पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४१

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पोटाला: '... १४१८ , घोड़ा लंका आदि में विशेष होता है । इसमें से एक प्रकार की राल है, पर गदहे से यह मजबूत, बड़ा और तेज होता है। इसके निकलती है, जो रंगाई तया दवा के काम में आती है। कान भी गदहे के कानों से छोटे और खड़े होते हैं। इसकी । घोटाला--संज्ञा पुं॰ [देश॰] घपला । गड़बड़ । गोलमाल । गरदन पर लंबे लंबे वाल होते हैं और पूछ नीचे से ऊपर यो०-गड़बड़ घोटाला। तक बहुत लंबे लंबे वालों से ढकी होती है । टापों के ऊपर क्रि० प्र०—करना । -डालना। पड़ना। और घटनों के नीचे एक प्रकार के घट्टे या गांठे होती हैं। महा०-घोटाले में पड़ना=निश्चित या ठीक न होना । अस्थिर घोड़े वहुत रंगों के होते हैं जिनमें से कुछ के नाम ये हैं- .. रहना। लाल, सुरंग, कुम्मैत, सब्जा, मुश्की, नुकरा, गरी, बादामी, चीनी, गुलदार, अवलक इत्यादि । वहत प्राचीन काल से

घोटिका-संवा बी• [सं०] घोड़ी (को०] ।

घोटी- संश श्री० [सं०] दे० 'घोटिका' । मनुष्य घोड़े से सवारी का काम लेतं आ रहे हैं, जिसका '. घोटी--- संत्रा श्री० [हिं० घूट] दे० 'घुट्टी' । उ०—यह कंठी माला कारण उसकी मजबूती और तेज चाल है। पोइया, दुलकी, सरपट, कदम, रहवाल, लंगूरी आदि इसकी कई चालें

पहना देना और यह बीड़ा जन्म घोटी में पिला देना।-

प्रसिद्ध हैं। घोड़े की बोली को हिनहिनाना कहते हैं। जिसमें ... भारतेंदु ग्रं॰, भा० ३, पृ० ५६६ । घोड़ों की पहचान चाल, लक्षण प्रादि का वर्णन होता है; यो०-जन्म घोटी। उस विद्या को शालिहोत्र कहते हैं। शालिहोत्र ग्रंथों में धोड़ों घोटा-संवा पुं० [हिं० घोटना ] १. वह जो घोटे । घोटनेवाला । २. के कई प्रकार से कई भेद किए गए हैं। जैसे,-देशभेद से घोटने का औजार । घोटा। उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ और नीच; जातिभेद से ब्राह्मण, घोटू-संक पुं० [हिं० घुटना] पर की गाँठ। घुटना । क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, तथा गुरगभेद से सात्विक, राजसी - घोठ-संज्ञा पुं० [सं० गोष्ठ ] गोठ । गोष्ठ । और तामसी। इनकी अवस्था का अनुमान इनके दांतों से ..घोड़ा-संवा पुं० [सं० घोटक ] घोड़ा। किया जाता है । इससे दाँतों की गिनती और रंग आदि ... यो०-घोड़चढ़ा । घोड़दौड़ आदि । के अनुसार भी घोड़ों के पाठ भेद माने गए हैं---कालिका, घोड़चढ़ा-संज्ञा पुं॰ [हिं०] दे० 'घुड़चढ़ा' । हरिणी, शुक्ला, काचा, मक्षिका, शंख, मुशलक और चलता। घोडदौड़-संवा सी० [हिं०] दे० 'घुड़दौड़' । प्राचीन भारतवासियों को जिन जिन देशों के घोड़ों का ज्ञान घोड़वच-संशा.बी० [हिं० घोड़ा+वच ] वच नाम की प्रोपधि था, उनके अनुसार उन्होंने उत्तम, मध्यम आदि भेद किए हैं। की एक किस्म जो घोड़ों को ही दी जाती है। जैसे.- ताजिक, तपार और खुरासान के घोड़ों को उत्तमः घोड़मुहा-- संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'घुड़मुहाँ'। गोजिकाण केकाण और प्रौढ़ाहार के घोड़ों का मध्यम, गांधार, साध्यवास और सिंधुद्वार के घोड़ों को कनिष्ठ कहा

घोड़राई-संवा स्त्री० [हिं० घोड़ा+राई ] वह राई जिसके दाने

है। अाज कल अरब, स्पेन, फ्लेंडर्स, नारफाक आदि के कुछ बड़े बड़े होते हैं। यह मसाले के साथ घोड़ों को खिलाई घोड़े बहुत अच्छी जाति के सिने जाते हैं। नैपाल और ... जाती है। बरमा के टांगन भी प्रसिद्ध हैं। भारतवर्ष में कच्छ, काठिया- घोड़ रासन-संशा पुं० [हिं० घोड़ा+रासन] एक प्रकार का. वाड़ और ( पाकिस्तान में ) सिंध के घोड़े उत्तम गिने जाते ... रासन या रास्ता । वि० दे० 'रास्ना'। हैं। शालिहोत्र में रंग, नाप और भंवरी आदि के अनुसार घोड़राज-संज्ञा पुं० [हिं० घोड़ा+रोज ] एक प्रकार का रोज या घोड़े स्वामियों के लिये शुभ या अशुभ फल देनेवाले समझे नीलगाय । जाते हैं । जैसे,—जिसके चारों पैर और दोनों आँखें सफेद

विशेष- यह घोड़े की भांति बहुत तेज भागता है। कहीं कहीं

हो, कान और पूछ छोटी हो, उसे चक्रवाक कहते हैं। यह ... लोग इसे पालतू बनाकर गाड़ियों में भी जोतते हैं। इसको बहुत प्रभुभक्त और मंगल। यक समझा जाता है। इसी प्रकार घोडरोछ, घोड़रोझ भी कहते हैं । मल्लिक, कल्याणपंचक, गजदंत, उष्ट्रदंत प्रादि बहुत से भेद घोड़ला -संज्ञा पुं० [हिं० घोड़+ला (प्रत्य॰)] घोड़ा । .किए गए हैं । गरदन पर अयाल के नीचे या पीठ पर जो .. उ०--ज्ञान को घोड़ला सून्य में दौरिया, सुरति है सब्द भौरी (घूमे हुए रोएँ) होती है, उसे साँपिन कहते हैं। . सारा ।-सं० दरिया, पृ०७६ । उसका मुह यदि घोड़े के मुह की पोर हो, तो वह बहत घोड़सन--संवा हि घोडा-सन] एक प्रकार का सन । अशुभ मानी जाती है । भोरियों के भी कई नाम हैं। जैसे- घोड़सारा-संक्षा सौ० [हिं० घोड़ा+शाला ] घोड़ा बांधने का भुजबल (जो अगले पैरों के ऊपर होती है), छत्रभंग (जो . स्थान । अस्तबल । पंडा। पीठ या रीढ़ के पास होती है और बहुत अशुभ मानी जाती . घोड़साला--संक्षा ली [हिं०] दे० 'घोड़सार' । है), गंगापाट (तंग के नीचे) मादि । घोड़ों के शुभाशुभ लक्षण . बाड़ा---संञ्चा पुं० [सं० घोटक, प्रा. घडा][यो घोड़ा] १. चार पैरों- फारसवाले भी मानते हैं। इससे हिंदुस्तान में घोड़े से संबंध वाला एक प्रसिद्ध और बड़ा पशु । अश्व । वाजि । तुरंग। रखनेवाले जो शब्द प्रचलित हैं, उनमें से बहुत से फारसो के विशेपइसके पैरों में पंजे नहीं होते, गोलाकार सुम (टाप) भी हैं । जैसे,-स्याहतालू,गावकोहान आदि । होते हैं। यह उसी जाति का पश है, जिस जाति का गदहा पया-घाटका तुरग | अश्व । बाजी। बाह। तरंगमा