पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२९७

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घउरी. १३७६ घटना घरी-संज्ञा की० [हिं०] फलों का गुच्छा । धौर । ववरि । उ०- घटकना--क्रि० स० [अनु० घटक] १. उदरस्य करना। २. दे० प्रोनइ रही केरन्ह की घरी! जायसी ग्रं० (गुप्त), गटकना'। ... पृ० ३४ ! - घटकरन -संदा पुं० [सं० घटकर्ण] दे० 'घटकर्ण' । उ०-जयति घघरवेल-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० घुघराला+बेल ] एक प्रकार की लता। दसकं० घटकरन वारिदनाद कदन कारन कालनेमि वंदाल । हंगा -तुलसी (शब्द०)। घघरा-संघः पुं० [हिं० धन+घेरा] [ी घघरी] स्त्रियों का एक घटकर्कट-संक्षा पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का ताल । . चुननदार पहनावा जो कटि से लेकर पैर तक का शरीर घटकर्ण-संशा पुं० [सं०] कुंभकर्ण । हाकने के लिये होता है। लहंगा। घटकपर-संश पुं० [सं०] विक्रम की सभा के नवरत्नों में एक कवि का नाम । घघरी-संडा स्त्री० [हि० घघरा ] छोटा लहँगा। विशेष—इनका नाम कालिदास के साथ विक्रमादित्य की सभा . घचाघच-शाम्बी० [अनु.] नरम चीज में किसी धारदार या . , . नुकीली वस्तु के चुभने वा धंसने का शब्द । के नवरत्नों में पाता है। इनका बनाया नीतिसार नामक __घट' संज्ञा पुं० [सं०] १. घड़ा। जलपात्र । कलसा । २. पिंड । एक ग्रंथ मिलता है जिसे "घटकर्पर काव्य' भी कहते हैं।

शरीर। उ०-वा घट के सीटूक के दीजे नदी वहाय । नेह

इनका छोटा सा काव्य यमक अलंकार से परिपूर्ण है। भरेहु प जिन्हें दौरि ल्वाई जाय !-रसनिधि (शब्द०)। 'यदि कोई इससे सुंदर यमकालंकारयुक्त कविता करे तो मैं ...३. मन । हृदय । जैसे,-अंतरयामी बट घर बासी। ४. फूटै घड़े के टुकड़े से जल भरूंगा' इस प्रतिज्ञा के कारण ... कुंभक प्राणायाम (को०) 1 ५. कुंभ राशि। ६. एक तौल । इनका नाम घटकर्पर या घटखर्पर पड़ा है। २० द्रोण की तौल । ७. हाथी का भ । ८. किनारा। घटका-संज्ञा पुं० [सं० घटक( =शरीर।) अथवा अनु० घर घर ९. नौ प्रकार के द्रव्यों में से एक जिसे तुला भी कहते हैं। शादद ] मरने के पहले की वह अवस्था जिसमें साम रुक वि० दे० 'तुलापरीक्षा। रुककर घरघराहट के साथ निकलती है। कफ ,कने की मुहा०-घट में बसना या बैठना=(१) हृदय में स्थापित होना । अवस्था । घरी। नन में वसना । ध्यान पर चढ़ा रहना । जैसे-जिसके घट क्रि० प्र०-घटका लगना=मरते समय कफ छेकना। में राम बसते हैं, वही कुछ देता है। (२) किसी बात का घटकार-संज्ञा पुं० [सं०] कुम्हार । - मन में बैठना । हृदयंगम होना। घट ग्रह-संज्ञा पुं॰ [सं०] जल भरनेवाला व्यक्ति । पनहारा को । घट-संज्ञा पुं० [हिं० घटा] मेव । वादल । घटा। 30--सहनाइ घटज-संज्ञा पुं० [सं०] अगस्त्य मुनि । ८०-कुसमउ देखि सनेह .. नरिय नेक बजं । सु मनों घट भद्दव मास गज। -पृ. संभारा । बढ़त विधि जिमि घटज निवारा।--मानस, . रा०, २४.१८२। २।६६ घट-दि० [हिं० घटना ] घटा हुआ । कम। थोड़ा। छोटा। घटजोनी----संशा पुं० [सं० घटयोनि ] दे० 'घटयोनि' । उ०-- . मध्यम । उ०-घट बढ़ रकम बनाइ के सिसुता करी बालमीकि नारद घटजोनी । निज निज मुखनि कही निज तगीर-रतनिधि (शब्द०)। होनी। -मानस, १ ३ । विशेष इस शब्द का प्रयोग 'बड़' के साथ ही अधिकतर घटती-संज्ञा खी० [हिं० घटना ] १. कमी। कसर। न्यूनता। होता है। प्रकेले इसका क्रियावत् प्रयोग 'घटकर' ही होता अवनति । बढती' का उलटा। .. है। जैसे,--वह कपड़ा इससे कुछ घटकर है। मुहा०-घटती का पहरा-ग्रवनति के दिन । बरा जमाना। घटकंचुकी--संघा क्षी० [मं० घटकञ्चकी तांत्रिकों की एक रीति । २. हीनता । अप्रतिष्ठा । उ०-घटती होइ जाहि ते अपनी - विशेप--इसमें भैरवी चक्र में संमिलित स्त्रियों की कंचुकियाँ लेकर एक घड़े में भर दी जाती हैं। फिर एक एक पुरुष ताको कीजै त्याग-सूर (शब्द०)। बारी बारी से एक एक कंचकी निकालता है। जिस परुप घटदासा-संघा औ० [सं०] १. नायक और नाशिक . . के हाथ में जिस स्त्री की कंचुकी (बोली) आती है, उसी करा देनेवाली दासी। २. कुटनी। .. के साथ वह संभोग कर सकता है। घटन-संक्षा पुं० [सं०] [वि. घटनीय, घटित] १. गढ़ा जाना। घटक - वि० [सं०] १. दो पक्षों में बातचीत करानेवाला। बीच रूप या प्राकार देना। २. होना। उपस्थित होना। ३. में पड़नेवाला । मध्यस्थ । २. मिलानेवाला । योजक ।. मिलाना । जोड़ना । ४. प्रयास । गति । प्रयत्न । ५. कलह घटक-संग्रा पुं० [सं०] १. विवाह संबंध तय करानेवाला व्यक्ति। .. विरोध। . वरखिया । २. दलाल । ३. काम पूरा करनेवाला । चतुर घटना'-कि० अ० [सं० घटन] १. उपस्थित होना। वाहना। व्यक्ति । ४. वंशपरंपरा बतलानेवाला । चारण । ५. वह होना । जैसे,-वहाँ ऐसी घटना घटी कि सब लोग आश्चर्य में सामग्री जिसके मेल से कोई पदार्थ बना हो। अक्यत्रभूत आ गए । २. लगना । सटीक बैठना । आरोप होना । मेल में वस्तु । उपादान वस्तु । ६. विना फूल लगे फल देनेवाला होना । मेल मिल जाना। जैसे,—यह कहावत उनपर ठीक वृक्ष । जैसे, गूलर। ७. घड़ा। घटती है । उ०-अब तो तात दुरावी दोहीं। दाए दोप