पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८१

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गोवंद्य . १३५८ गोसमावल गोवद्य-संवा पुं० [सं०] नीम हकीम । अज्ञानी वैद्य [को० गोपरा संशा. पुं० [सं० गोशाला ] गोशाला । पशुशाला । गोव्याधि-संश पुं० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । उ.--चंद विन रेनि जैसे पुत्र बिन परिवार दारा विन ग्रह गायों गोवज-संज्ञा पुं० [सं०] १. गौशाला । गोठ । २. गोसमूह । ३. जैसे गक विन गोपरा।--अकबरी०, पृ० ५३ । गायों के चरने का स्थान । चरागाह।, .. .. . . गोष्टि ---मेशा पुं० [मं० गोष्ड सायो । संगी। मित्र । उ०—काहु गोव्रत-चा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्रत जो गौहत्या के प्रायश्चित्त । न जीत गोष्टि सो भैरा। कबीर सा०, पृ० ४२२ । । ..... के लिये किया जाता है और जिसमें वगंबर किसी गौ के पीछे गोष्ठ संथा पुं० [सं०] १ गोत्रों के रहने का स्थान । गोशाला । २. पोछे घूमना और केवल गाय का दूध पोकर रहना पड़ता है। किसी जाति के पशुओं के रहने का स्थान । जैसे,—महिप • गोवद्धन -मंचा पुं० [सं० गोवर्द्धन] दे० 'गोवर्द्धन' । उ० उपारि गोष्ठ, अश्वगोष्ठ । ३. मनु के अनुसार एक प्रकार का थाद्ध सस्त्र गोवद्धनह । निप, रखि वनो जेम .. 'कलं । जो कई व्यक्ति एक साथ मिलकर करते हैं। ४. परामर्श ।

पृ० रा०, ६७११३०४।

. . . . . . सलाह । ५. दल । मंढली। ६.अहीरों का गाँव (को०)। गोश---संथा फा०] सुनने की इंद्रिय । कान। .. म्पनि-संक्षा पुं० [सं०] १. प्रधान ग्वाला। ग्वालों का सरदार।। . गोशकृत्--संज्ञा पुं० [सं०] गोवर [को०] . . . २ गोप्ठ का स्वामी [को०] । गोशंगजार-वि० [फा० गोशगुजार] १. कहा हुपा । २. प्रवित । गोशाला-संवा मी० [सं०] वह स्थान जहाँ कोई सभा हो। - गोशपेच संश पुं० [फा०] कान में पहनने का जेवर । सभाभवन। .: गोशम-मंचा पु० हि० कोसम ] दे० 'कोसम'। गोष्ठी-संथा. श्री० [सं०] १. बहुत से लोगों का समूह । सभा । ...गोशमायल-संशा पुं० [फा०] पगड़ी में एक प्रोर लगा हुआ. मोतियों . . मंडली । २. वार्तालाप । बातचीत । ३. परामर्श । सलाह। .. की लड़ी का वह गुच्छा जो कान के पास लटकता रहता है। .. ४.. एक ही अंक का वह रूपक या नाटक जिसमें पांच या सात

गोशमालो-संव. सी० [फा०] १. कान उमेठना। २. ताना। .. . स्त्रियाँ और नी या दस पुरुप हों।

... कड़ी चेतावनी। गोष्पद - मंध पुं० [सं०] १. गौत्रों के रहने का स्थान । गोष्ठ ।

: क्रि० प्र०—करना । देना।

.. २. गो के खुर के बराबर गड्ढा । उ०-पार जिया मकरालय .गोशवारा-संवा पुं० [फा०] १.खंजन नामक पेड़ का गोंद। मैंने उसे एक गोष्पद सा. मान । -साकेत, पृ० ३८८ । - विशेप---यह मस्तगी का सा होता है और मस्तगी ही की जगह ३. प्रभास क्षेत्र के अंतर्गत एक तीर्थ। .' काम में आता है। गोसंख्य-संज्ञा पुं॰ [स० गोसप] गाय चरानेवाला ग्वाला किो०। २. कान का बाला । कुंडल । ३. बड़ा माता जा साप म अकला : गोस'-संचालसि०] १. एक प्रकार का झाड़ जिसमें से गोंद ... हो। ४. कलाबत्तू से बुना हुमा पगड़ी का यांचल । ५. तुरा। निकलता है। २. प्रातःकाल से दो घड़ी पहले का समय । ....:::कलगी। सिरपेच 1 ६. जोड़। मीजान... ७. वह संक्षिप्त लेखा प्रभात । तड़का । ३. ग्रीष्म ऋतु (को०)। ४. लोबान (को०)।

  • जिसमें हर एक मद का प्रायव्यय अलग अलग दिखलाया गया .. यो०-गौसमूह भीतरी कक्ष ।

.. हो। ८. रजिस्टर ग्रादि में खानों के कार का वह भाग जिसन : गोस-संश पुं० [फा० गौशा?] हवा लगने के लिये चलते हुए - उन बानों का नाम लिखा रहता है। ... जहाज का रुख कुछ तिरछा करना । मांच ।-(लश०) । . गोशा-संज्ञा पुं० [फा० गोह] १.. कोना । अंतराला काण। गोस@ संज्ञा पुं० [हिं० गुस्सा, गुसा ] दे० 'गुस्ता' । उ०-- .. २. एकांत स्थान । जहाँ कोई न हो । तनहाई। ३. तरफ। वचनं मेटि में कहीं गरज बंसि दरदबंद प्रभु करी न दिशा । पोर । ४. कमान की दोनों नो । धनुप की कोटि।" ... गोसो।-भीवा श०, पृ० २६ । कमान का सिरा। गोशानशीन-वि० [फा० गोशहनशीन 1 एकांतवासी। घर गहस्यो गासई संक्षा खा०. [देश॰]..कपास के पौधों का एक रोग जियमें - से विरक्त । .. ... उनका फूलना बंद हो जाता है। गोशाला-संवा श्री० [सं०] गौयों के रहने का स्थान । 'गोष्ठ। गोसटल संघा बी० [स० गोष्ठ] गोष्ठी । संग। साथ । उ-भगतन गोशि@.... संशा पुं० [फा० गोश दे० 'गोश' । उ०-गोशि वातिन सेटी गोसटै णो कीने सो लाभ |-कवीर पं०, पृ. २५० । हो कुशादा जो करे कुछ दिन अमल ।-तुरसी श०, पृ० ५। गोसठि संचा पुं० [सं० गोष्ठ] दे० 'गोप्ठ 1 उ०-दई गऊ बाह्यन '. गोशीर्प-संवा ०.[सं०] एक पर्वत का नाम । २. उक्त, पर्वत पर की.नाई। सो गोसठि में मान समाई।-घट०, पृ० १३१ । होनेवाला चंदन । ३. एक प्रकार का अस्त्र 1... गोसदक्ष-संथा पुं० [सं०] गवय । नीलगाय [को०]। -गोग-संज्ञा पुं० [सं० गोशृङ्ग] १. 'एक पर्वत जिसका वर्णन गोसमाल-मंधा पुं० [फा० गोशमायल] दे० 'गोशमायल' । उ०- ... रामायण और महाभारत में पाया है। २. एक ऋषि का ::दादू नफस नौवं सौ मारिये, गोसमाल दे पंद।-दाद०, . नाम । ३. बबूल का पेड़ । ... .. . . पृ०. २५५ ।' :. . , ., गोश्त--संवा पुं० [फा०] मांस । ग्रामिष। , .........गोसमावल -संज्ञा पुं॰ [फा० गोशमायल] दे० 'गोशमायल' । उ०- पाग ऊपर गोसमावल रंग रंग रचि बनाय ।सूर (शब्द०)।