पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२७

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वि० [सं०] नारी किया। सीता देने का ११०३ क्षुद्रता झुपक क्षद्रता--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नीचता। कमीनापन । २. पोछाग्न । क्षुद्रांत्र-[सं० क्षुद्रान्त्र] हृदय के पास की एक छोटी नाड़ी। क्षुद्रतुलसी-मंचा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की बधुई तुलसी। . क्षुद्रा-संशा स्त्री० [सं०] १. वेश्या । २. चंगेरी । प्रमलोनी। सोनी । क्षुद्रदं शिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की मक्खी । डाँस (को०] ।। ३.जटामासी। बालछद ४. एक प्रकार को मधुमक्खी जिसे 'सरधा' कहते हैं। ५.गवेधुक । कौडियाला । कोहिल्ला । ६. क्षुद्रधान्य--संज्ञा पुं० [सं०] कंगनी, चेना, कोदों यादि कुधान्य 1. विशेष--वैद्यक के अनुसार इस प्रकार के धान्य रूखे, कसैले, कटकाग। हिचकी। ८.प्राचीन काल की एक प्रकार की . _हलके मौर वातकारक होते हैं। नाव जो १६हाय लंबी, ४ हाथ चौड़ी और ४ हाथ ऊँची होती थी। यह केवल छोटी छोटी नदियों में चलती थी। क्षद्रपति–संधा स्त्री० [सं०] कुवेर । उ---द्रपति, छद्रपति, लोकपत्ति, ६. वैश्या । वारवधू (को०) । १०. लड़ाकू औरत (को०)। वोकपति. घरनिपति, गगनपति अगमबानी-सूर (शब्द०) । ११ विकलांग स्त्री (को०)। १२. नत्यांगना। नाचनेवाली । क्षद्रपत्रा--संवा नी० [सं०] अमलोनी । नोनिया साग । लड़की (को०)। क्षुद्रपत्री-संक्षा स्त्री० [सं०] वर्ष । क्षद्रात्मा-वि० [सं० क्षद्वात्मन्] निम्न विचार का निम्न प्रकृति- क्षुद्रपद-संज्ञा पुं० [सं०] लंबाई की एक नाप जो १० अंगुल के बराबर । वाला [को०)। होती है [को०] . क्षुद्रावली-संवा स्री० [सं०] सुटिका किंकिणी। उ-अंग क्षुद्रपनस-संचा पुं० [सं०] लकुच का पेड़ (को०] . प्रभूषण जननि उतारति । दुलगे ग्रीव माल मोतिन की केयुर क्षद्रपर्ण-संज्ञा पुं० [सं०] तुलसी को० ॥ ल भुज श्याम निहारति । क्षुद्र वली उतारति कटि ते संक्ति क्षुद्रपिप्पली-संवा स्त्री० [सं०] बनपीपर । बनपिप्पली [को०] । घरति मन ही मन वारति ।-सूर (शब्द०)। क्षुद्रप्रकृति-वि० [सं०] प्रोछे या खोटे स्वभाववाला । नीच । क्षुद्राशय-वि० [सं०] नीचप्रकृति । कमीना । 'महाशय' का उनटा। प्रकृति का। क्षद्रिका-संशा कीसं०] करधनी । किकिणी । क्षुद्रघंटिका । 7- क्षुद्रफल-संज्ञा पुं० [सं०] १. भूमिजंबु का वृक्ष को०] मिलनस्मृति सी रहे यहाँ यह क्षुदिका । सीता देने लगी क्षुद्रफला- संञ्चा स्त्री० [सं०] १. जामुन । २ इंद्रायण। स्वर्णमणिमुद्रिका ।-साकेत, पृ० १२६ । २ डंस । डांस (को०)। क्षुद्रबुद्धि-वि० [सं०] १. दुष्ट या नीच बुद्धिवाला। २.नासमझा, नको क्षुद्रगदी-संशा सी० [सं० क्षटेंगवी ] जबासा। मूर्ख। क्षुधा-संस्था सी० [स०] [वि० क्षुधिन, क्षुधालु ] भोजन करने की क्षद्रम-संज्ञा पुं० [सं०] धातु प्रादि तौलने के लिये छह माशे की एक - इच्छा । भूख । . तौल, जिसे 'छदाम' कहते हैं । क्ष धाक्षीण-वि० सं०] भूख से कृण वा दुर्बल । क्षद्रमुस्ता -संञ्चा औ० [सं०] कसेरू। क्षुधातुर--वि० [सं०] जिसे भूख लगी हो । भूखा । क्षुद्ररस-संचा पुं० [सं०] १.शहद मधु १२.विषयसुख [को०] क्षघानिवृत्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] धा की शांति । भूम्ब का मिटाना। क्षुद्ररोग-संज्ञा पुं० [सं०] छोटे रोग, सुथ त के अनुसार जिनकी संख्या पेट भरना। . .४४ (४८) है और जिनमें फोड़ा, फुसी, मुहासा, झाई, कुनख क्षुधात-वि०--भूख से कातर को । आदि संमिलित हैं। क्षधादिन--वि० [सं० क्षुधा+अदित] भूब से पीड़ित । ) क्षद्ल-वि० [सं०] (रोग और जानवर के लिये विशेषतः प्रयुक्त) क्षधालु-वि० [सं०] जिसे सदैव भूख लगी रहती हो। भुवनड़ । - मामूली । तुच्छ । उहुत छोटा (को०] । क्षुधावंत--वि० [हिं० शुध+वंत (प्रत्य० या सं० क्षधावान् का क्षद्रवर्वणा-संक्षा सी० [सं०] १.भिड़ । बर। २.डांस [को०] । बहु० च० क्षुधावन्त] क्षुधा से पीडित । मूला। उ०-~- क्षुद्रशर्करा संचा मी० [सं०] एक प्रकार की चीनी [को०] । क्षुधावंत रजनीचर मेरे ।-तुलसी (शब्द०)। . क्षुद्रशार्दूल- संज्ञा पुं० [सं०] चीता। चित्रक (को०। क्षुधावती-संझा श्री० [सं०] एक विशेष प्रकार की तैयार की हुई क्ष द्रशीर्ष-संशा पुं० [सं०] मयूरशिखा नाम का वृक्ष [को० प्रौषध जिमके सेवन से भूख बढ़नी है। धितविसं. जिसे भूख लगी हो। भूखा । बुभुक्षित। -क्षद्रश्वास-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का प्रवास रोग। . ...विशेष-सुथ त के अनुसार यह अधिक भोजन या कम परिश्रम क्षुध्या -संझा बी[सं० क्षुषा] ० 'क्षुधा'. 30-अमृत फल "कने और दिन को सोने से होता है। माधव निदान में इसे . . से भोजन करहीं युगन युगन की क्षुध्या हरहीं -कवीर सा, ___रुखे पदार्थ खाने से और श्रम करने से प्रकट माना गया है। क्षद्रसुवर्ण-संचा पुं० [सं०] पीतल । क्षप-संज्ञा पुं० [सं०] १. छोटी डालियोंवाला वृक्ष। पौधा । झाड़ी। और क्षद्रहा- संज्ञा पुं० [सं० क्षवहन् ] शिव का एक नामा .. - ..२श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम. जिसका जन्म सत्यतामा "क्षुद्रांजन--संज्ञा पुं० [सं० क्षुद्राजन सुधत के अनुसार एक प्रकार के गर्भ से हग्रा था। ३. महामारत के अनुसार प्रसंधि के पुत्र और इक्ष्वाकु के पिता का नाम । का अंजन जो शोधे हुए भावले आदि से बनाया जाता है। क्षुपक-संज्ञा पुं० [सं०] झाड़ी । गुल्म [को०