारे विशेष-संस्कृत में यह शब्द 'चोर' वाचक चतस के स्त्री लिंग रख दी जाती है। ४. बढ़ावा । दम । उत्साह । रूप मे प्रथमा बहुवचन का अवशेप है । मुहा०-चढ़ाना चढ़ाना देना जी बढ़ाना। उत्साह बढ़ाना। चत:पंच-वि० [सं० चतुःपञ्च] चार या पांच मिो०] ।' उसकाना । उत्तेजित करना। चतुःपंचाश--वि० [सं०] चौवनवाँ । चद्वैत- संज्ञा पुं० [हिं० चढ़त्ता+ऐत (प्रत्य॰)] चढ़नेवाला। सवार चतुःपंचाशत् --संवा पुं० [सं०] चौवन की संख्या । :: होनेवाला। चढ़ेता-संप्ता पु० [हिं० चढ़ना-+ऐता (प्रत्य०) दसरों का नोटा चतुःपाद्, चतुःपाद-पंखा पुं० [सं०] १. वह जो चार चरणों से फेरनेवाला । चाबुक सबार । युवत हो । २. न्यायांग में अभियोगी की जांच पड़ताल की चढ़या-वि० [हिचढ़ना+ऐसा (प्रत्य॰)] चढ़ने या चढानेवाला। एक कार्यविधि जिसमें चार प्रकार की प्रक्रियाएँ हों पति चढ़ौमा संज्ञा पुं० [हिं० चढौवा] दे० 'चढ़ाया' । तर्क, पक्ष समर्थन, प्रयुक्ति और निर्णय । ३. धनुर्वेद जिसके चढ़ावा-वि० [हि० चढ़ना] १. उठी हुई एंडी का जता । खडी एंडी . . ग्रहण, धारणा, प्रयोग पोर प्रतिकार ये चार चरण हैं। का जूता । २. चढ़ाना । ३. दे० 'चढ़ाया'-१ यो०-चतुःपादसंपत्ति = दे० 'चतुष्पद' ३1-माधव०, पृ० ५६ । चण' संज्ञा पुं० [सं०] चना (को०] । चतुःशफ-वि० [सं०] चार खुरोंवाला (को०] । . ... चण-वि० प्रसिद्ध । ख्यात । जैसे,--अक्षरचण। चतुःशाख--वि० [सं०] चार शाखाओंवाला [को०] 1 . . विशेष-समास में अंतिम पद के रूप में ही इनका प्रयोग चतुःशाल-संज्ञा पुं० [सं०] १. वह मकान जिसमें चार बड़े बड़े कमर मिलता है । संस्कृत व्याकरण के अनुसार चरणय चरा . हों। २. चौपाल । वैठक । दीवानखाना। . . . प्रत्यय है। इसका प्रयोग 'निष्णात' या विद्या अथवा विषय चतुःपण्ठ---वि० [सं०] चौंसठया । में पारंगत या विख्यात अर्थ में होता है। चतुःषष्ठी--वि०, संथा सी० [सं०] चौंसठ की संख्या या अंक । , चरणक-संज्ञा पुं० [सं०] १. चना । २. एक गोत्रकार प्रापि। चतुःष्टोम--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'चतुष्टोम' (को०)। . चणका-संज्ञा स्त्री० [सं०] तीसी [को०] । चतुःसंप्रदाय-भदा पुं० [सं० चतुःसम्प्रदाय वैष्णवों के चार प्रधान चणकात्मज- संज्ञा पुं० [सं०] चाणक्य । ..... ___ संप्रदाय -श्री, माध्व, रुद्र मोर सनक । चरणद्रम-संज्ञा पुं० [सं०] १. एक रोग का नाम । २. क्षुद्र गोक्षुर(को०)। चतुःसन-संचा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा के चार पुत्र-सनक, सनदन, चणपत्री- संज्ञा स्त्री० [सं०] रुदंती नाम का पौधा जिसकी पत्तियाँ 'सनातन और सनत्कुमार जो विष्णु के अवतार माने जाते हैं चने की पत्तियों के समान होती हैं। [को०] । . चरिणका-संशा स्त्री० [सं०] एक घास जिसके खाने से गाय को दूध चतुःसप्तत-वि० [सं०] चौहत्त रयाँ । अधिक होता है। चतुःसप्तति-वि०, संवा स्त्री॰ [सं०] चौहत्तर की संख्या या अंक ।