पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२७८

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गोलरा

गोल मटोल-(१) २० गोल गोल' । (२) मोटा और ढिंगना । नाटा गोलकली-संशा स्री० [हिं० गोल+फली] एक प्रकार का अंगूर जो .. और मोटा । गुलगुथना । (३) ऊचाई के हिसाब से जिसकी दक्षिण और मध्यप्रदेश में होता है। चौड़ाई बहुत अधिक हो गोल । मोल = दे० 'गोल गोल'। गोलगप्पा-संक्षा पुं० [हिं० गोल:+अनु० गप्प ] घी में तली एक मुहा०—गोल होना=(१) चुप हो रहना। मौन हो जाना। प्रकार की महीन और करारी फुलकी जिसे खटाई के रस में (२) गायब होना । विना जानकारी कराए चल देना। डुबोकर खाते हैं। गोल-संक्षा पुं० [सं०] १. मंडलाकार क्षेत्र। वृत्त । २. गोलाकार गोलड़@-संशा पुं० [सं० गोल (== जारज)? ] गुलाम । उ--- पिंड । गोला । सर्ववतु ल पिंड । वटक। ३. गोल यंत्र । ४. गाडभरिया गोलणा, सूनो सदन सुरंग।-बाँकी ग्र, भा० ३. . . विधवा का जारज पुत्र । ५. मुर नाम की अोपधि । ६. मदन पृ०२०। नाम का वृक्ष। मैनफल का पेड़ । ७. एक देश का नाम जिसके गोलपंजा-संज्ञा पुं० [हिं० गोल+पंजा] विना मुड़ी नोक का . अंतर्गत योरप का बहुत सा भाग विशेषतः उत्तरी इटली और जूता । मुडा जूता। झांस, बेलजियम आदि थे। गोलपत्ता-संज्ञा पुं० [हिं० गोल+पत्ता] गुल्गा नामक ताड़ का .... विशेष-यह शब्द रोमन भाषा या लैटिन से हेमचंद्र के परिशिष्ट पत्ता जो सुदरबन में होता है। दे० 'गुल्गा। ..... पर्वण में आया है। गोलफल-संथा पुं० [हिं०. गोल+फल.] गुल्गा नामक ताड़ का.. ८. मिट्टी का गोल घड़ा। । फल जो सुदरबन में होता है । दे० 'गुल्गा'। गोल-संथा पुं० [फा० गोल। सं० गोल(=मंडल)] मंडली। झंड। गोलमाल--संज्ञा पुं० [सं० गोल (योग)] गड़बड़ । अव्यवस्था। क्रि० प्र०--करना । --डालना 1--मचाना। . ... मुहा०—गोल बाँधना=मंडली या झुड बनाना । गोलमिर्च--संज्ञा श्री० [हिं० गोल+सं० मरिच] काली मिर्च। . . . . गोल-संक्षा पुं० [सं० गोल (योग)] गड़बड़ । गोलमाल । उपद्रव। गोलमहाँ-संक्षा पुं० [हिं० गोल+मुह] कसेरों की एक प्रकार की खलबली। हलचल । हथौड़ी जिसका अगला भाग विलकुल गोल होता है और यो०-गोलमाल । ___ जिससे बरतन गहरा किया जाता है। मुहा०-गोल पारना या डालना- गड़बड़ मचाना। हलचल गोलमेज कान्फरन्स-संशा स्रो० ह. गोल+मेज+अं. कान- मचाना । उ०-ऊधो सुनत तिहारो बोल । ल्याओ हरि ल्याा हार फरेंस ] दे॰ 'राउड टेबुल कान्फरेन्स' । .. . कुशलात धन्य तुम घर घर पारधी गोल ।—सूर (शब्द०)। गोलमेथी-संक्षा स्त्री० [गोल-मोथा] मोथे की जाति का एक पेड़। .. गोल -संचा पुं० [अं०] १. हाकी, फुटबाल आदि खेलों में वह विशेष—यह उत्तरी भारत में कुमाऊं से बरमा तक, तथा स्थान जहाँ गेंद पहुँचा देने से विरोधी पक्ष की जीत हो जाती

अफ्रीका और अमेरिका में होता है। इसके डंठलों से चटाइयाँ : है। २. उक्त प्रकार से होनेवाली जीत। बनती हैं। इसे वेढुआ भी कहते हैं। ' क्रि० प्र०-करना।-बनाना । --मारना।—होना। गोलयंत्र--संडा पं० [सं० गोलयन्त्र वह यंत्र जिससे सूर्य, चंद्र, . यो०- गोलकीपर-गोल बचाने के लिये नियुक्त खिलाड़ी। प्रथिवी आदि की स्थिति, नक्षत्रों की गति प्ररि अन गोलक-संशा पुं० [सं०] १.गोलोक । २.गोलपिड । ३. विधवा का परिवर्तन आदि जाने जाते हों। जारज पुत्र । ४. मिट्टी का बड़ा कुडा। ५. फलों का निकाला विशेष प्राचीन काल में यह यंत्र प्रायः बांस की तीलियों प्रादि । हुप्रा सार । इत्र । ६. आँख का डेला । उ०—(क) अति . से बनाया जाता था। उनींद अलसात कर्मगति गोल क चपल सिथिल कछु थोरे।- गोलयोग-संज्ञा पुं० [सं०] १. ज्योतिप में एक योग जो एक राशि में .. सूर (शब्द०)। (ख) जोगवहिं प्रभु सिय लखनहि कैसे । किसी के मत से छह और किसी के मत से सात ग्रहों के . पलक बिलोचन गोलक जैसे।—तुलसी (शब्द०) । ७. अखि एकत्र होने से होता है। की पुतली । उ०-उनके हित उनहीं बने को करौं अनेक । विशेष--फलित ज्योतिष के अनुसार इसका फल दुर्भिक्ष और ' फिरत काक गोलक भयौ दुह' देह ज्यों एक ।-विहारी राष्ट्र तथा राजाओं का नाश है। (पाद०) ८. गुंबद । उ०—बिसुकरमा मनु मनि खंभ पं २. गड़बड़ । गोलमाल । उड़गण को गोलक धरयो।-गोपाल (शब्द०)। ६. वह गोलर-संघा पुं० [मं०] कसेरू । संदूक या थैली आदि जिसमें किसी विशेष कार्य के लिए थोड़ा गोलरा-संधा पुं० देश॰] एक प्रकार का बहुत लंबा और सुदर प . थोड़ा धन संग्ग्रह करके रखा जाय । फंड । ११. वह संदूक जो हिमालय पर्वत पर तीन हजार फुट की ऊंचाई तक या थैली जिसमें विक्री, कर द्वारा या और किसी प्रकार से होता है। आई हुई रोजाना आमदनी रखी जाती है । गल्ला । गुल्लक । विशेष—इसकी छाल 'चिकनी और सफेद तथा हीर की लकड़ी गोलकलम-मंधा पु० हिं० गोल-कलम ] एक प्रकार की छेनी चमकीली और बहुत कड़ी होती है। इसके पत्तों से चमड़ा ... ' जो चाँदी के पत्तर पर की नक्काशी में पत्ती उभारने के काम सिझाया जाता हैं और लकड़ी से नावें, जहाज और खेती के . में आती है। मोजार बनाए जाते हैं।