पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७

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खंडविली . . . खंडविला-संघा पुं० [देश॰] एक प्रकार का धान । उ०—कोरहन, खाभार- संसा श्री० [हिं०] दे० 'खमारि'मा मारी' । ... :::: बड़हर, अड़हन मिला । औ संसारतिलक खंडविला !-- साभारि,खभारी--संशा १० सं० काश्मरी, प्रा० काम्हरी गमारी जायसी (शब्द०)। नामक वृक्ष । वि०३० गंभारी:.:. . खंडसार-संक्षा स्त्री० [सं० खण्ड +शाला] खाँड या शक्कार बनाने खभावती--संशा स्त्री० [सं० स्कम्भावती] पाड़ व . जाति की एक का कारखाना । वह स्थान जहाँ खाँड बनती हो। ' रागिनी जो मालकोश राग को दूसरी स्त्री: मानी जाती है। खंडसारी-संज्ञा स्त्री० [देश०सं० पखण्ड' से एक प्रकार की चीनी । इसके गाने का समय पाधी गत है। . .. देशी चीनी। शक्कर । . खभिया-संवा सी० [सं० सांमा+इया [स्क. प्रत्य॰)].सं.भा.का खंडसाल-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'खंडपार'। - अल्पार्थक रूप । छोटा पतला ( विशेषतः काठ का..) मा . खंडहर-संश्चा पुं० [सं० खंड+हि० घर किसी टूटे फूट या गिरे ख भली-संवा श्री० [हिं०] दे० 'सभिली'। हुए भक न का बचा हुमा भाग । खंडर। खावा--संशा सो [सं० साम्] वह गड्ढा जिसमें अनाज भरकर : रमाते खंडहुला - संज्ञा पुं॰ [देश॰] ३० 'खंडविला' हैं । सत्ता। खंडिया' संज्ञा पुं० [सं० १es+हिं० इया (प्रत्य॰)] ईख को खवडा-संक्षा पुं० [हिं० लो+डा (प्रत्य॰)] अनाज रसाने का : काटकर उसकी छोटी छोटी गड़ेरिया या टुकड़े बनानेवाला वा गड्ढा । बड़ा साता। बड़ी खाव। व्यक्ति । खसना-शिम[हिं०] दे० 'ससना' । .. , - शासना . खंडिया-संज्ञा स्त्री० [सं० खण्ड ]फड़ा। खंड । जैसे--मछली की खा--संचा पुं० [सं०] १. गडढा । गतं । २. साली स्थान । ३. निर्गमा खंडिया। निकास। ४. छेन । विल । ५.इंद्रिय 1 ६. गले की वह नाली खड़ा -संज्ञा पुं० [हिं० खंड] १.वह कुग्रां जिसकी जगत पत्थर जिसमें प्राणवायु ग्राती जाती है। ७.कुप्रा.८. तीर का के ढोकों से बनाई गई हो । २. दे० 'कंदुना'। घाव । ६. गादी के पहिए की नाभि का छेद जिसमें धुरा रहता खंडोरा - संचा पुं० [हिं० खांड +ौरा . (प्रत्य०)] मिसरी का .. है । पाखा । १०. प्रकाश । स्वर्ग। देवलोक । । १३. कर्म । लड्डू । श्रोला। उ०—पुहुप सुरंग रस अमिरित साँधे । के के क्रिया । १४. जन्मकुंडली में दसया स्थान । १५. शून्य । सुरग खंडोरा बांधे।-जायसी (शब्द०)। १६. बिंदु । सिफर । १७. ब्रह्म । १८. शब्द।..१९अभ्रक । खंडोरी --संक्षा बी० [सं० खण्ड हिं० प्रौरी (प्रत्य०) ]चावल के २०. मोक्ष । निर्वाण । २१. नगर । पाहर . (को०) । २१. बड़े बड़े टुकड़े जो फूटने पर टूट जाते हैं। समझ बोध (को०)। २२. झरना (को०) । २३ कूप । कुर्मा खंदना-वि० [सं० खनन] खोदना।। (को०) २४. सुर्य (को०)।२५. क्षेत्र (को०)।. .......... खंदवाना-क्रि० स० [हिं० सादना का प्रे० रूप] खोदवाना । खाई@ --संज्ञा स्त्री[सं. क्षयी] १. क्षयारिणी क्रिया २ लड़ाई। खोदने के काम में लगाना। युद्ध । ३,तफरार । झगड़ा। उ०-- अंश परायो देत न नीके खंधवाना-क्रि० स० [सांघियाना का प्रे रूप] खाली कराना। मांगत ही सब करत माई । सूर (शब्द॰) । उ.--कंचन के घेला अतर भरला सुमन खाधवाये ।--विश्राम खए+--संध पुं० [सं० स:याकाश] ऊपर , व्योमः। 50-. (शब्द०)। खाए लगि बाँह उसारि उसारि भए इत उत्त जब रिसिं । खेंधारा--संज्ञा पुं० [सं० स्कन्धावार] सेना का निवासस्थान। . घारि 1--सुजान०, पृ० ३४। स्कंधावार । छावनी । उ०-कहाँ मोर सब दरव भंडारा। खाकक्षा--संधा. पी. सिं०] पाकाथ का घेरा। पाकाशीय परिधि [को०] - कहाँ मोर सब दरब ख धारा। जायसी (शब्द०)। खाकामिनी--संछा ली[सं०] दुर्गा का एक नाम [को०)। संधियाना--क्रि० स० [हिं० खाली] [पदार्थ को पात्र में से खकुतल-संशा[सं० खकुन्तल] शिव का एक नाम । व्योमकेश । बाहर निकालना । खाली करना। रिक्त करना। कपर्दी [को०] खंबायची, खवायती-संशा स्त्री० [हिं०] दे० 'साम्माच'। खक्लाट' -वि० [सं०] १.ठोस । कड़ा । २. कठोर । कर्कश खबारा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'भार'। खवखट-- सं ० दे० 'खरियां'। .. . . .: खभायची--संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'सामावती'। उ०-बगो राग खाक्वार-संज्ञा पुं० [सं०] १. भिखारी की छड़ी।. देखकर' खो भायची लग्गो केसर वोह ।--रा० रु०, पृ०३४७ कोना खभायची कान्हड़ा--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खाम्माच कान्हड़ा। सक्खर२.-संघा पुं० [१] पंजाव का एक पुराना प्रदेश तथा वहाँ खाभार -संक्षा पुं० [सं० क्षोभ, प्रा० शोभ] १. अंदेशा । चिता। के निवासी। उ०-खक्खर को देस, वारयो भक्खर भगाना . . २ घबराहट । व्याकुलता । ३. डर भय । उ०-हरबर हरत ज-गंग , पृ०६२। ।.. . 'भारु, निज शरणागत जनन को । भाषत अहो तुम्हार करी खक्वा '-संघा पुं० [अ० कहकहा और की हंसी। अट्टहास । . अभय संसार ते । रघुराज (शब्द०)। ४. शक । उ०- कहकहा । उ०--पाइ के खबर सा बी 'सा शो मानिखा कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर विधि, लोचन नि चकाचौंधि - मारि, खलक के खाली करवे' को और और सों। रघुराज चेतन ख"भार सो।-तुलसी (शब्द०)। - .:.