पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५१

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चंदनगिरि १४२८ चंदिनि महाल-चंदन चढ़ाना=घिते हुए चंदन को शरीर में लगाना । साथ पीसकर खेल में पकाते हैं और पानी के जल जाने पर तेल 7. गंधपसार । पसरन । ५. राम की सेना का एक बंदर । ६. छान लेते हैं। . .. छप्पय छंदन के तेरहवें भेद का नाम । ७. एक प्रकार का बड़ा चंदनी'.--संश स्त्री०सं० चन्दनी] एक नदी का नाम जिसका उल्लेख तोता। रामायण में है। विशेष-यह उत्तरीय भारत, मध्य भारत, हिमालय की तराई चंदनी'७ -संहा की० [हिं० चांदनी] दे॰ 'चांदनी' । 30- .. और कांगड़े अादि में पाया जाता है। चमक सनाहं उपमा नु चंडी। मनो चंदनी रेन प्रतिव्यंब वंदनगिरि-संवा पुं० [सं० नन्दनगिरि मलयाचल पर्वत । मंडी।-पृ० ग०, २०१०६। चंदनगोपा---- बी० [सं० चन्दनगोपा] अनंतमूल नामक लता चंदनी-वि० [सं० चन्दनिन्] बदन से संबंधित [को०] 1 ...कि०] . चंदनी-संशा पु० शिव को। चंदनगोह-संज्ञा पुं० [हिं० चंदन गोह] एक प्रकार की गोह जो चंदनीया- संज्ञा स्त्री० [सं० चन्द्रनीया] गोरोचन । ..... बहुत छोटी होती है । चंदपखान संशा पुं० [सं० चन्द्रपाषाण] दे० 'चंद्रकांत' । उ०- चंदनधेनु-संज्ञा स्त्री० [सं० चन्दनवेनु ] वह गाय जो पुत्र द्वारा चंद की चांदनी के परसे मनी चंदपखान पहार चले च।- सौभाग्यवती मृत माता के उद्देश्य से चंदन से अंकित करके मति ० ०, पृ०३४४। ..... दी जाती है। चंदवान@-संज्ञा पुं० [. चन्द्रवारण] एक प्रकार का बाण। - विशेष—यह दान वर्णत्सर्ग के स्थान में होता है; क्योंकि पिता उ०-चले चंदवान, घनदान और कुहुकवान ! भूपण - की उपस्थिति में पुत्र को वृपोत्सर्ग का अधिकार नहीं होता। (शब्द०)। चंदनपुष्प-संशा पुं० [सं० चन्दनपुष्प] १. चदन का 'फूल । २. विशेप---इस बाण के सिरे पर लोहे की अर्द्धचंद्राकार गांसी 'लौर । लवंग। या फल लगा रहता है । इस बाण को उस समय काम में 5. चंदनवावना. संज्ञा पुं० [हिं० चंदन+वाधना = वामन ] चंदन लाते हैं, जब किसी का सिर काटना होता है। ... विरवा । 30-वाघ चंदन वावना, (जाके) एक रान की चंदवि -संज्ञा पुं० [स० चन्द्र+हिं० वि०] मोर चंद्रिका । उ०- पास ।- दरिया० बानी, पृ॰ ३३ । मोरनि नव तन चंदवि धारे। देखि दूग होत दुबारे। =". चदनयात्रा-संशा सी० [सं० चन्दनयात्रा] अक्षयतृतीया । वैशाख सुदी - नंद० ग्रं॰, पृ० १६४ । - तीज । अव तीज। चंदसिरी-संक्षा बी० [मं० चन्द्रयो] एक प्रकार का बड़ा गहना जो चंदनवती'--वि०बी० [सं० चन्दनबती चंदन से युक्त । हाथी के मस्तक पर पहनाया जाता है। चंदनवती-संझ झी० केरल देश की भूमि । चंदा--वि० [फा०] १. इतना ।२. बहुत । अधिक। .. चदनशारिवा-संज्ञा स्त्री० [सं० चन्दनशारिवा ] एक प्रकार की चंदा' संज्ञा पुं० [सं० चन्द्र या चन्द] चंद्रमा । उ०-ज्यों चोर - शारिवा जिसमें चंदन की सी सुगंध होती है। चंदा को निरब इत उत दृष्टि न बाहिरासूर याम बिन चंदनसार-संशश पुं० [सं० चन्दनसार] १. वज्रसार । नौसादर । २. छिन छिन युग-सन क्यों कर रैन बिहाहि-सूर (जन्द०)। घिसा हुआ चंदन। यौ०-चंदामाना=लड़कों को बहलाने का एक पद । जैसे,- चंदनहार-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्र+हि. हार] गले में पहनने की एक ___ 'चंदा मामा दौड़िया । दूध भरी कटोरिया' इत्यादि। प्रकार की माला जो कई तरह की होती है।०० चंदा'-संज्ञा पुं० [फा० चंद (कई एक)] १.वह थोड़ा थोडा धन - 'चंद्रहार'। जो कई एक ग्रादमियों से उनके इच्छानुसार किसी कार्य के . चंदना'-संवा सी० [सं० चन्दना] चंदनशारिवा। लिये लिया जाय। बैहरी। उगाही! बरार। २. किसी - चंदना -संशा पुं० [सं० चन्द्रमस्] चंद्रमा ! सामयिक पत्र या पुस्तक यादि का वार्षिक या नासिक मूल्य । . चंदना-क्रि० स० [सं० चन्दन] चंदन का लेपन करना । शरीर ३. यह धन जो किसी सभा, सोसाइटी आदि की उनके . में चंदन पोतना। सदस्यों या. सहायकों द्वारा दियत समय पर दिया जाता है। चंदावत--संज्ञा पुं० [मं० चन्द्र क्षत्रियों की एक जाति या शाखा। . चंदनादि-संशा पुं० [सं० चन्दनादि] चंदन, उस, कपूर, बकुची, चंदावतो-संज्ञा बी० [मं० चन्द्रावती] थी रान की सहचरी एक . इलायची आदि पित्तनाशक दवाओं का वर्ग । रागिनी। - चंदनादि तैल-संज्ञा पुं० [सं० चन्दनादि तैल] लाल चंदन के योग से चंदावल-मंठा - [फा०] सेना के पीछे रक्षार्य चलनेवाले सैनिक । .. वननेवाला आयुर्वेद में एक प्रसिद्ध तेल । चंडावल । . विशेष--यह तेल शरीर के अनेक रोगों पर चलता है और चंदिका--संघा बी० [सं० चन्द्रिका] ३. 'द्रिका'। शरीर में नई कांति लानेवाला माना जाता है। रक्त चंदन, चंदिनि, दिनो'-संशा स्त्री० [२० चन्द्र] चांदनी । चंद्रिका । उ०- .. अगर, देवदार, पत्रकाठ, इलायची, केसर, कपूर, कस्तूरी, जाय: गत चतुरदसी चंदिनी अमल इस्ति निसिराजु । उड़ान अवलि - फल, शीतल चीनी, दाल चीनी, नागफेसर इत्यादि को पानी के लसी दस दिसि उमगत आनंद प्राजु ।-तुलसी (शब्द०)।