पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७९

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बढ़वाना १४५६ चढ़ाव .. सुटिहि । इयं अयुत वत्त पिप्पत नरह भुजति भार प्रनक ऊपर की ओर ले जाना । पर की ओर समेटना । जैसे,-- पुहि । -पृ० रा०, १३ । १४१ । पास्तीन चढ़ाना, मोहरी चढ़ाना, धोती घडामा । क्रि० प्र०-देना ।—लेना । ...बड़वाना-शि०स० [हिं० चढ़ाना का प्रे० रूप] बढ़ाने का काम कराना। ४. याक्रमण कराना । धावा कराना। चढ़ाई कराना । दूसरे चढ़ाई-झा सो० [हिं० चढ़ना ] १. चढ़ने की क्रिया या भाव। को प्राक्रमण में प्रवृत्त करना। २. ऊँचाई की ओर ले जानेवाली भूमि । वह स्थान जो धागे मुहा०-चढ़ा लाना=आक्रमण या चढ़ाई के लिये किसी को की ग्रोर बराबर ऊँचा होता गया हो और जिस पर चलने में दल बल सहित साथ लाना। जैसे, यह नादिरशाह को पैर कुछ रहाकर रखने के कारण अधिक परिथन पड़े। दिल्ली पर चढ़ा लाया। - जी, पागे दो कोस की चढ़ाई पड़ती है। ३. शत्रु से लड़ने ५.महंगा करना । भाव बढ़ाना । ६. स्वर तीव्र करना। सुर के लिये दलबल के सहित प्रस्थान । धावा । आक्रमण । ऊँचा करना । अावाज तेज करना । ७. डोल सिठार आदि नि०प्र०--करना। -होना। की डोरी को कसना या तानना। ८. कित्ती देवता या ". किसी देवता की पूजा का प्रायोजन। ५. किसी देवता को महात्मा ग्रादि को मेंट देना । देवापित करना। नगर ... पूजा या भेंट चढ़ाने की त्रिया । चढ़ाया । कड़ाही । उ० रखना । जैसे, - फूल चढ़ाना, मिठाई चढ़ाना । ६. सवारी सूर मंद सो कहत जसोदा दिन पाए प्रब करहु पढ़ाई - पर बैठाना । सवार कराना । जैसे,-घोड़े पर चढ़ाना, . .. सूर (शब्द०)। गाड़ी पर पड़ाना । १०. चटपट पी जाना। गले से उतार चढ़ा-संज्ञा पुं० [हिं० चढ़ाव ] दे० 'चढ़ाव। जाना । जैसे, यह माज एक लोटा भांग चढ़ा गया। घड़ातरी संशा स्त्री० [हिं० चढ़ना+उतरना ] बार बार चढ़ने बिशेप-शिष्टता के व्यवहार में इस प्रर्य में इस शब्द का प्रयोग . .. की क्रिया। नहीं होता । इसमें पीनेवाले पर अधिक पी जाने आदि का - क्रि० प्र०—करना। भारोप व्यंग या विनोद के अवसर पर ही होता है। ११.किसी के माये हरा निकालना। किसी को देनदार - मुहा०-चढ़ा उतरी लगाना-बार वार चड़ना उतरना । व्हराना । जैसे, उसके ऊपर क्यों इतना कर्जा बढ़ाते जाते चढ़ाळपरी-संत्रा [हिं० चढ़ना-ऊपर] एक दूसरे के प्रागे हो ? १२. किती पुस्तक, बही, कागज आदि पर लिखना । होने या बढ़ने का प्रयत्न । लांग डाट । होड़। टांकमा । दर्ज करना । (यह प्रयोग किसी ऐसी रकम, बस्तु मि०प्र०—करना । या नाम के लिये होता है जिसका लेखा रखना होता है)। मुहा०-चढ़ा कपरी लगाना =एक दूसरे के प्रागे होने या जैसे,--इन रुपयों को भी वही पर बड़ा लो। १३. पकने बढ़ने का प्रयत्न करना होड़ाहोड़ी करना । या पांच बाने के लिये चूल्हे पर रखना । जैसे, दाल चहाचड़ -संभाको हि० चड़ाचढ़ी] दे० 'चढ़ाचड़ी' । उ०- चढ़ाना, हांड़ी चढ़ाना । १४.लेप करना । लगाना । पोतना। ज्यों कुछ त्यों ही नितंब चढ़ कुछ त्यों ही निवंब त्यों जैसे,-माथे पर चदन बढ़ाना, दवा चढ़ाना, कपड़े पर रंग चातुरई सी। जानी न ऐसी चढ़ाचड़ी में फिहि घों कटि बीच बढ़ाना । १५. एक वस्तु के ऊपर दूसरी वस्तु सटाना। - ही सूटि लई सी -पाकर पृ० ८३।। मढ़ना । ऊपर से लगामा । आवरण रूप में लगाना। ऊपर चढ़ाचढ़ी-मंशा स्त्री० [हिं० चढ़ना ] एक दूसरे से बढ़ जाने का से टांकना । जैसे-जिल्द चड़ाना, किताब पर कागज प्रयलाहोड़ाहोटी लागडांट। खींचतान । उ०—देखते चढ़ाना, छाते पर कपड़ा चढ़ाना, खोल या गिलाफ चढ़ाना, बनी है दुह दल की चढ़ाचढ़ी मैं राम दुग हूँप ने लाली गोट चढ़ाना। १६. सितार, सारंगी, धनुप ग्रादि में तार जो चढ़ लगी :--पद्माकर (जन्द०)। या डोरी कसकर बांधना । जैसे--रोदा चढ़ाना । चढ़ान--संथा की हिं० चढ़ना ] दे० 'चढ़ानी'। मुहा०-धनुप चढ़ाना-धनुप की कोटि पर पतंचिका चढ़ाना। यो०--सीची चढ़ान-वह चढ़ाई जिसमें झुकाव या तिरा धनुष की डोरी को तानकर छोर पर बांधना या घटकाना । दि० दे० 'धनुप' । न हो। चढ़ानी-संश सी० [हिं० बढ़ना ] ऊंचाई की ओर ले जानेवाली पढ़ाना--क्रि० स० [हिं० चढ़ना का प्रे० रूप]१. नीचे से ऊपर सतह । वह स्थान जो पाने की पोर बरावर पा होता ... ले जाना। चाई पर पहचाना। जैसे,—यह चारपाई गया हो, और जिसपर चलने में अधिक परिश्रम पडे। कपर चढ़ा दो। जैसे,--पागे उस पहाड़ की बड़ी कड़ी चढ़ानी है। क्रि० प्र०-देना ।--लेना। चढ़ाव-मंशा पुं० [हिं० चढ़ना] १. चढ़ने का भाव । २. बढ़ने का काम कराना । चढ़ने में प्रवृत्त करना । जैसे यो०-चढ़ाव उतार ऊंचा नीचा स्थान । ऐसा स्थान जहाँ - उसे व्यर्थ पेड़ पर क्यों चढ़ाते हो, गिर पड़ेगा। बार वार चढ़ना और फिर उतरना पड़ता हो। क्रि० प्र०-देना। २. बढ़ने का भाव । उत्तरोत्तर अधिक होने का भाव। वृद्धि । ..... नीचे तक लटकनी दुई किसी वस्तु को मिकोर या खिसकाकर बाइ । जैसे,-पानी का नढाव, नदी कानड़ाव ।