पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गूजति व्याप्त होना । प्रतिध्वनित होना। जैसे,यहाँ अावाज खूब गूजरनी-संवा स्त्री० हिं० गूजर दे० 'गूजरी' । उ०-कुछ मील चढ़ने गूजती है। पर अपनी भैसों के रेवड़ को लिए मुस्लिम गूजर और गूजनि -संञ्चा स्त्री० [सं० गुज्जन, हिं० मूजन] दे० 'गूज'। उ०- गुजरनियां मिलीं ।--किन्नर०, पृ० । ..::.. गरजनि जनि सुनि सुनि महा। दलकन हिय दुख कहिए गूजरी-संशा सी० [सं० गुर्जरी] १. गूजर जाति की स्त्री। ग्वालिन । . कहा।-नंद० प्र०, पृ० १६७ । २.पर में पहनने का जेवर । उ०--सौतिन को करि डारिहै गूट@--संवा क्षी० [हिं० घूट] दे० 'घूट' । उ०-कोज नीबरी गूट' कूजरी ऊजरी गूजरी गूजरी तेरी।--सुदरीसर्वस्व (शब्द॰) । ज्यू पीज प्यालो कालकूट केम !-बांको० मं०, भा० । ३, पृ० १२६। गूजी-संग्रा पुं० [सं० गुजुवा का सौ.] एक प्रकार का छोटा काला गूठ~संग पुं० [हिं० गोंठा-छोटा, नाटा] पहाड़ी टट्ट । टाँगन। कीड़ा । गुडौ@-संज्ञा पुं० [सं० गूढ़ ] आत्मरक्षा का स्थान । गोपनीय गृझा---संशा पुं० [सं० गुह्यफ, प्रा० गुझा] [ी गुझिया] १. बड़ी स्थान । उ० - देवलिय गूडो कियो, धणी थयौ सुप्रसन्न ।-रा० पिराक । पाटे या मैदे का एक पकवान । रू०, पृ० ३४७ । विशेष-यह आकार में अधचंद्र होता है। इसके भीतर मीता । गूग-संज्ञा स्त्री० [हिं० गौन] दे० 'गौत' । उ--खग इण साकर तथा गरी, चिरौंजी, किसमिम आदि मेवे भरे रहते हैं। खोररे, संगन साँकर गूण ।-बाँकी० ग्रं०, भा०२, पृ०४० । २ गूदा । ३. फलों के भीतर का रेशा। . गुथन-संज्ञा पुं० [हिं० गूथना] गूथने की क्रिया । ग्रंथन । उ०- गूटी-संवा स्त्री॰ [देश॰] लीची का पेड़ लगाने की एक युक्ति । झवी जराऊ जोरि अमित गूचननि सँवारी।--नंद ग्रंक, गूटी --संशा सो॰ [देश॰] चौपायों का एक रोग। पृ० १८६। गूड़-वि० [हिं० गूढ़ ] दे० 'गुड' । उ०-लालु गुलालु शादि गुर गूंथना'-क्रि० स० [हिं० गूथना] दे० 'गूय ना' । गूड़ा--प्रारण,भा०१, पृ०१७ गुथना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'गूधना' । गूडर -संशा पुं० [हि. गोयड़ ] गाँव का पड़ोस । उ-हसती .. गूंदना--क्र० स० [हिं० गूया] पूधा' । घोड़ा गांव गढ गुडर, कनड़ा पाइक आगी।-कवीर ग्रं, गूंदा-संशा पुं० [हिं० गोंद] दे० 'गोंदा' । पृ०१६। गूदी-संज्ञा स्त्री० दे०] गंधेला नाम का पेड़ । विशेष-यह गिरगिट्टी की जाति का होता है और इसकी छाल गूड़ी-संवा स्त्री॰ [सं० गुहा या गुह्य] ज्वार या बाजरे की बाल में और पत्तियाँ औषध के काम में आती हैं । बह गड्ढा या प्याली जिसमें दाना गड़ा रहता है। गूदी-वि० [हिं० गू"यना] गुही हुई । बनाई हुई । उ०—-मदिन गूढ़-वि० [सं० गूढ] १. गुप्त । छिपा हुआ। यौ०-गूढ़ जत्र, गूढ़ पाद-सर्प।। राखत प्रीति भटू यह गूदी गुपाल के हाथ की बैनी । -मति० । ग्रं०, पृ०२८८ । २. जिसमें बहुत सा अभिप्राय छिपा हो। अभिप्रायगभित । गुधना'.-क्रि० स० [सं० गुध-क्रीड़ा] पानी में सानकर हाथों के गंभीर । जैसे,--इसकी बातें अत्यंत गूढ़ होती हैं। उ०- दबाना या मलना । माड़ना । मसलना । जैसे,—पाटा गूधना। कह मुनि विहसि गूड़ मटु बानी। सुना तुम्हारि सकल गुण धना-क्रि० स० [सं० गुम्फन या हि० गूथना] १. गूथना। खानी।-तुलसी (शब्द०)। ३.जिसका आशय जल्दी न पिरोना । जैसे,-माला गूधना । १. कई तागों या वालों की। समझ में यावे । प्रबोधगम्य । कठिन । जटिल । गैसे, गूड : लटों को घुमा कर इस प्रकार एक दूसरे पर चढ़ाते हुए फंसाना विषय । कि एक लड़ी सी बन जाय । बालों या तागों को लेकर इस गूढ--संघा पुं० [सं० गूढ] १. स्मृति में पांच प्रकार की साक्षियों में... प्रकार वटना कि बराबर गुच्छे बनते जाय । जैसे,-चोटी से एक साक्षी जिसे अर्थी ने प्रत्यर्थी का वचन सुना दिया हो। गूधना। २. एक अलंकार जिसे सूक्ष्म भी कहते हैं। गूढ़ोत्तर। गूढोक्ति । गू-संज्ञा पुं० [सं० गूः=मल, पाखाना ] दे० 'गृह'। दे० 'सूक्ष्मालंकार'। गूगल -संहा [सं० गुग्गुल] दे० 'गुग्गुल'। विशेष--सूक्ष्म, पर्यायोक्ति और विवतोक्ति नामक अलंकार सब .. गूगुल:--संज्ञा पुं॰ [सं० गुग्गुल] दे० 'गुग्गुल' । ___ इसी के अंतर्गत पा सकते हैं। गूघर -संक्षा पुं० [हिं० घूघट] दे० 'घू घट'। 30--नटनागर ३. एकांत या निर्जन स्थान (को०)। ४. रहस्य । भेद (को०)।.. निरखण दो नरखो जितिहारो गूघट कोर ।---नट०, पृ० १२१ । गुप्तांग (को०) । गूघर -संज्ञा पुं० [हिं० घुघरु] दे० 'घुघरू' । उ०-मिल बहुर गढचर-संसा पुं० [सं० गूढचर] भेदिया । गुप्तचर [को०। मूछा मुहर भर, बज पखर गूघर भिड्ज वर ।-रघु० रू०, गढ़चारी'-संशा पुं० [सं० गूढचारिन] गुप्तचर । भेदिया [को०11 . पृ० २१६। गूढचारी२- वि० भेद लेनेवाला । छिपकर 'टोह लेनेवाला (को०। . . . गूजर----संज्ञा पुं० [सं० गुर्जर [श्री० गूजरी, गुजरिया] १.अहीरों की गढ़ज---संज्ञा पुं० [सं० गूढज] बारह प्रकार के पुत्रों में से एक । वह . एक जाति । ग्वाला। २.क्षत्रियों का एक भेद । पुत्र जिसे पति के घर रहते हुए भी पत्नी ने अपने किसी