पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३१६

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घरराट घरीक घरराट --संवा मी० [अनु॰] गर्जना । ध्वनि । उ०--अमरप लोधा घरांव - संचा पुं० [हिं० घर+प्राव (प्रत्य॰)] घर का सांसंबंध। उछर्फ घण हंदै घरराट' |-बाँकी० ग्रं॰, भा० १, पृ० १६। घनिष्ठता । परस्पर मेलजोल का भाव । ... घरवा-संज्ञा पुं० [हिं० घर+वा (प्रत्य॰)] १. छोटा मोटा घरा -संज्ञा पुं० [हिं० घड़ा] दे० 'घड़ा। उ०--पगी प्रेम . घर । कुटी । उ०--जो घरया में बोले भाई । काहिनामतोहि नंदलाल के भरन आपु जल जाइ । घरी घर के सर .. कहहु बुझाई!-कवीर सा०, पृ० ३६७६।२ घरौंदा। . घरनि देति तरकाइ ।-मति० ग्रं॰, पृ० ४४५ । .... ...... घरवात@t-~-संज्ञा स्त्री० [हि. घरू+वात ( प्रत्य ) अथवा घराऊ वि० [हिं० घर+पार (प्रत्य॰)] १. घर का। घर से सं वस्तु-हिं० वात। घर की संपत्ति । घर का सामान । संबंध रखनेवाला । गृहस्थी संबंधी । जैसे.-घराऊ झगड़ा। गृहस्थी। 30-कृश गात ललात जो रोटिन को परवात घरै २. आपस का । निज का । घर के प्राणियों या इष्ट मित्रों खुरपी खरिया । तुलसी (शब्द०)। के बीच का। घरवाला--संज्ञा पुं० [हिं० घर वाला (प्रत्य॰)] [खो० घरवाली] घराड़ी- संज्ञा पी० [हिं० घर] १. दे० 'डोह' । २. दे० 'गड़ारी'। १.घर का मालिक । २. प्रति । स्वामी। घराती संवा पुं० [हिं० घर+माती (प्रत्य॰)] विवाह में कन्या को . घरवाली संज्ञा स्त्री० [हिं० घर+वाली (प्रत्य॰)] गृहिणी । ओर के लोग । कन्या के पक्ष के लोग । उ०-एक ओर सब बैठ : भार्या । पत्नो। बराती । एक ओर सब लग घराती।-रघुराज: (शब्द०)। घरवाहा--संद्धा पुं० [हिं०] दे० 'घरवा'। घराना--धा पु० [हिं० घर+आना (प्रत्य॰)] खानदान । वंश। घरवैया--संज्ञा पुं० [हिं० घरैया घराती। घर के लोग । उ०- कुल । जैसे,--वह अच्छे घराने का आदमी है, उस घराने की। बस गाँव का और कोई नहीं था। जो थे घरवैया थे।-नई०, गायकी प्रसिद्ध है। . पृ०५१ । घरारी-संञ्चा स्त्री० [हिं० घररना (= घिसना)] रगड़ खाकर घिसनें । घरसा---संक्षा पुं० [संघर्ष रगड़ा। उ०-जोग न लोग लुगाइन के कारण बनी लकीर, चिह्न या निशान। . .. के संग, भोग न रोगन के घरसा में | -मतिराम (शब्द०)। घरिमार-संचा पुं० [हिं० घडियाल] दे० 'घड़ियाल' । . घरह -संक्षा स्त्री० [हिं० घर+ह (पत्य)1 घरवाली। धरनी। धरिमारी--संवा स्त्री० [हिं० दे० 'घड़ियाली'। पत्नी । उ0--सपिन पोट सलपह घरह दूलह दुति दुग धारणा- सच्चा खा [सं० घरना । परना। देखि !-पृ० रा०, १४ । ३३ । " घारयकरा--क्रि० वि० [हिं० घड़ी+एक घड़ी भर । थोड़े समय.. घरहराना'-क्रि० स० [अनुध्व.] दे० 'घहराना"। उ०...-धरहराइ तक । युछ देर तक। . . . अति बरखा करई ।---नंद ग्रं०, पृ० १६२ । घरियाg - संशा स्त्री० [हिं०] दे० 'घड़िया' । उ॰--यह संसार । घरहराना'-कि० अ० [सं० गढर] गहवर होना। व्याकुल रहट की घरिया । कबीर सा०, पृ०५८८ । होना । उ०-~-यौं कहि कुचरि ग्रीव जब गोई । घरहराइ तब घरियाना-क्रि० स० [हिं० घरी (-तह)] घरी लगाना । कपड़े सहचारि रोई।-नंद ग्रं०, पृ० १४१ । को तह लगाकर लपेटना । घरहराना-क्रि० स० [हिं० घड़घड़ाना गर्जन करना । कड़कना। घरियार -संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'घड़ियाल'। उ०-तहाँ घरनि । उ-तड़तड़ाहि तड़ि वन से परें। घरहराहि धन ऊधम घरियार बंजा" |--कवीर सा०, पृ० १५४८ । करें। नंद ग्रं०.पृ० ३०७ ।. . घरियारी+ संचा पं० [हिं० दे० 'घड़ियाली' 13०--मनसिज परि- घरहाँई संज्ञा स्त्री० [हिं० घर+सं० घाती हिं० घाई। १. यारी परी गजर वजावे दाल-राम धर्म०, पृ० २४८ 1: घर घालनेवाली। घर में विरोध करानेवाली स्त्री। इधर का घरी:--संञ्चा मी० [हिं० घड़ी] समय। काल ।' घड़ी। उ उधर लगानेवाली । चुगुलखोर स्त्री । २. वह स्त्री जो किसी - (क) मानहु मीच घरी गनि लेई । —मानस, २।४।। के घर की बुराई सबसे कहती फिरे । अपकोति फैलानेवाली। (ख) धन्य है वह घरी जिसमें इस पानंद की लट हुई। निदा फैलानेवाली । लांछन लगानेवाली।चवाव करनेवाली। श्यामा०, पृ. १.६ । . . उ०--(क) घरहाई चवाव न जो करती तो भलो पो बुरो घरोर--संक्षा की महि० घर(=कोठा, खाना)] तह । परत । लपट पहिचानती में। हनुमान कवि। (शब्द॰) । (ख) घरहाइन उ-राखौं घरी बनाय, हावों नृपद्वार ली। तब लाजा की घेरूह लाज न सकी बचाय। प्ररी हरी चित लै गयो . पट आय, जो चाहो तो दीजियो ।--(शब्द०)। . लोचन चारु नचाय। शृ सत० (शब्द॰) । (ग) घरहाइन घरी +-संशा स्त्री० [हिं० 1 दे० 'घडिया' । उ०--लागा पस घर चल' चातुर चाइन सैन । तदपि सनेह सने लग ललकि रहट के सीहि प्रमत बैल ।-जायसी पं०, पृ० १३ । दुहने गैन ।--शृसत० (शब्द०)। . . . घरीक --कि०वि० [हि घड़ी+एक कुछ देर । एक घड़ी भर... घरहाई :-- वि०वदनामी फैलानेवाली । कलंक की बात चारो ओर थोड़ी देर । -(क) जल को गए लक्खन हैं लरिका, पहनेयाली । चवाइन । चुगुलबोर । उ०—ये घरहाई लुगाई परिखो पिय छह घरीक हठा। -तुलसी ग्रं॰, पृ०. १६४ सर्व निस द्यौस नेवाज हमें दहती हैं। प्राण पियारे तिहारे - (ख) विरह दहन लागी दहन घर न घरीक चिराति । रहत। लिये सिगरे बज को हँसियो सहती हैं। --नेवाज (शब्द॰) । घड़ी ती ती भई बूति नौ उतराति ।-नृसत(शब्द०) :