पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३२१

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१३९८. घात,

अव मोहि सों।--कवीर सा०, पृ० ५१ । २. खोटपन । घाटिका--संज्ञा खी० [सं०] गरदन का पिछला भाग । गरदन. और

- बुराई ! कुकर्म। . . . रीढ़ का संविभाग। .. घाट-वि० [हिं०. घट] कम । थोड़ा। उ०-निसदिन तोले पूर · घाटिया-मंबा पुं० [सं० घाट+इया (प्रत्य॰)] तीर्यस्थानों के घाटों घाट अब सुपनेहु नाहीं।--पलटू०, पृ०३६। पर बैठकर स्नान करनेवालों से दक्षिणा लेनेवाला ब्राह्मण । पार-संका पुं० [२०] [स्त्री० घाटी, घटिका] १. गरदन का पिछला गंगापुत्र। भाग । २. नाव आदि पर चढ़ने या उतरने का स्थान । ३. घाटी' संशा सी० [हिं० घाट] १. पर्वतों के बीच की भूमि । पहाड़ी । कलश । घट (को०)। .. . . : के बीच का मैदान । पर्वतों के बीच का संकरा मार्ग । दर्रा । घाटकप्तान-- पुं० [हिं० घाट+० कपटेन ] बंदरगाह का उ० है आगे परवत की पाटी। विषम पहार अगम सुठि प्रधान अध्यक्ष या अधिकारी। घाटी। जायसी (शब्द०)। २. पहाड़ की ढाल । चढ़ाव । घाटना-क्रि० स० [हिं० घटा या सं०/घट् (=मिलाना. एकमेल उतार का पहाड़ी मार्ग। उ०-चलू चलू" सब कोइ कहै करना)] पाट देना । घटा की तरह फैला देना। उ० घाटी पहचे बिरला कोय । एक कनक इक कामिनी, दुर्गम घाटी " अनि अकास सर, डाटौ दुज्जन जाल । काटी दस दसकंध दोय ।- कबीर (शब्द०)। ३. महसूली वस्तुओं को ले जाने ... के, मुंड आज विकराल !--स० सप्तक, पृ० ३६७ 1 . का आज्ञापत्र । रास्ते का कर या महसूल चुकाने का पाटबंदी-संशबी० [हिं० घाट+वंदी] १. नाव या जहाज खोलने स्वीकारपत्र। की मनाही। किश्ती खोलने या चलाने को मुमानियत । २. घाटी-संज्ञा स्त्री० [सं०] गले का पिछला भाग। - घाट बंधने या रुकने का भाव या किया। घाटी-वि० [हिं० घाटि ] कम । न्यून । उ०—कंवन चाहि पाटवाल -संज्ञा पुं० [हिं० घाट+वाला (प्रत्य॰)] घाट पर बैठने- अधिक कए कएलह काचहु. तह भेल घाटी ।-विद्यापति, ..... वाला ब्राह्मण जो स्नान करनेवालों से दान लेता है। पृ० ३६७ । ... पाटिया । गंगापुत्र। - घाटो' संज्ञा पुं०. | हिं०] दे० 'घाटा'। घाटा --संज्ञा पुं० [हिं० घटना घटी। हानि । नुकसान । जैसे,- घाटो-संक्षा पुं० [हिं० घट ] एक प्रकार का गीत जो चैत वैसाख इस व्यवसाय में उन्हें बड़ा घाटा पाया। में गाया जाता है । घांटो। ....... कि. प्र.-पाना ।—पड़ना।—होना ।-उठाना ।—देना।- घाटो-वि० [हिं० घटना] दरिद्र ।---(डि.)।

सहना ।--बैठना !-खाना।

. .. घात'--संज्ञा पुं० [सं०] [ वि०-धाती] १. प्रहार । चोट । मार। - मुहा०--घाटा उठाना -हानि सहना । नुकसान में पड़ना। धक्का । जरव । उ०-(क) चुक न घात मार मुठभेरी- ... घाटा भरना-(१) नुकसान भरना । अपने पल्ले से रुपया.. . तुलसी (शब्द०)। (ख) कपीश कुद्यो वात घात वारिधि —देना । (२)नकसान पराकरता द्वानिकी कसर निकालना। हिलोरिक।-तुलसी (शब्द०)। कमी पूरी करना। क्रि० प्र०-करना।-चलना --होना। पाटा -संज्ञा स्त्री० [सं० घट्ट ] घाटी। उ०-साद करे किम , मुहा०-यात चलाना=मारण, मोहन यादि प्रयोग करना । - सुदूर है, पुलि पुलि यक्के पांव । सय घाटा बउलिया वहरि . मूठ चलाना । जादू टोना करना। ... : जुहना वाव !--डोला०, दू०, ३८५। , ... २. ध । हत्या ।::... .. . IT'सभा सी० [सं०] १. घड़ा। २. गरदन के पीछे का हिस्सा। . यो०--गोधात निरघात 1 विश्वासघात । -. .. ३. नाव.आदि से उतरने के लिये किनारे का स्थान (को० । ३. अहित । बुराई । उ०-हित की. कही न, कही अंत समय घात - घाटारोहो-संवा पुं० [हिं० घाट+सं० अवरोध] घाट का रोकना। की।---प्रताप (शब्द०)।४. (गणित में) गुणनफल । ५. घाट से किसी को उतरने न देना । उ०—(क) च्यारि दरा (ज्योतिष में) प्रवेश । संक्रांति । . .: घाटी जिती: कीने. घाटारोह । -ह. रासो, पृ० १३० । यौ---घाततिथि । घालवार । . . . . (ख) हथवासहुदोरहु तरनि कीजै घाटारोह -तुलसी . ६. बाण । तीर । इषु । ... घाता-संद्धा स्री० [सं०] १. अभिप्राय सिद्ध करने का उपयुक्त स्थान घाटि -संवा पुं० [हिं० घटना ] कम । न्यून । उ०-भुगते और अवसर । कोई कार्य करने के लिये अनुकूल स्थिति । ... : विन न घाटि व जाही। कब भुगतै यह मो मन माही।- दांव । सुयोग । उ० अाप अपनी घात निरखत खेल जम्यो .

नंद ०, पृ० ३१८।

बनाइ।-सूर (शब्द०)। .. . घाटि-संला मी [सं० घात, हि०.घट (= कम)] नीच कर्म । पाप। क्रि० प्र०-तकना। .:... दुराई । उ०-- रावन घाटि रची जग माहीं।-तुलसी मुहा०-धात पर चढ़ना=किसी को ऐसी स्थिति होना जिससे.. दूसरे का मतलब सिद्ध हो । अभिप्राय साधन के अनुकूल होना। ... घाटि --कि० वि० किसी की तुलना में कम । घटकर ।.... दांव पर चढ़ना। वश में आना । हत्ये चढ़ना । घाव में - का