पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६५

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चकाचक कला-वि० [सौ. चकली] चौड़ा। ने इतके रात्रिकाल के इस वियोग पर अनेक उक्तियां बांधी चकलाना----क्रि० स० [हिं० चकल] किसी पौधे को एक स्थान से है । इस पक्षी को सुरखाव भी कहते हैं । - दूसरे स्थान पर लगाने के लिये मिट्टी समेत उजाड़ना। चकवा'-संज्ञा पुं० [सं० चक्र] १. हाथ से कुछ बढ़ाई हुई पाटे की --... चकल उठाना। लोई। २. जुलाहों की चरखी तथा नटाई में लगी हुई बात चकलाना--क्रि० स० [हिं० चकला] चौड़ा करना । की छड़ी। चकली'-संश बी० [सं० चक, हि. चाक] २. घिरनी। गड़ारी। चक्रवा- संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक बहुत ऊँचा पैड़ जो मध्य प्रदेश, . .... २. छोटा चकला या चौका जिसपर चंदन घिसते हैं । दक्षिण भारत तथा चटगाँव की ओर बहुत मिलता है। . होरसा। विशेप- इसके हीर की लकड़ी बहुत मजबूत और छाल कुछ चकली--वि० बी० चौड़ी। स्याही लिए सफेद या भूरी होती है। इसके पत्ते चमड़ा चकलेदार-संशा पुं० [देशा०] किसी प्रदेश का शासक या कर संग्रह सिझाने के काम में आते हैं। ....करनेवाला । फिसी सूवे का हाकिम या मालगुजारी वसूल चकवाना@1-क्रि० अ० [देश॰] चकपकाना। हैरान होना । चकित .. करनेवाला। होना । उ०---मुखचंद की देखि प्रभा दिन में चकवा चकई विशेष---अवध में नवाब की ओर से जो कर्मचारी मालगुजारी चकवाने रहें ।-देव (शब्द०)। ... वसल करने के लिये नियुक्त होते थे, वे चकलेदार कहलाते थे। चकवार, चकवारिस-संज्ञा पुं० [?] कछुपा । कच्छप । . चकवड-संचा पुं० [सं० चक्रमर्द] एक हाथ से डेढ़ दो हाथ तक चकवाहल-संशा पुं० [हि० चकवा] दे॰ 'चकवा' । .. ऊँचा एक पौधा 1 पमार । पवाड़। चकवी--संक्षा यो० [हि० चकवा का बी०] १० 'चकई', 'चकवा'। . विशेष--इसकी पत्तियाँ डंठल की ओर नुकीली यौर सिरे की चकवैल-संज्ञा पुं० [हिं० चकबं] दे० 'चक्कर'। ....... और गोलाई लिए हुए चौड़ी होती हैं। पीले रंग के छोटे चकसेनी -संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] काकजंघा। छोटे फूलों के झड जाने पर इसमें पतली लंबी फलियाँ लगती चकहा-संशा पुं० [सं० चक्र] पहिया । चक्का । उ.-महा उतंग हैं । फलियों के अंदर उरद के दाने के ऐसे बीज होते हैं जो मनि जोतिन के संग आनि कयो रंग चकहा गहत रवि रथ खाने में बहुत फड़ ए होते हैं। इसकी पती, जड़, जाल, वीज के।-भूषण (शब्द०)। सब औषध के काम में आते हैं। वैद्यक में यह पित्त वात चकही- संधा बी० [हिं० चकई] दे॰ 'चकई'। उ०-गई कंदला - नाशक, हृदय को हितकारी तथा श्वास, कुष्ट, दाद, खुजली सरबर पासा । चकही जान्यौ चंद्र प्रकासा।-माधवानल०, ... आदि को दूर करनेवाला माना जाता है । पृ० १६० । ... चकवड़-संघा पुं० सं० चक्र (चाक)+नांड] कुम्हारों का वह चकांडू-संज्ञा पुं० [हि.] चकैया गाँड । चिपटा पाड़। बरतन जो पानी से भरा हुमा चाक के पास रखा रहता है। चका --संक्षा पुं० [सं० चक्र] १. पहिया। चक्का। चाक । पानी हाथ में लगाकर चाक पर चढ़े हुए बरतन के लौदे को उ०-- बदन बहल कुंडल का भौह जुवा हय नैन । फेरत 'चिकना करते हैं। चित मैदान मैं बहलवान वइ मैन !-रसनिधि (शब्द०)। . : चकवा'-संशा पुं० [सं० चक्रवाक] [ी० चकई| एक पक्षी जो जाड़े २. परवाह । प्रतीक्षा । उ०-पहिले धकै पाँच सौ पड़िया, मुगलां प्राण चका से मुड़िया।- राज रु०, पृ० २२७ । में नदियों और बड़े जलाशयों के किनारे दिखाई देता है .। और वैसाख तक रहता है। 30-चकवा चकई दो जने, चकाा संक्षा पुं० [हि० चकवा] [खी चकी ] चक्रयाक । चक्वा । इन मत मारो कोय। ये मारे करतार के, रैन बिछोहा होय उ० नंकु निमप न लायत नैन चकी चितवं तिय देव तिया (शब्द०)। सी। मतिराम (शब्द०)।। - विशेप-अधिक गरमी पड़ते ही यह भारतवर्ष से चला जाता चकाकेवल-- संचा बी० [हिं० चक या चक्का+केवल | काले रंग की है। यह दक्षिण को छोड़ और सारे भारतवर्ष में पाया मिट्टी जो सूखने पर चिटक जाती और पानी पड़ने से लसदार - जाता है। यह पक्षी प्रायःझुड में रहता है। यह हंस की होती है । यह कठिनता डे जोती जाती है। जाति का पक्षी है । इसकी लंबाई हाथ भर तक होती है । चकाचक ---संचाऔ अनु.] तलवार यादि के लगातार शरीर इसके शरीर पर कई भिन्न भिन्न रंगों का मेल दिखाई देता पर पड़ने का शब्द । है। पीठ और छाती का रंग पीला तथा पीछे की ओर का खैरा होता है। किसी के बीच बीच में काली और लाल चकाचक'-१०१. तर । तराबोर । लथपथ । ड्या मार धारियाँ भी होती हैं। पूछ का रंग कुछ हरापन लिए होता - घी में चकाचक । २. पूर्ण सुंदर । दिव्य । उ०-इस तरह है। कहीं कहीं इन रंगों में भेद होता है। डनों पर कई रंगों मेरे चितेरे हृदय की, वाह्य प्रकृति बनी चकाचक चित्र थी।- का गहरा मेल दिखाई देता है। यह अपने जोड़े से बहुत प्रम पल्लक, पृ०८. रखता है। वहत काल से इस देश में ऐसा प्रसिद्ध है कि चकाचक-कि० वि० [सं० चक (= तृप्त होना] वव। रानि के समय यह अपने जोड़े से अलग रहता है। कवियों। अघाफर 1 पेट भर के। जैसे,---ग्राम उनकी चकात्रक छनी है।