पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२७७

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- . . गोल गोरा-संवा पुं. गौर वर्णवाला व्यक्ति; विशेषतः युरोप, अमेरिका इत्यादि चौपाया । मवेशी । २. दो कोस का मान !---(दि०)। . ..आदि देशों का निवासी। फिरंगी।" ३. गाया। गोरा-संज्ञा पुं० [देश॰] १: एक प्रकार की कल जो नील के कार- गोल्प-संचा पुं० [सं०] महादेव। 'खानों में बट्टी काटने के लिये रहा करती है। २. एक प्रकार गोरोच-संज्ञा पुं० [मं०] हरताल । का नीबू जो लंबोतरा होता है। गोरोचन -संज्ञा पुं॰ [सं०] पीले रंग का एक प्रकार का सुगंधद्रव्य -गोराई -संशही [ हि गोरा+ई या आई (प्रत्य॰)] १. __ जो गौ के हृदय के पास पित्त में से निकलता है। उ०—(क) गोरापन । २. सुंदरता । सौंदर्य । तिलक भाल पर परम मनोहर गोरोचन को दीनों।----सूर गोराटिका-संशा श्री० [सं०] नारिका ! मैना (को०।। (शब्द०)। (ख) चुपरि- उवटि अहवाई के नयन यांजे रचि --... गोराटी-संहा खी० [सं०] सारिका । मैना [को॰] । रचि तिलक गोरोचन का किया है ।—तुलसी (शब्द०)। गोराडू-संचा पु० दिश०] वह बालू मिली मिट्टो जिसमें कोदो बहुत विशेष---यह अष्टगंध के अंतर्गत है और बहुत पवित्र माना उत्पन्न होता है। जाता है। कभी कभी यह लड़कों की घाटी में भी पड़ता है E : विशेष—यह गुजरात में बहुत होती है। . और इसका तिलक लगाया जाता है। तांत्रिक इसे मंगलजनक, गोराधारा-क्रि० वि० [ हि गोरा+घार ] मूसलाधार । 30- कांतिदायक, दरिद्र तानाशक और वशीकरण करनेवाला मानते .यर थर पति रहति ग्रानंदधन बरसत गोराधारन ।-घना हैं । वैद्यक में इसे शीतल, कडुअा और विप, उन्माद, गर्भनाब, नंद, पृ० ४६६ नेत्ररोग, कृमि, कुष्ठ और रक्तविकार को दूर करनेवाला माना गोरान–चा पुं० [अं० मनग्रोब चौरी नाम का वुन जिसकी छाल गया है। कुछ लोगों का विश्वास है कि यह नौ के मस्तक का से रंग निकाला और चमड़ा सिझाया जाता है। पित्त है; अथवा नौ में इसे उत्पन्न करने के लिये उसको गोरामूग-संज्ञा पुं० [हिं० गौरा ग] एक प्रकार की जंगली बहुत दिनों तक केवल ग्राम की पत्तियां खिलाकर रखते हैं। मूग जिसे दक्षिण में लोग अकाल के समय खाते हैं। जिससे उसकी बहुत कष्ट होता है। पर ये बातें ठीक नहीं हैं। गोरिg.--संवा कोहि गोरी] दे॰ 'जोरी' । ६०-योलिनि गोराचना-संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरोचन नामक सुगंधद्रव्य । " पुहप पराग भरी हप अनूपम गोरि।—नंद॰ ग्रं॰, पृ०३८३ गोर्खा-संवा पुं० [हिं० गोरखा] दे० 'गोरखा'। .. गोरि @-संवा पुं० [फा० गोर ] है 'गोर। उ०-गोरि गोमठ गोर्खाली-दि०, बी० [हिं० गोरखाली] दे० 'गोरखाली'। गोर्द-संवा पुं० [सं०] नस्तिष्क [को०] । ... पुरिल मॅही, पएरहु देवा एक ठाम नहीं।-कीर्ति०, पृ० ४४ । गोर्घ संच ० [सं०] मस्तिष्क किो। गोरिका-संधा. स्त्री० [२०] दे० 'गौराटिका' को०। गोलंदाज-संज्ञा पुं० [फा० गोलंदाज ] तोप में गोला रखकर गोरिया-मंशा लोहि० दे० 'गोरी'। उ०-गोरिया गरव करहु चलानेवाला । तोप में वत्ती देनेवाला । जिनि, अपने गोरे गात ।-संतवाणी, भा० १, पृ० ११३।। गोलंदाजी-संक्षा बी० [फा० गोलंदाजी ] गोला चलाने का काम गोरिल्ला--संज्ञा पुं० [अफ्रिका ] चिपैजी की जाति का बहुत बड़े। या विद्या। - आकार का एक प्रकार का बनमानुप। गोलंबर-संज्ञा पुं० [हिं० गोल+अंबर] १. गुदद । गुंबद के आकार विशेष--इसके झुड अफ्रिका में पाए जाते हैं। इनके शरीर का का कोई गोल ऊँचा उठा हुना पदार्य। ३. गोलाई। ४. - चमड़ा काला, कान छोटे और हाथ वहुत लंबे होते हैं । इसकी कलबूत जिसपर रखकर टोपी सीते हैं। कालिब। ५. बगीचे चाई प्रायः साढ़े पांच फुट होती है और इसके शरीर में में बना हुया गोल चबूतरा या रविश । वहतं बल होता है। यह फल आदि खाता और पेड़ों पर बड़े गोलंमदाज-@-संज्ञा पुं० [फा० गोलंदाज] दे० 'गोलंदाज' ।उ०- - बड़े झोपड़े बनाकर रहता है। इसकी अांदाज ज्ञाधारण भूकने गोलंदाज तव करि सलाम । दागी सुतोप लखि ताव को सी होती है। पर यदि इसे छेड़ा या दिक किया जाय, तोताम ह. रासो, पृ० १०८। . यह बहुत जोर से चिल्लाने लगता है। इसके पारीर की गोल' - वि० [सं०] जिसका बेरा या परिधि वृत्ताकार हो। चक्र के ... बनावट मनुप्य से बहुत कुछ मिलती जुलता होता है। आकार का। वृत्ताकार । जैसे,—पहिया, अंगुठी, सिक्का ... गोरी'-संज्ञा स्त्री॰ [सं० गौरी] तुदर और गौर वर्ण की स्त्री। . इत्यादि । ऐसे घनात्मक याकार का जिसके पृष्ठ का प्रत्येक रूपवती ची। 30 हरितहि दीठि चिन्हसि हरि गोरी ।- विदु उसके भीतर के मध्य विदु से समान अंतर पर हो। . विद्यापति०, पृ० २०९ ' सर्ववतुल । अंडाकार । मेंद, नीबू, वेल आदि के आकार का । गोरी - वि० [फा गोरी] गौर निवासी । गोर का वाशिदा । यौ०-गोल गोल-(१)त्यूल रूप से। मोटे हिसाब से। (२) - गोरी --संज्ञा पुनौर निवासी व्यक्ति । शहाबुद्दीन गोरी। अस्पष्ट रूप से। साफ साफ नहीं। जैसे,—यों ही गोल गोल गोरीतर-मंदा पुं० [सं०] लालसा । उपावा। समझाकर वह चला गया; साफ खुला नहीं। गोल बात= गोरुत-संज्ञा पुं० सं०] दो कोन की दूरी की एप माप (को०)। अस्पष्ट बात । ऐसी बात जिसने अर्थ का कुछ ग्रामास मिले

गोद-संवा पुं० [सं० गो] १. सींगवाला पशु । गाय, बैल, नैस

पर वह स्पष्ट न हो । गोलमगोल= दे० 'गोल गोल' । गोल ." ....